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छत्तीसगढ़ के मोहला-मानपुर, खैरागढ़, और राजनांदगांव जिलों में फर्जी नौकरी का सनसनीखेज मामला सामने आया है। पिछले 38 महीनों से नौ लोग फर्जी नियुक्ति पत्रों के आधार पर शासकीय कर्मचारियों के रूप में कार्यरत हैं, और इस दौरान सरकारी खजाने को लाखों रुपये का चूना लगाया गया है।
मामले में राजनांदगांव के तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) और वर्तमान में दुर्ग शिक्षा संभाग के संयुक्त संचालक आर.एल. ठाकुर की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। इसके अलावा, मोहला-मानपुर के डीईओ फत्तेराम कोसारिया और विकासखंड शिक्षा अधिकारी राजेंद्र देवांगन पर भी फर्जी कर्मचारियों को वेतन दिलाने का आरोप है। यदि सरकार ने सख्ती दिखाई, तो इन तीन जिलों के शिक्षा अधिकारी जेल की सलाखों के पीछे जा सकते हैं।
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कैसे बिछा फर्जीवाड़े का जाल?
जांच में खुलासा हुआ कि नौ जालसाजों को फर्जी नियुक्ति पत्रों के आधार पर राजनांदगांव, मोहला-मानपुर, और खैरागढ़-अंबागढ़ चौकी के शिक्षा विभाग में तृतीय श्रेणी कर्मचारी (कंप्यूटर ऑपरेटर) के रूप में नियुक्ति की गई। इनको मई 4, 2022 को डीईओ ने जॉइनिंग दी। उस समय राजनांदगांव के डीईओ आरएल ठाकुर थे। जॉइनिंग के दूसरे दिन 5 मई 2022 को इन्हें तीनों जिलों के शिक्षा विभाग में बांट दिया गया।
ये कर्मचारी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय, विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय, कलेक्ट्रेट की वित्तीय शाखा, खनिज न्यास, और अन्य महत्वपूर्ण विभागों में तैनात हैं। हैरानी की बात यह है कि इनके पास कोई वैध नियुक्ति पत्र, बायोडाटा, या पहचान संबंधी दस्तावेज नहीं हैं।
फर्जी दस्तावेजों का खेल
दस्तावेजों के अनुसार, इन जालसाजों की सेवा पुस्तिका में शिक्षा आयोग के सचिव ओ.पी. मिश्रा के फर्जी हस्ताक्षर और सील का उपयोग किया गया। इसके अलावा, शिक्षा विभाग के तत्कालीन अवर सचिव सरोज उइके के नाम पर भी कूट रचित दस्तावेज तैयार किए गए।
इन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जालसाजों को न केवल नौकरी दी गई, बल्कि विभिन्न हाई स्कूलों से उनका वेतन भी निकाला जा रहा है। मोहला-मानपुर के डीईओ फत्तेराम कोसारिया और विकासखंड शिक्षा अधिकारी राजेंद्र देवांगन पर अपने ड्रॉइंग पावर का दुरुपयोग कर इन फर्जी कर्मचारियों को वेतन दिलाने का आरोप है।
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कलेक्टर ने शुरू की जांच
मामला सामने आने के बाद मोहला-मानपुर की कलेक्टर तूलिका प्रजापति ने डीईओ को जांच के निर्देश दिए हैं। शिकायतों के बावजूद शिक्षा विभाग के अधिकारी मामले को दबाने में लगे रहे, और फर्जी कर्मचारियों का वेतन निर्बाध रूप से निकाला जाता रहा। प्रशासन की सुस्ती पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इतने बड़े फर्जीवाड़े के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
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कई लोग आ सकते हैं लपेटे में
जांच में सामने आया कि यह फर्जीवाड़ा केवल नौ जालसाजों तक सीमित नहीं है। इसमें शामिल शिक्षा अधिकारियों की जवाबदेही भी तय की जा रही है। यदि जांच निष्पक्ष और सख्ती से हुई, तो राजनांदगांव, खैरागढ़, और मोहला-मानपुर के जिला शिक्षा अधिकारियों सहित अन्य जिम्मेदार अधिकारी भी कार्रवाई की जद में आ सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, इन अधिकारियों ने जालसाजों को महत्वपूर्ण विभागों में तैनात कर सरकारी सिस्टम का दुरुपयोग किया।
क्या है मामला?
पिछले 38 महीनों से ये नौ जालसाज बिना किसी वैध दस्तावेज के सरकारी नौकरी कर रहे हैं। इनका पूरा नाम, पता, योग्यता, या नियुक्ति पत्र शिक्षा विभाग के पास उपलब्ध नहीं है। फिर भी, इन्हें कलेक्ट्रेट की वित्तीय शाखा, खनिज न्यास, और अन्य संवेदनशील विभागों में तैनात किया गया।
फर्जी सील और हस्ताक्षरों के आधार पर इनकी सेवा पुस्तिका तैयार की गई, और विभिन्न हाई स्कूलों से वेतन निकाला जा रहा है। इस फर्जीवाड़े से सरकारी खजाने को लाखों रुपये का नुकसान हुआ है।
शिक्षा विभाग की कार्रवाई पर टिकी निगाहें
कलेक्टर के जांच आदेश के बाद अब सभी की निगाहें शिक्षा विभाग की कार्रवाई पर टिकी हैं। यदि सरकार इस मामले में सख्त रुख अपनाती है, तो न केवल फर्जी कर्मचारी, बल्कि इसमें शामिल शिक्षा अधिकारी भी जेल जा सकते हैं। यह मामला छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार का एक और उदाहरण बन गया है। निष्पक्ष जांच और कठोर कार्रवाई से ही इस जालसाजी के पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश हो सकता है।
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