हाईकोर्ट का आदेश, MP सरकार पर 7 लाख का हर्जाना, नायब तहसीलदार को 30 दिन में दो नियुक्ती
नायब तहसीलदार पद पर चयन के बाद भी नियुक्ति न देने को लेकर हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है। कोर्ट ने सरकार को 30 दिन के भीतर नियुक्ति देने का आदेश दिया। है।
ग्वालियर हाईकोर्ट ने नायब तहसीलदार पद पर चयन के बाद भी नियुक्ति न मिलने पर सख्त नाराजगी जताई है। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए इस रवैये को प्रशासन की मनमानी और लापरवाही बताया। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने साफ कहा कि अधिकारी ने जानबूझकर नियुक्ति रोककर उम्मीदवार के सात साल बर्बाद कर दिए। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि याचिकाकर्ता को 7 लाख रुपए हर्जाना दिया जाए।
क्या है पूरा मामला
दरअसल ग्वालियर के कांच मिल रोड निवासी अतिराज सेंगर ने 2013 में MPPSC की नायब तहसीलदार परीक्षा दी थी। 2016 में जब परिणाम आया, तब वह सामान्य वर्ग की प्रतीक्षा सूची (श्रवण बाधित) में 16वें नंबर पर थे। इस कोटे में चयनित एकमात्र उम्मीदवार अमित तिवारी ने पदभार नहीं लिया। इसके बाद MPPSC ने अतिराज सेंगर का नाम अनुशंसा में भेजा, जो 2018 में राजस्व विभाग को प्राप्त हो गया।
क्यों रोकी नायब तहसीदार की नियुक्ति?
मध्यप्रदेश राजस्व विभाग ने न तो शिकायत का उत्तर दिया और न ही नियुक्ति दी। अतिराज को परीक्षा पास करने के बाद भी नियुक्ति नहीं देने को लेकर विभाग का तर्क था कि चयन सूची केवल एक वर्ष के लिए वैध थी। अतिराज की अनुशंसा उस एक साल की अवधि के बाद आई, इसलिए नियुक्ति नहीं दी जा सकती।
ऐसे समझिए पूरी खबर
2013 में परीक्षा दी, 2016 में रिजल्ट आया, 2018 में नाम भेजा गया।
राजस्व विभाग ने 7 साल तक नियुक्ति नहीं दी, न जवाब दिया।
हाईकोर्ट ने 30 दिन में नियुक्ति देने का आदेश दिया।
7 लाख रुपये हर्जाना संबंधित अधिकारी से वसूलने को कहा गया।
कोर्ट ने कहा- यह दुर्भावनापूर्ण और मनमानी का स्पष्ट उदाहरण है।
हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने साफ कहा कि यह मामला दुर्भावना, मनमानी और प्रशासनिक लापरवाही का है। कोर्ट ने 30 दिन के भीतर अतिराज सेंगर को नायब तहसीलदार पद पर नियुक्ति देने का आदेश दिया। वहीं सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 7 लाख रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया।
राजस्व विभाग ने हाईकोर्ट के सामने दिया ये तर्क
राज्य शासन ने तर्क दिया कि चयन सूची 2016-17 तक वैध थी। MPPSC ने अनुशंसा एक साल बाद की, इसलिए नियुक्ति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि विभागीय प्रक्रिया में देरी का खामियाजा उम्मीदवार को नहीं भुगतना चाहिए।