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छत्तीसगढ़ में चरण पादुका योजना को लेकर एक बार फिर सियासी घमासान तेज हो गया है। यह योजना, जो तेंदूपत्ता संग्राहकों, खासकर आदिवासी समुदायों को जूते, चप्पल, और अन्य आवश्यक सामग्री प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी, अब राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की विष्णु देव साय सरकार ने इस योजना को फिर से शुरू करने की घोषणा की है, जिसे कांग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल में बंद कर दिया था। इस घोषणा के बाद कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे "कमीशन पादुका योजना" करार दिया है और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं।
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चरण पादुका योजना का उद्देश्य
चरण पादुका योजना की शुरुआत छत्तीसगढ़ में नवंबर 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की भाजपा सरकार ने की थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य तेंदूपत्ता संग्राहकों, विशेषकर आदिवासी समुदायों को जंगल में काम करने के दौरान सुरक्षा और सुविधा प्रदान करना है। तेंदूपत्ता संग्रह का काम करने वाले लोग अक्सर नंगे पैर जंगलों में जाते हैं, जहां कांटे, पत्थर, और जहरीले जीव-जंतुओं के कारण उनके पैरों को नुकसान पहुंचता है। इस योजना के तहत हर साल तेंदूपत्ता संग्राहकों को मुफ्त जूते या चप्पल प्रदान किए जाते हैं। शुरुआत में यह योजना केवल पुरुष संग्राहकों के लिए थी, लेकिन 2008 में इसमें महिलाओं को भी शामिल किया गया। 2013 से पुरुषों को जूते और महिलाओं को चप्पल देने की व्यवस्था शुरू हुई। इसके अलावा, लाभार्थियों को साड़ी, छाता, और पानी की बोतल जैसी अन्य सामग्री भी दी जाती है।
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साय सरकार ने की योजना का पुनर्जनन की घोषणा
छत्तीसगढ़ में 2023 में भाजपा की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने चरण पादुका योजना को फिर से शुरू करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह योजना केंद्र सरकार की "मोदी की गारंटी" के तहत किए गए वादों का हिस्सा है। साय ने जोर देकर कहा कि पिछले 16-17 महीनों में उनकी सरकार ने जनता से किए गए सभी वादों को पूरा किया है, और योजना का पुनर्जनन भी इसी दिशा में एक कदम है। उन्होंने बताया कि गर्मी के मौसम में तेंदूपत्ता संग्रह करने वाले लोग जंगलों में नंगे पैर जाते हैं, जिसके कारण उनके पैरों में चोट लगने या जहरीले जीव-जंतुओं के काटने का खतरा रहता है। इस योजना के जरिए सरकार का लक्ष्य इन श्रमिकों को सुरक्षा प्रदान करना है। साय ने घोषणा की कि जून 2025 के अंत तक इस योजना का औपचारिक शुभारंभ किया जाएगा।
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कांग्रेस ने लगाया "कमीशन पादुका" का आरोप
योजना को फिर से शुरू करने की घोषणा के तुरंत बाद, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने इस पर तीखा हमला बोला। उन्होंने इसे "कमीशन पादुका योजना" करार देते हुए आरोप लगाया कि यह योजना भाजपा सरकार के लिए भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का जरिया है। बैज ने दावा किया कि इस योजना के तहत तेंदूपत्ता संग्राहकों को दिए जाने वाले जूतों की गुणवत्ता खराब होती है, और अक्सर लाभार्थियों को एक पैर में 8 नंबर का जूता और दूसरे में 9 नंबर का जूता दिया जाता है, जो उपयोगी नहीं होता। उन्होंने कहा कि भाजपा के 15 साल के शासनकाल में इस योजना में भ्रष्टाचार का "खेल" देखा गया है। जब 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी, तो उन्होंने इस योजना को बंद कर दिया था और इसके बजाय तेंदूपत्ता संग्राहकों को बोनस के रूप में सीधे उनके बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर किए थे। बैज ने आरोप लगाया कि साय सरकार अब इस योजना को फिर से शुरू करके आदिवासियों के नाम पर "मोटी कमाई" का जरिया बना रही है। उन्होंने इसे "लूट की दुकान" खोलने की संज्ञा दी और सरकार से पारदर्शिता सुनिश्चित करने की मांग की।
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भाजपा का कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के पलटवार
कांग्रेस के आरोपों का जवाब देते हुए भाजपा के मीडिया प्रमुख अमित चिमनानी ने पलटवार किया। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भ्रष्टाचार पर भाषण देने से पहले अपने कार्यकाल की जांच करानी चाहिए, जिसमें उनके निजी सचिव सहित कई अधिकारी जेल में हैं। चिमनानी ने दावा किया कि कांग्रेस सरकार ने तेंदूपत्ता संग्राहकों के हितों की अनदेखी की और पादुका योजना को बंद करके आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित किया। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार इस योजना को फिर से शुरू करके आदिवासी समुदायों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।
योजना का प्रभाव और लाभार्थी
चरण पादुका योजना का उद्देश्य तेंदूपत्ता संग्राहकों को उनके काम के दौरान होने वाली परेशानियों से बचाना है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में लाखों लोग तेंदूपत्ता संग्रह का काम करते हैं, जो बीड़ी बनाने में उपयोग होता है। इस काम में परिवार के कई सदस्य शामिल होते हैं, और योजना के तहत अब तक करीब 15 लाख लोगों को जूते और चप्पल वितरित किए जा चुके हैं। हालांकि, कुछ आदिवासी समुदायों ने मांग की है कि योजना के तहत परिवार के हर सदस्य को जूते या चप्पल दिए जाएं, क्योंकि तेंदूपत्ता संग्रह में पूरा परिवार हिस्सा लेता है। अभी योजना में प्रत्येक परिवार के एक पुरुष और एक महिला सदस्य को ही लाभ दिया जाता है।
राजनीतिक निहितार्थ
चरण पादुका योजना को लेकर छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बीच छिड़ा यह विवाद केवल एक कल्याणकारी योजना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आदिवासी वोट बैंक को साधने की रणनीति का भी हिस्सा है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय की आबादी काफी अधिक है, और यह दोनों पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण वोट आधार है। भाजपा इस योजना को "मोदी की गारंटी" के तहत पेश करके अपनी प्रतिबद्धता दिखाना चाहती है, जबकि कांग्रेस इसे भ्रष्टाचार का जरिया बताकर सरकार की मंशा पर सवाल उठा रही है।
राजनीति में एक बड़ा मुद्दा
चरण पादुका योजना, जो मूल रूप से तेंदूपत्ता संग्राहकों के कल्याण के लिए शुरू की गई थी, अब छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन गई है। जहां भाजपा इसे आदिवासियों के लिए राहत और सम्मान का प्रतीक बता रही है, वहीं कांग्रेस इसे भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का जरिया करार दे रही है। योजना का औपचारिक शुभारंभ जून 2025 के अंत में होने वाला है, और इसके कार्यान्वयन और पारदर्शिता पर सभी की नजरें टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह योजना वास्तव में तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए कितनी लाभकारी साबित होती है और क्या यह सियासी विवाद को शांत कर पाती है।
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