आचार संहिता हटने के बाद अडानी कंपनी फिर करेगी हसदेव के पेड़ों कटाई

adani company project hasdeo forest : हसदेव में अडानी को मिले कोल ब्लॉक से कोयला निकालने के लिए हसदेव के दस लाख से ज्यादा पेड़ काटे जाने हैं।

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Arun Tiwari
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adani company project hasdeo forest : एक बार फिर हसदेव के पेड़ों को काटने का सिलसिला शुरू होने वाला है। आचार संहिता हटने के बाद यानी निकाय और पंचायत चुनाव के बाद अडानी कंपनी हसदेव के पेड़ों को काटेगी। हसदेव बचाओ समिति ने जंगल में घेरा डालना शुरू कर दिया है।

हसदेव में अडानी को मिले कोल ब्लॉक से कोयला निकालने के लिए हसदेव के दस लाख से ज्यादा पेड़ काटे जाने हैं। हाल ही में अडानी कंपनी के चेयरपर्सन गौतम अडानी की सीएम विष्णुदेव साय से हुई मुलाकात ने यहां रहने वाले आदिवासियों को चिंता में डाल दिया है।

गर्मी आते ही अब उनको लगने लगा है कि पेड़ों की कटाई फिर से शुरु होने वाली है। यदि इन पेड़ों की कटाई से पेड़-पौधों की 150 से ज्यादा प्रजातियां खत्म हो जाएंगी। इतना ही नहीं पशु पक्षियों की कई प्रजातियों के वजूद पर भी खतरा मंडराने लगा है। छह लाख से ज्यादा जमीन को सिंचित करने वाले बांगो बांध पर संकट आ गया है। महर्षि वाल्मीकि ने  भी अपनी रामायण के अरण्य कांड में हसदेव के इन पेड़ों का जिक्र किया है। 

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संकट में अरण्य कांड का हसदेव अरण्य 

 
एक बार फिर हसदेव के पेड़ों पर अडानी कंपनी की कुल्हाड़ी चलने वाली है। चुनाव की आचार संहिता हटने के बाद कोयला निकालने मुहिम फिर शुरु हो जाएगी और इसके लिए फिर काटे जाएंगे लाखों पेड़। इसकी गतिविधियां हसदेव में दिखाई भी देने लगी हैं। महर्षि वाल्मीकि की रामायण के अरण्य कांड में जिस हसदेव अरण्य का जिक्र किया है वहीं छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य संकट में है। इसी संकट के कारण हसदेव इन दिनों का चर्चा का केंद्र बना हुआ है।

अडानी की कंपनी यहां से कोयला निकालने के लिए पेड़ों को काटने पर आमादा है। हसदेव अरण्य को बचाने प्रदेश के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों और विदेशों तक में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। भारत का फेफड़ा कहे जाने वाले इस जंगल को काटने के निर्णय से लोग न केवल चिंतित हैं, बल्कि नाराज भी हैं। कोयले की खदानों से कोयला निकालने के लिए हसदेव के करीब दस लाख पेड़ों को काटा जाना है। भगवान राम ने उत्तर से दक्षिण की वन यात्रा की है।

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वाल्मीकि ने उन सभी वनों का जिक्र किया है। राम जब छत्तीसगढ़ पहुंचे थे तो दंडकारण्य और हसदेव से होकर गुजरे थे। इसीलिए अरण्यकाण्ड के 1 से 11 सर्गों में श्री राम द्वारा दण्डकारण्य क्षेत्र में विभिन्न आश्रमों व तीर्थों के उल्लेख में साल के ऊँचे वृक्षों के साथ जामुन, बकुल, चम्पा के वृक्षों वाले नम पर्णपाती वन क्षेत्र का वर्णन मिलता है, जो आज भी छतीसगढ़ के जँगलों की विशिष्टता है। यही पेड़ अब अडानी की आरी के सामने आ गए हैं। 

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350 प्रजातियों पर संकट 

 
हसदेव के पेड़ कटने से पेड़ों के साथ साथ पशु और पक्षियों की कई प्रजातियों पर खत्म होने का संकट मंडरा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकार के इस निर्णय का पर्यावरण पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ेगा। हसदेव के जंगल कटने से पेड़ों की 167 प्रजतियां खत्म हो जाएंगी। वहीं हाथी, भालू, तेंदुआ, भेड़िया, जैसे दर्जनभर से अधिक वन्य जीवों का रहवास खत्म हो जाएगा। इसके अलावा विलुप्त प्राय चिड़ियों, तितलियों और सरीसृपों की दर्जनों प्रजातियां भी विलुप्त हो जाएंगी। जंगल के खत्म होने से मानव हाथी संघर्ष भी बढ़ जाएगा। 

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वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट

