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छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में मरीजों की जिंदगी से खेलकर अफसर रातों-रात अरबपति बन गए। दवा, मेडिकल किट और ब्लड टेस्टिंग उपकरणों की खरीद के नाम पर राज्य सरकार के खजाने को करीब 500 करोड़ रुपए की चपत लगाई गई। जैसा कि अक्सर होता है, घोटाले उजागर होते हैं तो केवल छोटी मछलियां पकड़ी जाती हैं और असली मगरमच्छ जांच एजेंसियों की नजरों से दूर ही रहते हैं। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है। रायपुर में सामने आया 500 करोड़ का मेडिकल घोटाला उसी पुरानी स्क्रिप्ट को दोहरा रहा है।
बड़े अफसरों के नाम पर चुप्पी क्यों?
जैसे ही घोटाला सामने आया तो छत्तीसगढ़ की एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) और इकोनॉमिक ऑफेंस विंग (EOW) हरकत में आई। मोक्षित कॉर्पोरेशन पर कार्रवाई की गई। इसी कंपनी के हिस्से दवा सप्लाई का काम था। इस प्रकरण में अब तक छह गिरफ्तारियां हो चुकी हैं।
इनमें...
- शशांक चोपड़ा, मोक्षित कॉर्पोरेशन के संचालक
- कमल कांत पाटनवार, CGMSC के तकनीकी महाप्रबंधक
- खिरौद रावतिया, बायोमेडिकल इंजीनियर
- बसंत कोशिक, पूर्व तकनीकी महाप्रबंधक
- डॉ. अनिल परसाई, स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर
- दीपर कुमार बांधे, अन्य संबद्ध अधिकारी।
लेकिन इनमें कोई भी बड़ा अफसर नहीं है। जांच के घेरे में अब भी जिन अफसरों के नाम हैं, वे अभी तक पूरी तरह जांच के शिकंजे में नहीं आए हैं। सूत्रों की मानें तो इस घोटाले की स्क्रिप्ट लिखने वाले कुछ वरिष्ठ आईएएस अधिकारी थे, जिनके संरक्षण में यह पूरा खेल चला। इनमें पद्मिनी भोई साहू, पूर्व प्रबंध संचालक चंद्रकांत वर्मा और पूर्व संचालक स्वास्थ्य सेवाएं भीम सिंह का नाम उछला है। ACB और EOW ने इनसे पूछताछ तो की है, पर अब तक कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। यह भी कहा जा रहा है कि कुछ अफसर अब विभागीय फाइलों में हेराफेरी कर रहे हैं, ताकि किसी तरह सबूत मिटाए जा सकें।
खरीदी नहीं, सुनियोजित लूट की योजना
गौरतलब है कि इस मेडिकल घोटाले का केंद्र छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) है। यही वह संस्था है, जो सरकारी अस्पतालों के लिए दवाएं, लैब किट और अन्य जरूरी उपकरणों की खरीद करती है। CGMSC ने पिछले साल जो खरीद की, वह सिर्फ आपूर्ति नहीं, बल्कि सुनियोजित लूट की योजना निकली।
सिर्फ 15-15 दिन के भीतर 300-300 करोड़ की दवाओं और लैब किट्स के बिना टेंडर या स्वीकृत बजट के ऑर्डर पास किए गए। अनुमान है कि बिना किसी प्रशासनिक स्वीकृति के 2 जून 2023 को 314.81 करोड़ रुपए के ऑर्डर जारी कर दिए गए।
ऊंचे दाम, घटिया माल और करोड़ों की कमाई
जांच में पता चला है कि जिन सामानों की सप्लाई की गई, वे या तो बाजार रेट से कई गुना ज्यादा कीमत पर खरीदे गए या फिर उनकी क्वालिटी इतनी खराब थी कि वे उपयोग में ही नहीं आ सके। उदाहरण के तौर पर ब्लड टेस्ट में इस्तेमाल की जाने वाली ईडीटीए ट्यूब बाजार में अधिकतम 8.50 रुपए की मिलती है, मोक्षित कॉर्पोरेशन से इसे 2,352 रुपए प्रति ट्यूब के भाव पर खरीदा गया। ऐसे ही CBC मशीन बाजार में 5 लाख रुपए की आती है, CGMSC ने इसी मशीन को 17 लाख रुपए में खरीदा। रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि करीब 28 करोड़ की लैब किट सप्लाई होने के बाद खराब हो गईं।
क्या जांच में भी है राजनीतिक दखल?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब लाखों गरीब मरीजों की जिंदगी से जुड़ा यह भ्रष्टाचार उजागर हो चुका है तो बड़े अफसरों को बचाने की कोशिशें क्यों हो रही हैं? क्यों जांच पूछताछ से आगे नहीं बढ़ रही? कौन है वो ताकत जो इन अधिकारियों को संरक्षण दे रही है? क्या यह जांच भी वही मोड़ लेगी, जैसा जनता ने पुराने घोटाले में देखा है, जहां बरसों तक जांच चलती रही, मुकदमे लटके रहे और असली दोषी कानून की पकड़ से बाहर ही रहे?
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राजनीतिक और सामाजिक जिम्मेदारी का सवाल
यह घोटाला छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गहरी चोट है। जहां बच्चों को ब्लड टेस्ट की सस्ती ट्यूब मिलनी चाहिए थी, वहां उन्हें हजारों में खरीदा गया, शायद इस्तेमाल करने लायक भी न हों... ऐसी ट्यूबें दी गईं। जहां अस्पतालों में दवाएं मुफ्त मिलनी चाहिए थीं, वहां खराब हो चुकी करोड़ों की दवाएं गोदामों में सड़ गईं। अगर इस मामले में भी बड़े अफसरों को बचा लिया गया तो यह खतरनाक उदाहरण बन जाएगा कि इस देश में घोटाला करो, लेकिन अगर तुम्हारे पास ताकत है, तो सुरक्षित हो।
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