कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में 6 करोड़ का ऑडिटोरियम 4 साल में खंडहर, मरम्मत पर अब 4 करोड़ का खर्च

कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में 7 करोड़ रुपये की लागत से बना 700 सीटों वाला ऑडिटोरियम महज चार साल में ही खंडहर में तब्दील हो गया है। यह ऑडिटोरियम काली मिट्टी पर कमजोर नींव और बारिश के पानी के रिसाव के कारण जर्जर हुआ है।

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Krishna Kumar Sikander
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Auditorium worth Rs 6 crore in Kushabhau Thackeray Journalism University thesootr
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छत्तीसगढ़ के रायपुर स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में 7 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित 700 सीटर ऑडिटोरियम महज चार साल में जर्जर हालत में पहुंच गया है। काली मिट्टी पर बने इस भवन की नींव कमजोर होने, बारिश के पानी के रिसाव, और अधूरे निर्माण कार्यों ने इसे खंडहर में तब्दील कर दिया है।

अब इसकी मरम्मत के लिए 4 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बजट चाहिए। इस मामले में लापरवाही और अनियमितताओं की जांच के बाद मरम्मत का काम शुरू किया गया है, लेकिन विश्वविद्यालय और लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के बीच तनातनी ने इस परियोजना को और जटिल बना दिया है।

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6.43 करोड़ की परियोजना, फिर भी अधूरी

27 अप्रैल 2018 को शासन ने ऑडिटोरियम के निर्माण के लिए 7 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। पीडब्ल्यूडी ने मेसर्स ईशान कंस्ट्रक्शन कंपनी को 6.43 करोड़ रुपये में ठेका दिया। 31 मार्च 2021 तक भवन का निर्माण पूरा हो गया, लेकिन कुर्सियों, छत की फिनिशिंग, और साज-सज्जा जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए दूसरा चरण शुरू होना था। इसके लिए अतिरिक्त बजट की जरूरत थी, जो स्वीकृत नहीं हुआ।

नतीजतन, पीडब्ल्यूडी ने परियोजना को अधर में छोड़ दिया।निर्माण पूरा होने के बाद पीडब्ल्यूडी ने विश्वविद्यालय को ऑडिटोरियम हैंडओवर करने के लिए पत्र लिखा, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने अधूरे कार्यों का हवाला देकर इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इस खींचतान के बीच चार साल बीत गए, और ऑडिटोरियम की हालत खस्ता हो गई।

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काली मिट्टी और लापरवाही ने बिगाड़ा खेल

हाल ही में गठित पांच सदस्यीय जांच समिति ने ऑडिटोरियम की स्थिति का जायजा लिया, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।

काली मिट्टी पर निर्माण : ऑडिटोरियम काली मिट्टी पर बनाया गया, जो नींव के लिए अनुपयुक्त है। भवन से 200 मीटर की दूरी पर एक नाला है, जिसका पानी बारिश में भवन तक पहुंचता है, जिससे दीवारों में हेयरलाइन दरारें और बाहरी डक्ट में क्षति हुई है।

छत और संरचना का बुरा हाल : छत का प्लास्टर गिर रहा है, और हाल ही में भवन का अगला हिस्सा भी ढह गया। छत पर टिन शेड लगाकर छोड़ दिया गया, जिससे भवन खंडहर जैसा दिखने लगा।

अधूरी साज-सज्जा : ऑडिटोरियम में कुर्सियां नहीं लगीं, और बुनियादी सुविधाएं जैसे बिजली और सजावट का काम अधूरा है।

चोरी और क्षति : जांच में पता चला कि नल और अन्य सामान चोरी हो गए, जबकि रखरखाव के अभाव में बाहरी डक्ट क्षतिग्रस्त हो गए।

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मरम्मत पर 4 करोड़ का अतिरिक्त बोझ

जांच के बाद मरम्मत का काम शुरू किया गया है, जिसमें पहले ही 72 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। विश्वविद्यालय के कुलसचिव सुनील शर्मा ने बताया कि मरम्मत पूरी होने और चोरी व अधूरे कार्यों की जांच के बाद ही ऑडिटोरियम को हैंडओवर लिया जाएगा। पीडब्ल्यूडी के मुख्य अभियंता ज्ञानेश्वर कश्यप के अनुसार, ऑडिटोरियम को पूरी तरह कार्यात्मक बनाने के लिए 4 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बजट चाहिए। विश्वविद्यालय द्वारा बजट स्वीकृत होने के बाद ही काम आगे बढ़ेगा।

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पीडब्ल्यूडी और विश्वविद्यालय के बीच तनातनी

पीडब्ल्यूडी ने 19 जनवरी 2020 को विश्वविद्यालय के कुलसचिव को पत्र लिखकर दूसरे चरण के निर्माण के लिए प्रशासकीय स्वीकृति मांगी थी। पत्र में साफ कहा गया था कि बिना दूसरे चरण के काम के भवन की उपयोगिता नहीं होगी। लेकिन विश्वविद्यालय ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। पीडब्ल्यूडी जोन 3 के तत्कालीन कार्यकारी अभियंता पवन अग्रवाल, जो अब रिटायर हो चुके हैं, ने कहा कि इस मामले में उनकी जिम्मेदारी चार साल पहले खत्म हो चुकी थी।

कैसे बिगड़ा ऑडिटोरियम का हाल?

गलत जगह पर निर्माण : काली मिट्टी और नाले की निकटता ने भवन की नींव को कमजोर किया।
बजट की कमी : दूसरे चरण के लिए बजट स्वीकृत न होने से साज-सज्जा और कुर्सियों का काम रुका रहा।
रखरखाव का अभाव : चार साल तक भवन का कोई रखरखाव नहीं हुआ, जिससे यह जर्जर हो गया।
प्रशासनिक लापरवाही : पीडब्ल्यूडी और विश्वविद्यालय के बीच समन्वय की कमी ने परियोजना को नुकसान पहुंचाया।

सरकारी धन की बर्बादी का एक और उदाहरण

6.43 करोड़ रुपये की लागत से बना ऑडिटोरियम चार साल में खंडहर में तब्दील हो गया, और अब इसकी मरम्मत पर 4 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च प्रस्तावित है। यह मामला सरकारी परियोजनाओं में लापरवाही, खराब नियोजन, और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। यदि समय पर बजट स्वीकृत और रखरखाव सुनिश्चित किया जाता, तो यह स्थिति टाली जा सकती थी। अब सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने चुनौती है कि इस ऑडिटोरियम को उपयोगी बनाया जाए, ताकि जनता का पैसा बर्बाद न हो।

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