बलरामपुर में भीड़तंत्र की बर्बरता, बाइक चोरी के शक में दो युवकों को बाइक से बांधकर पीटा

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के चांदो थाना क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम पंचायत खजुरियाडीह में भीड़ ने कानून को ताक पर रखकर अपनी अदालत सजा दी। दो युवकों पर बाइक चोरी का शक होने पर ग्रामीणों ने उन्हें पेड़ से बांधकर बेरहमी से पीटा।

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Krishna Kumar Sikander
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Brutality of mob in Balrampur the sootr
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छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के चांदो थाना क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम पंचायत खजुरियाडीह में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां भीड़ ने कानून को ताक पर रखकर अपनी अदालत सजा दी। दो युवकों पर बाइक चोरी का शक होने पर ग्रामीणों ने उन्हें बाइक से बांधकर बेरहमी से पीटा। इस अमानवीय कृत्य को न केवल अंजाम दिया गया, बल्कि इसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल भी कर दिया गया। यह घटना न केवल कानून-व्यवस्था की अनदेखी को उजागर करती है, बल्कि समाज में बढ़ते भीड़तंत्र और जंगलराज की खतरनाक प्रवृत्ति की ओर भी इशारा करती है।

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ऐसे अनियंत्रित हुई भीड़ 

जानकारी के अनुसार, खजुरियाडीह गांव में कुछ ग्रामीणों को दो युवकों पर बाइक चोरी का संदेह हुआ। बिना किसी ठोस सबूत या पुलिस की मदद लिए, ग्रामीणों ने दोनों युवकों को पकड़ लिया और उन्हें पेड़ से बाइक के साथ बांध दिया। इसके बाद, भीड़ ने उन पर लाठियों और डंडों से हमला किया। पीड़ितों की चीखें और दर्द भरी आवाजें गूंजती रहीं, लेकिन भीड़ का गुस्सा शांत नहीं हुआ। हैरानी की बात यह है कि इस क्रूरता को कैमरे में कैद कर सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया, जो समाज में असंवेदनशीलता और कानून के प्रति अवहेलना का स्पष्ट प्रमाण है।

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भीड़तंत्र का बढ़ता खतरा

यह घटना केवल बाइक चोरी के आरोप तक सीमित नहीं है। यह एक गंभीर सवाल खड़ा करती है कि क्या अब गांवों में भीड़ ही पुलिस और न्यायालय की भूमिका निभाने लगी है? भारतीय संविधान हर नागरिक को निष्पक्ष सुनवाई और न्याय का अधिकार देता है, चाहे वह दोषी हो या निर्दोष। लेकिन, इस तरह की घटनाएं संवैधानिक मूल्यों को ठेस पहुंचाती हैं और समाज में डर व अविश्वास का माहौल पैदा करती हैं। संदेह के आधार पर किसी को यूं सजा देना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि यह सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर करता है।

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कानून-व्यवस्था पर सवाल

इस घटना ने स्थानीय प्रशासन और पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए हैं। यदि ग्रामीण इतनी आसानी से कानून को अपने हाथ में ले सकते हैं, तो यह पुलिस की निष्क्रियता और जनता के बीच कानूनी जागरूकता की कमी को दर्शाता है। यह चिंताजनक है कि ऐसी घटनाओं के बाद भीड़ का यह “इंसाफ” समाज में डर और अराजकता को बढ़ावा देता है। प्रशासन की जवाबदेही केवल दोषियों को सजा देने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि ऐसी मानसिकता को जड़ से खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

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समाज और प्रशासन के लिए सबक

इस घटना ने समाज के सामने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं, जहां संदेह और गुस्से के आधार पर सजा दी जाएगी? क्या हमारी न्याय व्यवस्था इतनी कमजोर हो चुकी है कि लोग स्वयं को कानून से ऊपर समझने लगे हैं? इस तरह की घटनाएं न केवल कानून के शासन को चुनौती देती हैं, बल्कि सामाजिक एकता और विश्वास को भी नष्ट करती हैं। प्रशासन को चाहिए कि इस मामले में कड़ी कार्रवाई करे। न केवल उन लोगों के खिलाफ, जिन्होंने युवकों को पीटा, बल्कि उन लोगों के खिलाफ भी, जिन्होंने इस कृत्य का वीडियो बनाकर इसे वायरल किया। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में कानूनी जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाए जाने चाहिए, ताकि लोग कानून को अपने हाथ में लेने की बजाय पुलिस और न्यायालय पर भरोसा करें।

खजुरियाडीह की घटना एक चेतावनी

खजुरियाडीह की यह घटना एक चेतावनी है कि अगर समय रहते भीड़तंत्र की इस प्रवृत्ति पर लगाम नहीं लगाई गई, तो समाज में जंगलराज स्थापित होने में देर नहीं लगेगी। यह समय है कि हम सब मिलकर कानून के शासन को मजबूत करें और ऐसी मानसिकता को खत्म करें जो हिंसा और असंवेदनशीलता को बढ़ावा देती है। समाज का हर व्यक्ति, चाहे वह शहर में हो या गांव में, यह समझे कि न्याय का अधिकार केवल कानून और अदालत को है, न कि भीड़ को। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वाकई एक सभ्य समाज की ओर बढ़ रहे हैं, या फिर अराजकता की राह पर? जवाब हमारी सामूहिक जिम्मेदारी और कार्रवाई में निहित है।

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