लाल की रोटी पर लाले, जिस योजना ने दिलाया राष्ट्रीय सम्मान, सरकार ने उसे ही बदल दिया

छत्तीसगढ़ सरकार ने बच्चों के बौनेपन और कुपोषण को कम करने वाली "रोटी खिलाने" की पुरस्कार विजेता योजना बंद कर दी है। इस योजना से बच्चों की लंबाई में काफी सुधार आया था।

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VINAY VERMA
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छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी उस 'रोटी खिलाने वाली योजना' को बंद कर दिया है, जिसे साल 2018 में राष्ट्रीय सम्मान मिला था। यह योजना बच्चों को सुपोषित करने के लिए शुरू की गई थी। राज्य में बच्चों का शारीरिक विकास (खासकर लंबाई) बहुत खराब था। इस स्कीम के तहत, आंगनबाड़ियों में बच्चों को रोटी दी जाती थी।

इसका एक बड़ा मकसद बच्चों की खाने की आदत बदलना भी था। ताकि बड़े होने पर वे सिर्फ चावल ही नहीं, बल्कि रोटी भी खाएं। इस पहल का असर भी दिखा और बच्चों के पोषण में सुधार हुआ। लेकिन अब सरकार ने इसे वापस ले लिया है।

कितना हुआ था सुधार

2005-06 में प्रकाशित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 3 में देश में 48 प्रतिशत बच्चों के बौनेपन की चिंताजनक दर बताई गई थी। हालांकि, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 में यह दर घटकर 38.4 प्रतिशत हो गई है। छत्तीसगढ़ में बौनेपन की दर 2005-06 में राज्य के 52.9 प्रतिशत के भारी स्तर से घटकर एनएचएफएस 4 मे 37.6 प्रतिशत हो गई। अब यह और घटकर 32 प्रतिशत के आस-पास आ गई थी। इसके पीछे का कारण पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन का मिलना बताया जा रहा था। 

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छत्तीसगढ़ सरकार की पुरस्कार विजेता रोटी योजना बंद

👉 छत्तीसगढ़ सरकार की रोटी योजना हुई बंद, जिस पर 2018 में इनाम भी मिला था।

👉 इस रोटी योजना को एस विवाद के चलते बंद कर दिया गया।

👉 इस रोटी से बच्चों का बौनापन 52% से गिरकर 32% पर आ गया था।

👉 अब नाश्ते में बस दलिया मिल रहा है, जिससे ज्यादातर बच्चे आंगनबाड़ी ही नहीं आ रहे।

👉 योजना बंद करने की वजह यह है कि रोटी के आटे में गड़बड़ी के आरोप लगे थे।

 

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ऑप्शन में क्या दे रहे

महिला एवं बाल विकास विभाग ने 2 महीने पर योजना में बदलाव किया है। पहले हर रोज दोपहर के खाने में चावल के साथ रोटी देने का प्रावधान था लेकिन अब विकल्प के तौर पर सुबह के नास्ते में 3 दिन मीठा और 3 दिन नमकीन दलिया जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार सुबह नास्ते के समय 50 प्रतिशत बच्चे आंगनबाड़ी नहीं आते। जो आते भी है, वे दलिया को नापसंद कर देते हैं। 

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क्यों कर दिया बंद

छत्तीसगढ़ सरकार ने कुपोषण (कुपोषण न्यूज) को दूर करने के लिए बच्चों को रोटी देने की शुरुआत की। जिसके लिए साल 2008 से प्रदेश के आंगनबाड़ियों में फोर्टिफाइड आटे की सप्लाई दे रही थी। जिसे महिला स्वसहायता समूह तैयार करती थी। पिछली सरकार में यह काम प्रदेश के बीज निगम को दे दिया गया। लेकिन 2 साल से वर्तमान सरकार ने प्रदेश के 8 स्वसहायता समूहों का चयन कर फोर्टिफाइड आटा और रेडी-टू-ईट (रेडी-टू-ईट फ़ूड) का निर्माण करवाने लगीं लेकिन समूहों की चयन पर सवाल उठने लगे। आरोप लगे की चयन के दौरान गड़बड़ी की गई। 

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व्यवहार परिवर्तन महत्वपूर्ण विषय

व्यवहार विज्ञान के विशेषज्ञ मनीष सिंह का कहना है कि खाने-पीने की आदतों को बदलना बहुत जरूरी है। मनीष सिंह का स मानना है कि आंगनबाड़ी में बच्चों को रोटी खिलाना भविष्य के लिए एक शानदार कदम था। इससे ये बच्चे जब जवान होते तो थाली में चावल के साथ रोटी की भी आदत हो जाती। (छत्तीसगढ़ न्यूज) मनीष सिंह के हिसाब से, रोटी को हटाकर सिर्फ दलिया देना सही नहीं है। रोटी के साथ दलिया देना बच्चों के लिए ज्यादा फायदेमंद होता।

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