छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का मिड-डे मील में लापरवाही पर सख्त रुख, शिक्षा सचिव को व्यक्तिगत हलफनामा पेश करने का आदेश

छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के लच्छनपुर मिडिल स्कूल में बच्चों को कुत्ते द्वारा जूठा किया गया भोजन परोसने की घटना पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने इसे "गंभीर लापरवाही और अमानवीय कृत्य" बताया है।

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Krishna Kumar Sikander
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Chhattisgarh High Court takes strict stand on negligence in mid-day meal the sootr
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छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के पलारी विकासखंड में स्थित लच्छनपुर मिडिल स्कूल में मिड-डे मील योजना के तहत बच्चों को कुत्ते द्वारा जूठा किया गया भोजन परोसे जाने की शर्मनाक घटना ने पूरे राज्य को झकझोर दिया है। इस मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए इसे "गंभीर लापरवाही और अमानवीय कृत्य" करार दिया है।

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव को 19 अगस्त 2025 तक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। साथ ही, कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार से कई अहम सवालों के जवाब मांगे हैं, जिनका असर मिड-डे मील योजना की कार्यप्रणाली पर गहरा पड़ सकता है।

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मामला कैसे आया सामने?

हाईकोर्ट ने विभिन्न समाचार माध्यमों से मिली जानकारी के आधार इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था। इसके बाद एक जनहित याचिका दर्ज सुनवाई शुरू की। विभिन्न समाचार माध्यमों ने बताया था कि लच्छनपुर मिडिल स्कूल में 84 छात्रों को भोजन परोसा गया था। बाद में पता चला कि इस भोजन को एक लावारिश कुत्ते ने जूठा कर दिया था।

28 जुलाई को हुई इस घटना की जानकारी अभिभावकों को मिलने पर हंगामा मच गया। आनन-फानन में ग्राम स्तरीय समिति की बैठक बुलाई गई, और प्रभावित बच्चों को एंटी-रेबीज वैक्सीन की दो खुराक दी गईं। हालांकि, मीडिया में प्रभावित छात्रों की संख्या को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है, जिसमें 78 से 84 बच्चों के वैक्सीन लेने की बात सामने आई है।

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हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी

हाईकोर्ट ने इस घटना को "प्रशासनिक विफलता और बच्चों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़" बताते हुए कड़ी नाराजगी जताई। खंडपीठ ने कहा, "मिड-डे मील योजना कोई औपचारिकता नहीं है। यह बच्चों के पोषण, गरिमा, और स्वास्थ्य की गारंटी है। कुत्ते द्वारा जूठा भोजन परोसना न केवल लापरवाही है, बल्कि बच्चों की जान को खतरे में डालने वाला अमानवीय कृत्य है।" कोर्ट ने इस मामले को राज्य सरकार की सामाजिक योजनाओं की साख पर गहरी चोट बताया और इसे रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

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राज्य सरकार से मांगे गए ये जवाब

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और स्कूल शिक्षा विभाग से निम्नलिखित बिंदुओं पर विस्तृत जवाब मांगा है।

स्वास्थ्य सुरक्षा : क्या सभी प्रभावित बच्चों को समय पर एंटी-रेबीज वैक्सीन दी गई? क्या उनकी स्वास्थ्य स्थिति की निगरानी की जा रही है?

जिम्मेदारी तय करना : इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार शिक्षकों, स्व-सहायता समूह, या अन्य कर्मचारियों पर क्या कार्रवाई की गई?

मुआवजा : क्या प्रभावित बच्चों और उनके परिवारों को उचित मुआवजा प्रदान किया गया?

भविष्य के कदम : ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सरकार ने क्या ठोस उपाय किए हैं? मिड-डे मील योजना की निगरानी के लिए क्या नई व्यवस्था लागू की जाएगी?

