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एक ओर देश में सबका साथ, सबका विकास की बात होती है, दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में सतनामी समाज से आने वाला एक दलित परिवार 14 साल से लगातार जातीय उत्पीड़न, प्रशासनिक उपेक्षा और सामाजिक बहिष्कार का शिकार हो रहा है। हद तो तब हो गई जब न्याय की आस में थक चुके इस पीड़ित परिवार ने 17 सदस्यों के साथ सामूहिक इच्छा मृत्यु की अनुमति राष्ट्रपति से मांगी है।
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चार बार तोड़ा गया घर, अब खुले आसमान के नीचे जीने को मजबूर
यह दर्दनाक मामला बेमेतरा जिले के मोहतरा (ख) गांव का है, जहां रहने वाले श्यामदास सतनामी और उनका परिवार पिछले 14 वर्षों से समाजिक अपमान, हिंसा और प्रशासन की निष्क्रियता को झेलते आ रहे हैं। पीड़ित परिवार का आरोप है कि उन्हें बार-बार शासकीय भूमि पर अतिक्रमण बताकर उजाड़ा गया, जबकि उसी जमीन पर वर्ष 2009 में तत्कालीन सरपंच और उपसरपंच ने 50,000 रुपये लेकर बसाया था।
परिवार ने मेहनत से एक कच्चा मकान बनाया, लेकिन वर्ष 2011 में जातिवादी मानसिकता से ग्रसित ग्रामीणों ने उनका घर जला डाला और सामान लूट लिया। बात यहीं नहीं थमी, साल 2019 में पूरे गांव में अर्धनग्न घुमाया गया, खंडसरा चौकी पुलिस की मौजूदगी में जबरन पूरे गांव के पैर छूकर माफी मंगवाई गई।
बच्चों को भी झेलनी पड़ी यातना, भेजा गया सखी सेंटर
इस सदमे का गहरा असर परिवार के बच्चों पर भी पड़ा। उन्हें सखी सेंटर भेजा गया, जहां वे लगभग 15 दिन तक रहे। किसी तरह पुनः वहीं कच्चा घर बनाकर रहने लगे। लेकिन 2024 में एक बार फिर उनका मकान तोड़ा गया। हाल ही में गर्मी के दौरान बिजली भी काट दी गई और तीन किलोमीटर दूर से पानी लाकर प्यास बुझाई गई।
18 जून 2025: बिना नोटिस के जेसीबी से फिर उजाड़ा
पीड़ित परिवार के अनुसार, 18 जून 2025 को प्रशासन ने पुलिस बल और ग्रामीणों की मौजूदगी में बिना किसी नोटिस और वैकल्पिक व्यवस्था के उनकी झोपड़ी जेसीबी से गिरा दी। वह भी भरी बरसात के बीच। अब यह परिवार बिना बिजली, पानी, छत के खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर है।
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राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित 23 संस्थाओं को भेजा पत्र
इस अत्याचार से टूट चुके श्यामदास सतनामी ने राष्ट्रपति के नाम एक पत्र कलेक्टर को सौंपा है और सामूहिक इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है। पत्र की प्रतियां उन्होंने प्रधानमंत्री, कानून मंत्री, मुख्य न्यायाधीश, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मानवाधिकार आयोग समेत 23 विभागों और राजनैतिक दलों को भेजी हैं।
“जब न जमीन हमारी है, न घर बचा, न समाज ने अपनाया और शासन-प्रशासन भी मौन है, तो जीने का क्या मतलब? कृपया हमें मरने की अनुमति दी जाए।” – श्यामदास सतनामी
प्रशासन मौन, समाज में उबाल
पूरे मामले पर बेमेतरा जिला प्रशासन अब तक मौन है। वहीं प्रगतिशील सतनामी समाज ने चेतावनी दी है कि यदि इस परिवार को न्याय नहीं मिला तो वे आंदोलन करेंगे।मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों में इस मुद्दे को लेकर गंभीर आक्रोश है।
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