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छत्तीसगढ़ में बिना मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने स्पष्ट आदेश देते हुए कहा है कि राज्य में सभी गैर-मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों में नए सत्र के लिए प्रवेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए।
साथ ही शिक्षा विभाग के सचिव को व्यक्तिगत शपथपत्र के साथ यह स्पष्ट करने को कहा गया है कि आखिर गैर-मान्यता प्राप्त स्कूल अभी भी क्यों संचालित हो रहे हैं।
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पूरा मामला क्या है?
इस पूरे मामले की जड़ निःशुल्क बाल शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act) से जुड़ी है। इस अधिनियम के अनुसार, राज्य सरकार ने 7 जनवरी 2013 को एक विनियम लागू किया था जिसमें यह कहा गया कि कक्षा नर्सरी से केजी-2 तक की कक्षाएं संचालित करने वाले सभी निजी स्कूलों को भी मान्यता लेना अनिवार्य है।
इसके बावजूद राज्य में बड़ी संख्या में निजी स्कूल बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं और बच्चों का प्रवेश लिया जा रहा है, जिससे न केवल बच्चों का भविष्य प्रभावित हो रहा है बल्कि अभिभावकों को आर्थिक नुकसान भी हो रहा है।
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हाईकोर्ट में क्या हुआ?
यह मामला विकास तिवारी की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया।शिक्षा विभाग के संचालक ने कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि नर्सरी से केजी-2 तक की कक्षाओं के लिए मान्यता जरूरी नहीं है।
वादी पक्ष के अधिवक्ताओं संदीप दुबे और मानस वाजपेयी ने इसका विरोध करते हुए कोर्ट को बताया कि 2013 के विनियम के अनुसार सभी निजी स्कूलों को मान्यता जरूरी है, चाहे वे केवल नर्सरी से केजी-2 तक की कक्षाएं ही क्यों न चला रहे हों।
राज्य में बिना मान्यता वाले स्कूलों की स्थिति
शिक्षा विभाग की ओर से कोर्ट में पेश आंकड़ों के अनुसार:
केवल नर्सरी से केजी-2 तक की कक्षाएं चलाने वाले स्कूल: 72
नर्सरी से प्राथमिक स्तर तक: 1391
नर्सरी से पूर्व-माध्यमिक स्तर तक: 3114
नर्सरी से उच्चतर माध्यमिक तक: 2618
कुल मिलाकर हजारों स्कूल बिना मान्यता के बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
हाईकोर्ट का आदेश क्या है?
*अगली सुनवाई (5 अगस्त) तक सभी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों में नया प्रवेश रोकें। शिक्षा विभाग के सचिव व्यक्तिगत शपथपत्र देकर यह स्पष्ट करें कि नियमों के बावजूद बिना मान्यता वाले स्कूल क्यों चल रहे हैं। जिन छात्रों का पहले ही प्रवेश हो चुका है, उसे रद्द न किया जाए।
*न्यायालय के रजिस्ट्री को आदेश दिया गया कि वे ऐसे मामलों में याचिकाएं स्वीकार न करें जिनमें प्रवेश निरस्त हुआ हो, ताकि बार-बार याचिका दायर कर भ्रम की स्थिति न बने।
*राज्य भर के जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वे ऐसे स्कूलों की पहचान कर कार्रवाई करें। केवल मान्यता प्राप्त स्कूल ही प्रवेश प्रक्रिया जारी रख सकते हैं।
महंगी किताबें भी बनी चिंता का विषय
याचिकाकर्ता सी.वी. भगवंत राव के वकील देवर्षि ठाकुर ने कोर्ट को अवगत कराया कि प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन ने पहले एकलपीठ से राहत ली थी, जिसके बाद स्कूल प्रबंधन महंगी निजी प्रकाशन की किताबें खरीदने का दबाव अभिभावकों पर बना रहे हैं। इससे आर्थिक नुकसान हो रहा है।
कोर्ट ने इस पहलू को भी गंभीरता से लेते हुए कहा कि इस याचिका को भी RTE एक्ट की जनहित याचिका के साथ जोड़कर देखा जाएगा और अगली सुनवाई 5 अगस्त को की जाएगी।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि बिना मान्यता के स्कूलों को बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह फैसला बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता, संस्थानों की पारदर्शिता और अभिभावकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक सशक्त कदम माना जा रहा है।
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