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छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले से मानवता को झकझोर देने वाली एक खबर सामने आई है, जहाँ जमींन विवाद से पीड़ित एक दंपति ने प्रशासन से इच्छामृत्यु की अनुमति मांगी है। ग्राम रिखादादर निवासी कैलाश प्रधान और उनकी पत्नी कामिनी प्रधान ने अपने आवेदन में ज़मीन पर लगातार हो रहे अवैध कब्जे, दबंगों की धमकी और सरकारी उपेक्षा से त्रस्त होकर यह कठोर कदम उठाने की बात कही है।
पीड़ित दंपति ने कलेक्टर और एसपी को भेजे गए ज्ञापन में कहा कि वे अपने बेटे दुर्गेश और बेटी हिमाद्री के साथ वर्षों से अपनी पुश्तैनी ज़मीन पर रह रहे हैं। लेकिन गांव के कुछ दबंग लोग लगातार उन्हें परेशान कर रहे हैं और जबरन उनकी ज़मीन पर कब्जा जमाए बैठे हैं।
दंपति के अनुसार, वे पिछले 10 वर्षों से राजस्व विभाग और पुलिस से लगातार शिकायत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें आज तक कोई स्थायी न्याय नहीं मिला।
पीड़ितों ने जानकारी दी कि वर्ष 2020-21 में तत्कालीन तहसीलदार द्वारा सीमांकन कर विधिवत रूप से ज़मीन उनके पक्ष में सौंप दी गई थी। इसके बावजूद, उसी ज़मीन पर दोबारा कब्जा कर लिया गया और अब दबंग उन्हें गांव से निकालने की धमकी दे रहे हैं।
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कैलाश प्रधान ने बताया कि उन्हें ना केवल धमकियां मिल रही हैं, बल्कि प्रशासनिक तंत्र की अनदेखी भी उन्हें आत्मघाती कदम उठाने पर मजबूर कर रही है। उन्होंने प्रशासनिक उपेक्षा से आहत होकर स्वेच्छा से मृत्यु की अनुमति की मांग की है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने जांच शुरू कर दी है और उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है। फिलहाल, यह मामला केवल ज़मीन विवाद नहीं रह गया है, बल्कि व्यवस्था की संवेदनशीलता और न्याय प्रणाली की प्रभावशीलता पर भी सवाल खड़े कर रहा है।
गांव में इस घटना के बाद से लोगों में आक्रोश है, और दंपति के साथ सहानुभूति जताते हुए स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी निष्पक्ष जांच और कार्रवाई की मांग की है।
यह घटना प्रशासनिक व्यवस्था को झकझोरने वाली है। सवाल यह है कि अगर एक आम नागरिक वर्षों तक शिकायत करने के बाद भी न्याय नहीं पा सके, और अंततः इच्छामृत्यु जैसा गंभीर कदम उठाने पर मजबूर हो जाए, तो यह पूरे तंत्र के लिए एक चेतावनी है।
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