छत्तीसगढ़ में शिक्षा सुधार का नया मॉडल, अब कमजोर नहीं काबिल बनेंगे बच्चे, भाषा और गणित पर खास फोकस

छत्तीसगढ़ सरकार अब बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर खास ध्यान दे रही है। खासतौर पर उनकी भाषा और गणित की समझ को बढ़ाया जा रहा है। सरकार की यह कोशिश बच्चों की पढ़ाई की नींव यानी प्राइमरी एजुकेशन को मजबूत करने की है ताकि बड़ी कक्षाओं में उनको दिक्कत न जाए।

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Arun Tiwari
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Raipur.छत्तीसगढ़ सरकार अब बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर खास ध्यान दे रही है। खासतौर पर उनकी भाषा और गणित की समझ को बढ़ाया जा रहा है। सरकार की यह कोशिश बच्चों की पढ़ाई की नींव यानी प्राइमरी एजुकेशन को मजबूत करने की है ताकि बड़ी कक्षाओं में उनको दिक्कत न जाए। सरकार ने इसके लिए एक नया मॉडल शुरु किया है। यह पायलट प्रोजेक्ट रायपुर से शुरु किया जा रहा है।

इसके असर के बाद अन्य जिलों में इसे लागू किया जाएगा। सरकार ने युक्तियुक्तकरण कर शिक्षा सुधार में नया काम किया है। अब प्रदेश में एक भी स्कूल ऐसा नहीं है जो शिक्षक विहीन हो। वहीं 10 से कम बच्चों वाले स्कूल को दूसरे स्कूलों में मर्ज किया है ताकि छात्रों को बेहतर शिक्षा प्राप्त हो। 

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कमजोर बच्चों पर फोकस : 

सरकार ने शिक्षा सुधार का नया मॉडल लागू किया है। इस मॉडल से बच्चों की पढ़ाई लिखाई को बेहतर बनाने की कोशिश की जा रही है। रायपुर में  बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए एक महत्वाकांक्षी अभियान पढ़े रायपुर, लिखे रायपुर, बढ़े रायपुर की शुरुआत की है। इस पहल के तहत प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों को भाषा और गणित में दक्ष बनाने के लिए हर माह टेस्ट लेकर उनकी क्षमता का मूल्यांकन किया जा रहा है।शिक्षा विभाग की ताजा रिपोर्ट बताती है कि कक्षा 5वीं और 8वीं के केवल 20 प्रतिशत छात्र ही बी ग्रेड तक पहुंच पाए हैं।

यह आंकड़ा सरकार के लिए चिंता का विषय है क्योंकि बड़ी संख्या में बच्चे अभी भी अपनी कक्षा के अनुरूप पढ़ने-लिखने और गणितीय गणना करने में सक्षम नहीं हैं। जिला शिक्षा अधिकारी डॉ. हिमांशु भारद्वाज कहते हैं कि इस अभियान का लक्ष्य है कि प्रत्येक बच्चा भाषा और गणित में बुनियादी समझ हासिल करे। हर माह टेस्ट लेकर बच्चों की योग्यता का मूल्यांकन किया जा रहा है।

जो बच्चे कमजोर पाए जाते हैं, उनके लिए अतिरिक्त क्लास, रिमेडियल टीचिंग और शिक्षकों द्वारा व्यक्तिगत मार्गदर्शन की व्यवस्था की गई है। जिले के सभी ब्लॉकों में शिक्षा गुणवत्ता सुधार के लिए विशेष निगरानी दल बनाए गए हैं। स्कूलवार प्रदर्शन रिपोर्ट तैयार कर शिक्षकों की जिम्मेदारी तय की जा रही है। रायपुर में यह पायलट प्रोजेक्ट है। यदि इसके बेहतर परिणाम मिले तो इसे दूसरे जिलों में लागू किया जाएगा। 

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तीसरी और पांचवीं कक्षा के आधे बच्चे पाठ नहीं पढ़ पा रहे : 

असर (ASER) सर्वे के अनुसार, रायपुर जिले की स्थिति राज्य औसत से काफी नीचे है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि तीसरी कक्षा के 50 फीसदी से अधिक बच्चे हिंदी का पाठ पढ़ने में असमर्थ हैं। जबकि राज्य का औसत 79.6 प्रतिशत है। पांचवीं कक्षा में यह आंकड़ा घटकर 49.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति बुनियादी शिक्षा में गंभीर खाई को दर्शाती है। जुलाई और अगस्त माह में हुई परीक्षाओं के परिणामों से स्पष्ट हुआ है कि कुछ ब्लॉकों ने सुधार दिखाया है जबकि कुछ पिछड़ गए हैं।

जुलाई माह में 5वीं और 8वीं कक्षा के 20 फीसदी छात्र बी ग्रेड में आए, जबकि 30 फीसदी सी ग्रेड और 10 फीसदी डी ग्रेड में रहे। अगस्त माह में बी ग्रेड में बच्चों की संख्या घटकर 17 फीसदी रह गई, जबकि सी ग्रेड वाले 26 फीसदी और डी ग्रेड वाले 13 फीसदी रहे। इन परीक्षाओं में धमतरी ब्लॉक का सबसे कमजोर प्रदर्शन रहा। जहां जुलाई में केवल 15 फीसदी और अगस्त में 13 फीसदी छात्र ही बी ग्रेड तक पहुंचे।  रायपुर ग्रामीण ब्लॉक ने बेहतर परिणाम दर्ज करते हुए सुधार की उम्मीदें बढ़ाई हैं।

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इस अभियान का मकसद :

अभियान के तहत शिक्षकों को न सिर्फ नियमित मूल्यांकन बल्कि बच्चों की व्यक्तिगत प्रगति रिपोर्ट तैयार करने की भी जिम्मेदारी दी गई है। जिले में रीडिंग कॉर्नर और मैथ क्लब जैसी गतिविधियां भी शुरू की जा रही हैं, ताकि बच्चे सीखने की प्रक्रिया से जुड़ाव महसूस करें। सरकार कहती है कि हमारा उद्देश्य केवल परीक्षा परिणाम सुधारना नहीं बल्कि बच्चों में भाषा और गणित की समझ विकसित करना है। आने वाले महीनों में हमें बेहतर नतीजों की उम्मीद है।

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