सीजी में डॉक्टरों, नर्सों की कमी पूरी करने के लिए कोई पॉलिसी नहीं, डब्ल्यूएचओ के मानकों से बहुत पीछे है प्रदेश

केग की रिपोर्ट में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य की स्थिति डब्ल्यूएचओ और राष्ट्रीय मानकों से बहुत पीछे है। जनसंख्या के अनुपात में डॉक्टरों के पद समान रुप से मंजूर नहीं किए गए जिससे जिलों में डॉक्टरों की भारी असमानता है...

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Arun tiwari
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RAIPUR. प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं पर सीएजी ने रिपोर्ट जारी की है। कैग ने छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सेवाओं की लचर स्थिति पर कड़ी टिप्पणी की है। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टॉफ की कमी पूरी करने के लिए सरकार के पास कोई पॉलिसी ही नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य की स्थिति डब्ल्यूएचओ और राष्ट्रीय मानकों से बहुत पीछे है। जनसंख्या के अनुपात में डॉक्टरों के पद समान रुप से मंजूर नहीं किए गए जिससे जिलों में डॉक्टरों की भारी असमानता है। जिलों की स्वास्थ्य सेवाओं के स्वीकृत पदों में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की तीन फीसदी, स्टॉफ नर्स की 27 फीसदी और पैरामेडिकल स्टॉफ की 24 फीसदी कमी है। प्रदेश में कुल स्वीकृत पदों में 34 फीसदी पद खाली पड़े हैं।   

74 फीसदी गर्भवती महिलाओं को नहीं मिली आयरन की गोली 

रिपोर्ट के अनुसार 60 फीसदी महिलाओं को ही चार एनएनसी यानी प्रसव पूर्व देखभाल मिली है। वहीं सिर्फ 26 फीसदी महिलाओं को आयरन फोलिक एसिड की टेबलेट मिल पाई है। यानी 74 फीसदी महिलाएं अपनी गर्भावस्था के दौरान आयरन फोलिक एसिड की गोली तक नहीं खा पाईं। सी सेक्शन डिलेवरी में बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन ये ऑपरेशन निजी अस्पतालों में ज्यादा है। सीएजी की टीम को ये भी देखने को आया कि 22 फीसदी जिलों में नवजात बच्चों को रखने के लिए शिशु देखभाल सेवा उपलब्ध नहीं थी। नवजात शिशु मृत्युदर कोंडागांव में सबसे ज्यादा और बिलासपुर में सबसे कम है। 14 सामुदायिक केंद्रों में से सिर्फ एक में अल्ट्रा सोनोग्राफी मशीन उपलब्ध थी। 15 जिलों में लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस की संख्या पर्याप्त नहीं है। नौ जिलों में एंबुलेंस का रिस्पांस टाइम आधे घंटे से ज्यादा रहा।  

स्थानीय एजेंसियों से खरीदी दवाएं 

कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2016 से 2022 तक केंद्रीयकृत एजेंसी होने के बाद भी दवाएं और उपकरण स्थानीय एजेंसियों से खरीदे गए। सरकार खरीद की पॉलिसी ही नहीं बना पाई। 278 टेंडर में से 165 टेंडर कर्ताओं को काम दिया गया जिससे दवाओं की सप्लाई में देरी हुई। इस देरी से उंचे दामों पर दवाएं खरीदी गईं। डिमांड के अनुसार दवाओं की उपलब्धता का प्रतिशत 48 से 62 फीसदी रहा। ब्लैक लिस्टेड फर्मों से भी दवाएं खरीदी गईं।

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