Bhupesh Baghel के जेब से नहीं निकले 96 लाख,इसीलिए फ्लॉप हुआ गेम प्लान

छत्तीसगढ़ लोकसभा चुनाव के लिए भूपेश बघेल ने गेम प्लान तैयार किया था जो फ्लॉप हो गया। यह तो सब बता रहे हैं कि भूपेश की योजना काम नहीं आई, लेकिन हम आपको बताएंगे कि ये योजना क्यों काम नहीं आई और भूपेश का गेम प्लान क्यों हुआ फ्लॉप...

Advertisment
author-image
Jitendra Shrivastava
New Update
THESOOTR

भूपेश का फ्लॉप हो गया गेम प्लान।

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

अरुण तिवारी, RAIPUR. क्या पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ( Bhupesh Baghel ) का गेम ओवर हो गया है। ये सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि उन्होंने अपनी जीत की गारंटी के लिए जो प्लान तैयार किया था वो फेल हो गया है। यह गेम फेल क्यों हुआ क्योंकि भूपेश बघेल की जेब से 96 लाख रुपए नहीं निकले। ये 96 लाख रुपए उनको 384 लोगों को देने थे। राजनांदगांव का चुनाव कांग्रेस से ज्यादा भूपेश बघेल के लिए अहम है। क्योंकि भूपेश तीन महीने पहले ही पांच साल के सरकार के मुखिया रहे हैं। भूपेश कहते भी हैं कि यह आम चुनाव नहीं बल्कि खास चुनाव है। यही वजह है कि भूपेश बघेल ने गेम प्लान तैयार किया था जो फ्लॉप हो गया। यह तो सब बता रहे हैं कि भूपेश की योजना काम नहीं आई, लेकिन हम आपको बताएंगे कि ये योजना क्यों काम नहीं आइए। आइए आपको दिखाते हैं कि क्या था भूपेश का गेम प्लान और क्यों हुआ फ्लॉप।

भूपेश का एंबीयंस  

राजनांदगांव से कांग्रेस के उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने चुनाव की जीत की गारंटी के लिए एक योजना तैयार की। भूपेश कहते हैं कि चुनाव में ईवीएम का बड़ा खेल हो रहा है इसलिए बैलेट पेपर से चुनाव होना चाहिए। बैलेट पेपर से चुनाव के लिए ही भूपेश बघेल ने एक योजना तैयार की। इस योजना के तहत यदि लोकसभा क्षेत्र से 384 उम्मीदवार चुनाव लड़ें तो ईवीएम की जगह मतपत्र से चुनाव हो सकते हैं। भूपेश ने सभी लोगों से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन फॉर्म भरने को कहा। लोगों ने फॉर्म भी खरीद लिए, लेकिन आखिरी तारीख को जमा हुए कुल जमा 23 नामांकन फॉर्म। इनमें एक भूपेश बघेल, एक बीजेपी उम्मीदवार संतोष पांडे और एक गोंगपा उम्मीदवार का फॉर्म शामिल है। यानी कुल 20 लोगों ने ही चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरा। नाम वापसी की आखिरी तारीख के बाद ये उम्मीदवार कुल 15 बचे हैं। ये तो सब पुरानी कहानी है, अब हम आपको बताते हैं इससे आगे की नई कहानी। हमने पड़ताल की कि आखिर लोगों ने फॉर्म खरीदने के बाद भी फॉर्म जमा क्यों नहीं किए। 'द सूत्र' ने इसकी पड़ताल की तो इसके पीछे की वजह सामने आई। वजह थी कि भूपेश बघेल ने इनको फॉर्म भरने के लिए अपनी जेब से 96 लाख रुपए नहीं निकाले। एक उम्मीदवार को नामांकन फॉर्म भरने के लिए 25 हजार रुपए जमा करने होते हैं। ये उसकी जमानत राशि मानी जाती है। 384 लोगों के फॉर्म की जमानत राशि होती है 96 लाख रुपए। फॉर्म लेने वाले लोग अपनी कमाई के 25 हजार रुपए डुबोना नहीं चाहते थे। इसलिए फॉर्म तो खरीदा, लेकिन उसे जमा नहीं किया। भूपेश ने फॉर्म खरीदने वालों को अपनी तरफ से जमानत राशि नहीं दी। इसके पीछे भी वजह है। भूपेश अपनी जेब से 96 लाख रुपए निकालकर डूबत खाते में नहीं डालना चाहते थे। क्योंकि अगर उम्मीदवार को एक बटे छह वोट यानी कुल मतदान का छठवां हिस्सा वोट के रुप में नहीं मिला तो उनकी जमानत राशि डूब जाएगी। न तो लोग अपनी कमाई को डुबोना चाहते थे और न ही भूपेश बघेल ने अपनी योजना को पूरा करने के लिए ये इन्वेस्टमेंट किया। लिहाजा सारी बातें हवा हवाई ही रहीं और भूपेश का गेम प्लान फ्लॉप हो गया। अब कांग्रेस नेता कहते हैं कि उनके पक्ष में माहौल है और वे पांच से छह सीटें जीतने की स्थिति में हैं।

ये था भूपेश का 384 का फॉर्मूला

अब आपको 384 का फॉर्मूला समझाते हैं। 384 लोग फॉर्म भरते तो नोटा समेत मिलाकर एक लोकसभा क्षेत्र में 385 उम्मीदवार हो जाते। ईवीएम की कंट्रोल यूनिट से एक बार में 24 बैलेट यूनिट जोड़े जा सकते हैं। एक बैलेट यूनिट में 16 उम्मीदवारों के नाम होते हैं। इस तरह 24 यूनिट में 384 उम्मीदवारों के नाम आ सकते हैं, जबकि हो रहे हैं कुल 385 उम्मीदवार। भूपेश बघेल का यही तर्क था। कि जब इतने उम्मीदवार हो जाएंगे कि ईवीएम से चुनाव नहीं हो पाएगा तो बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाएंगे। भूपेश ने यह सभी लोकसभा क्षेत्रों के लिए कहा था, लेकिन उनकी खुद की सीट पर भी इतने उम्मीदवार नहीं हो पाए और उनकी योजना टांय-टांय फिस्स हो गई। बीजेपी कहती है कि कांग्रेस नेता तो कुछ भी आयं बांय बातें कर रहे हैं। बीजेपी ने इसकी शिकायत चुनाव आयोग से भी की। 

दस-दस प्रस्तावक और समर्थक चाहिए होते हैं

निर्दलीय उम्मीदवार बनने से लोग इसलिए भी हिचकते हैं क्योंकि उनको 25 हजार जमा करने के साथ ही दस-दस प्रस्तावक और समर्थक भी चाहिए होते हैं। चुनाव आयोग में अपनी संपत्ति और अपराधों की जानकारी भी देनी होती है। इसके बाद चुनाव आयोग का डर बना रहता है। आचार संहिता उल्लंघन का पचड़ा अलग से गले पड़ जाता है। रोज के खर्च की जानकारी चुनाव आयोग को देनी पड़ती है। इन सब झंझटों के कारण भी लोग निर्दलीय उम्मीदवार बनने से बचते हैं। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रीना बाबासाहेब कंगाले कहती हैं कि पूर्व आकलन करने की बजाय परिस्थिति आने पर आकलन करेंगे। तात्कालिक परिस्थितियों के आधार पर फैसले लिए जाते हैं, लेकिन ऐसी फिलहाल कोई परिस्थिति नहीं है।

Bhupesh Baghel गेम प्लान