  • – तारा, परसा और केते एक्सटेंशन जैसे कोयला खदानों के क्षेत्र में स्तनपाई (मेमल्स) वन्य जीवों की 9 ऐसी प्रजातियां मौजूद हैं, जो अनुसूची-1 में शामिल हैं और जिन्हें संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में रखा गया है। इनमें हाथी, तेंदुआ, भालू, भेड़िया, धारीदार लकड़बग्घा जैसे वन्य जीव शामिल हैं।
  • क्षेत्र में कम से कम 92 पक्षियों की ऐसी प्रजातियां मौजूद हैं, इनमें से 6 अनुसूची-1 में शामिल हैं, जिनमें सफेद आंखों वाली वजर्ड, ब्लैक सोलजर्स काईट  प्रमुख हैं। इसके अलावा तितलियों की लुप्तप्राय प्रजातियां और सरीसृप (राइप्टाइल्स) भी बहुतायत में मौजूद हैं।
  • क्षेत्र में 167 से ज्यादा प्रजातियों के पेड़-पौधे हैं, जिनमें 18 प्रजातियां बेहद संवेदनशील व संकटग्रस्त हैं। रिपोर्ट के अनुसार, यहां 74 प्रजाति के वृक्ष, 41 प्रजाति के छोटे वृक्ष, 32 प्रजाति के औषधीय पौधे व घास, 11 प्रजाति की लताएं और 11 काष्ठ लताओं की प्रजाति मिलती हैं।
  • यहां 23 प्रजाति के सरीसृप और 43 प्रजाति की तितलियां मिलती हैं. यहां अध्ययन के दौरान 31 प्रजाति के स्तनपायी जीव भी मिले हैं, जिनमें से 8 प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं।
  • हसदेव अरण्य लगे हुए उसके पड़ोसी अचानकमार, कान्हा टाइगर रिजर्व और भोरामदेव वन्य जीव अभ्यारण्य के बीच भौगोलिक जुड़ाव है. वन्य जीवों की आवाजाही को देखते हुए इस क्षेत्र में शेरों की आवाजाही से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
  • हसदेव अरण्य के विभिन्न हिस्सों से 40-50 हाथी आवाजाही करते हैं, इसके कारण असामान्य रूप से हाथी-मानव संघर्ष में इजाफा हुआ है. यह हाथियों के नैसर्गिक रहवास से छेड़छाड़ का नतीजा है।
  • हसदेव अरण्य और उसके आसपास मुख्य रुप से आदिवासी बसते हैं, जिनकी आजीविका वन संसाधनों पर निर्भर है। हर महीने की आय में केवल लघु वनोपज का ही 46 फीसदी योगदान होता है। स्थानीय समुदाय की कुल वार्षिक आय का 60 से 70 फीसदी वन आधारित है।
  • इसलिए ये समुदाय इन जंगलों के संरक्षण को प्राथमिकता देते हैं। स्थानीय समुदाय इस जंगल में खनन गतिविधियों का समर्थन नहीं करते, क्योंकि वो इसे जंगलों के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं। इसके अलावा समुदायों के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू भी हैं, जिन्हें बचाने के लिए भी यहां खनन का विरोध कर रहे हैं।


हसदेव बांगो बांध में पानी की हो जाएगी कमी 


हसदेव बांगो बांध से जांजगीर-चांपा जिले की 6 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित होती है। जांजगीर-चांपा जिला राज्य में सर्वाधिक 72 फीसदी सिचिंत इलाका है। यह वही इलाका है, जहां राज्य में धान की उपज सर्वाधिक है। हसदेव के इलाके में खनन होने से हसदेव बांध के पानी का कैचमेंट एरिया बुरी तरह से प्रभावित होगा और बांध में पानी की कमी हो जाएगी। हसदेव से निकलने वाली छोटी-छोटी नदियों का पानी कई शहरों की जलापूर्ति करता है। खनन की स्थिति में पानी कम हुआ तो बिलासपुर जैसे शहरों में पीने के पानी का संकट भी पैदा हो सकता है। जिस बिजली के नाम पर कोयले के उत्खनन करने की तैयारी है, हसदेव बांगो बांध से 120 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। जाहिर है, बांध में पानी नहीं रहा तो यह बिजली उत्पादन भी दम तोड़ देगा।

यह है हसदेव का विवाद 

 
हसदेव क्षेत्र में स्थित परसा कोल ब्लॉक परसा ईस्ट और केते बासन कोल ब्लॉक का विस्तार हो रहा है। सीधी सी बात इतनी है कि जंगलों को काटा जाएगा और उन जगहों को पर कोयले की खदानें बनाकर कोयला खोदा जाएगा। स्थानीय लोग और वहां रहने वाले आदिवासी इस आवंटन का विरोध कर रहे हैं। पिछले 10 सालों में हसदेव के अलग-अलग इलाकों में जंगल काटने का विरोध चल रहा है।

कई स्थानीय संगठनों ने जंगल बचाने के लिए संघर्ष किया है और आज भी कर रहे हैं। विरोध के बावजूद कोल ब्लॉक का आवंटन कर दिए जाने की वजह से स्थानीय लोग बेहद नाराज हैं। आदिवासियों को अपने घर और जमीन गंवाने का डर है। वहीं, हजारों परिवार अपने विस्थापन को लेकर चिंतित हैं। कोल ब्लॉक के विस्तार की वजह से जंगलों को काटा जाना है।

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