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अगली सुनवाई 19 अगस्त को

हाईकोर्ट ने मामले की आगामी सुनवाई 19 अगस्त तय की है। आगामी सुनवाई पर स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव को अपना एक हलफनामा करना होगा। इस हलफनामें में उपरोक्त सवालों के जवाब के साथ-साथ इस घटना से निपटने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देना होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी घटनाएं न केवल बच्चों के स्वास्थ्य और गरिमा के खिलाफ हैं, बल्कि यह सामाजिक कल्याण योजनाओं की विश्वसनीयता को भी कमजोर करती हैं।

मिड-डे मील योजना पर उठे सवाल

मिड-डे मील योजना, जिसका उद्देश्य स्कूली बच्चों को पौष्टिक भोजन प्रदान करना और स्कूलों में उनकी उपस्थिति बढ़ाना है, इस घटना के बाद सवालों के घेरे में आ गई है। लच्छनपुर स्कूल की घटना ने योजना की निगरानी और कार्यान्वयन में खामियों को उजागर किया है। अभिभावकों और स्थानीय समुदाय में इस घटना को लेकर गहरा आक्रोश है, और कई लोग मांग कर रहे हैं कि जिम्मेदार अधिकारियों और स्व-सहायता समूहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

स्थानीय समुदाय और अभिभावकों की प्रतिक्रिया

घटना की जानकारी मिलने के बाद अभिभावकों ने स्कूल प्रशासन और स्थानीय अधिकारियों के खिलाफ गुस्सा जाहिर किया। कई अभिभावकों ने बताया कि उनके बच्चों ने भोजन करने के बाद अस्वस्थता की शिकायत की थी, जिसके बाद वैक्सीनेशन का कदम उठाया गया। हालांकि, वैक्सीनेशन की प्रक्रिया में भी अस्पष्टता बनी हुई है, क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि सभी प्रभावित बच्चों को वैक्सीन दी गई या नहीं। अभिभावकों ने मांग की है कि सरकार इस मामले की गहन जांच करे और भविष्य में ऐसी लापरवाही को रोके।

सरकार की प्रारंभिक प्रतिक्रिया

घटना के बाद जिला प्रशासन ने तत्काल कार्रवाई करते हुए प्रभावित बच्चों को एंटी-रेबीज वैक्सीन देने की व्यवस्था की। साथ ही, ग्राम स्तरीय समिति की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की गई। हालांकि, अभी तक स्कूल के शिक्षकों या स्व-सहायता समूह के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की जानकारी सामने नहीं आई है। हाईकोर्ट के सख्त रुख के बाद अब सरकार पर दबाव बढ़ गया है कि वह इस मामले में जिम्मेदारी तय करे और मिड-डे मील योजना की निगरानी को मजबूत करे।

भविष्य के लिए सबक

लच्छनपुर मिडिल स्कूल की इस घटना ने मिड-डे मील योजना के कार्यान्वयन में कई खामियों को उजागर किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए।

निगरानी तंत्र को मजबूत करना : स्कूलों में भोजन की गुणवत्ता और स्वच्छता की नियमित जांच होनी चाहिए।

जिम्मेदारी तय करना : स्व-सहायता समूहों और स्कूल प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।

जागरूकता और प्रशिक्षण : स्कूल कर्मचारियों और स्व-सहायता समूहों को भोजन की स्वच्छता और सुरक्षा के लिए प्रशिक्षित किया जाए।

FAQ

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने लच्छनपुर स्कूल की मिड-डे मील घटना पर क्या प्रतिक्रिया दी है?
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस घटना को "गंभीर लापरवाही और अमानवीय कृत्य" करार देते हुए इसे बच्चों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ बताया है। कोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव को 19 अगस्त 2025 तक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है, जिसमें घटना से जुड़े सभी पहलुओं पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कौन-कौन से सवालों के जवाब मांगे हैं?
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से चार मुख्य बिंदुओं पर जानकारी मांगी है: सभी बच्चों को समय पर एंटी-रेबीज वैक्सीन दी गई या नहीं। इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों पर क्या कार्रवाई की गई। क्या प्रभावित बच्चों को मुआवजा दिया गया। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं।
लच्छनपुर मिडिल स्कूल की इस घटना से मिड-डे मील योजना पर क्या असर पड़ा है?
इस घटना ने मिड-डे मील योजना की निगरानी और क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इससे यह स्पष्ट हुआ है कि योजना में कई खामियां हैं, जैसे भोजन की गुणवत्ता की निगरानी में लापरवाही, जवाबदेही की कमी, और स्वच्छता मानकों का पालन न होना। इसके चलते स्थानीय समुदाय में आक्रोश है और सरकार पर इस योजना की समीक्षा और सख्त निगरानी की मांग बढ़ गई है।

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