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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रतनपुर-केंदा मार्ग पर 15 जुलाई 2025 को हुए एक दुखद हादसे में तेज रफ्तार हाइवा ने 17 गायों को कुचल दिया। इस घटना ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट को सख्त कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया। इस हादसे में 17 मवेशियों की मौत और 5 के घायल होने के बाद हाई कोर्ट ने बुधवार, 16 जुलाई 2025 को विशेष डिवीजन बेंच गठित कर मामले की त्वरित सुनवाई की।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की बेंच ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि बार-बार निर्देशों के बावजूद सड़कों पर मवेशियों की मौत की घटनाएं रुक नहीं रही हैं। कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय करने और ऐसी घटनाओं को उनके सर्विस रिकॉर्ड में दर्ज करने का निर्देश दिया। साथ ही, मुख्य सचिव और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के प्रोजेक्ट मैनेजर को शपथ पत्र दाखिल करने के आदेश दिए गए।
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हादसे की पृष्ठभूमि और कोर्ट की नाराजगी
रतनपुर थाना क्षेत्र के अंतर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-45) पर ग्राम बारीडीह के पास एक पेट्रोल पंप के नजदीक सोमवार देर रात तेज रफ्तार हाइवा ने सड़क पर बैठी गायों को कुचल दिया। इस हादसे में 17 गायों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि 5 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गईं। इस घटना ने स्थानीय लोगों और पशु प्रेमियों में आक्रोश पैदा कर दिया।
पुलिस ने हाइवा चालक और मवेशी मालिकों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 291 के तहत FIR दर्ज की है।हाई कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने सुनवाई के दौरान नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, "यह बेहद दुखद है कि कोर्ट के बार-बार निर्देशों और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) लागू होने के दावों के बावजूद ऐसी घटनाएं हो रही हैं।
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अब केवल जवाबदेही तय करना पर्याप्त नहीं है। संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों के सर्विस रिकॉर्ड में ऐसी लापरवाही को दर्ज करना होगा।" कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जब गाड़ियां मवेशियों को पकड़ने के लिए उपलब्ध हैं, तो सड़कों पर आवारा मवेशियों को रोकने के लिए प्रभावी कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे?
पहले भी उठ चुका है मुद्दा: 33 बार हो चुकी सुनवाई
हाई कोर्ट में सड़कों पर आवारा मवेशियों और इससे होने वाले हादसों को लेकर 2019 से जनहित याचिकाएं (PIL) दायर हैं। इन याचिकाओं में सड़कों की खराब स्थिति, मवेशियों के कारण होने वाली दुर्घटनाएं, और सार्वजनिक सुरक्षा जैसे मुद्दे उठाए गए हैं। अब तक इस मामले में 33 बार सुनवाई हो चुकी है, लेकिन हालात में सुधार नहीं हुआ है।
28 अप्रैल 2025 को हुई सुनवाई में राज्य सरकार ने दावा किया था कि मवेशी हादसों को रोकने के लिए SOP लागू की गई है। उस समय चीफ जस्टिस सिन्हा ने चेतावनी दी थी कि यह SOP कागजों तक सीमित न रहे, बल्कि जमीनी स्तर पर लागू हो। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि आवारा मवेशी केवल ग्रामीणों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह एक व्यापक सार्वजनिक सुरक्षा का मुद्दा है।
इसके बावजूद, रतनपुर-केंदा मार्ग पर हुई ताजा घटना ने सरकार और प्रशासन की लापरवाही को फिर से उजागर कर दिया। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई 2025 को निर्धारित की है, लेकिन इस हादसे के बाद विशेष बेंच गठित कर तत्काल सुनवाई की गई।
राज्य सरकार और NHAI पर कोर्ट का दबाव
सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने SOP लागू की है और अब नगरीय निकायों से लेकर ग्राम पंचायतों तक जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। हालांकि, कोर्ट ने इस जवाब को अपर्याप्त माना और कहा कि केवल जवाबदेही तय करना काफी नहीं है। कोर्ट ने मुख्य सचिव और NHAI के प्रोजेक्ट मैनेजर को शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें यह स्पष्ट करने को कहा गया कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। कोर्ट ने यह भी पूछा कि सड़कों पर मवेशियों को रोकने के लिए गौशालाओं और पशु नियंत्रण तंत्र की क्या व्यवस्था है।
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सड़कों पर आवारा मवेशी: एक गंभीर समस्या
छत्तीसगढ़ में सड़कों पर आवारा मवेशियों की मौजूदगी लंबे समय से एक गंभीर समस्या रही है। यह न केवल सड़क दुर्घटनाओं का कारण बन रही है, बल्कि मवेशियों की जान भी जा रही है। रतनपुर-केंदा मार्ग जैसे व्यस्त राष्ट्रीय राजमार्गों पर मवेशियों का सड़क पर बैठना आम बात है, जिसके लिए स्थानीय प्रशासन और पशु मालिकों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। हाई कोर्ट ने इस मामले में स्थानीय निकायों, पंचायतों, और NHAI की जिम्मेदारी पर जोर देते हुए कहा कि यह एक सामूहिक जवाबदेही का मामला है।
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पुलिस कार्रवाई और स्थानीय प्रतिक्रिया
रतनपुर पुलिस ने हादसे के बाद तत्काल कार्रवाई करते हुए हाइवा चालक और मवेशी मालिकों के खिलाफ FIR दर्ज की। स्थानीय लोगों ने इस हादसे पर गहरा दुख जताया और प्रशासन से सड़कों पर मवेशियों को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी उपाय करने की मांग की। सामाजिक संगठनों और पशु कल्याण समूहों ने भी इस घटना की निंदा की और गौशालाओं की संख्या बढ़ाने तथा मवेशी मालिकों पर सख्ती करने की मांग उठाई।
कोर्ट की अपेक्षाएं
हाई कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट कर दिया है कि अब केवल कागजी कार्रवाई और दावे पर्याप्त नहीं हैं। कोर्ट ने सरकार और संबंधित विभागों से ठोस और दीर्घकालिक समाधान की अपेक्षा की है। सड़कों पर मवेशियों को नियंत्रित करने के लिए गौशालाओं का निर्माण, पशु मालिकों की जिम्मेदारी तय करना, और सड़क सुरक्षा उपायों को लागू करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होने पर और सख्त कार्रवाई की जाएगी।
प्रशासनिक गंभीरता की आवश्यता
रतनपुर-केंदा मार्ग पर 17 गायों की दुखद मौत ने एक बार फिर सड़कों पर आवारा मवेशियों की समस्या को उजागर किया है। हाई कोर्ट का सख्त रुख और सर्विस रिकॉर्ड में लापरवाही दर्ज करने का निर्देश इस दिशा में एक बड़ा कदम है। यह मामला न केवल प्रशासनिक जवाबदेही का सवाल उठाता है, बल्कि पशु कल्याण और सड़क सुरक्षा जैसे व्यापक मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित करता है। अब यह देखना होगा कि सरकार और NHAI इस मामले में कोर्ट के निर्देशों का कितनी गंभीरता से पालन करते हैं।
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