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Photograph: (the sootr)
सिंहासन छत्तीसी :
RAIPUR.छत्तीसगढ़ के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में आखिर क्यों हलचल मची है। कहा जा रहा है कि यहां पर नौकरशाही का घोड़ा बेलगाम दौड़ रहा है। ये बेलगाम घोड़ा किसी को कुछ नहीं समझ रहा, जो मन में आए वही आदेश बन जाता है। ऐसा ही कुछ बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के साथ हो गया। लोग कहने लगे हैं कि प्रदेश में साहिबगिरी ही चल रही है।
चर्चा एक और है कि छत्तीसगढ़ की सत्ता को यदि भाते हैं तो दाग अच्छे हैं। एक दागी अफसर का प्रमोशन कुछ यही बता रहा है। वहीं कांग्रेस में दिल्ली से आए नेताओं के बीच खूब तू तू मैं मैं हो रही है। छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों की ऐसी ही अनसुनी खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी।
साहब की अक्लमंदी, नेता की नजरबंदी :
बीजेपी के एक ऐसे नेता जिनकी कभी तूती बोलती थी,जो कभी सरकार में नंबर दो की कुर्सी पर थे,उनके साथ ये क्या हो गया। वे नजरबंद हो गए वो भी अपनी ही सरकार में। क्या गजब की बात है। ऐसा आखिर हुआ क्यों, थोड़ा इसकी तह में जाते हैं। नेताजी ने एक कलेक्टर से पंगा लेकर शायद बर्रे के छत्ते में हाथ डाल दिया। अफसर का तो कुछ होना जाना नहीं था लेकिन नेताजी को ये जरुर जता दिया गया कि वे अब पार्टी में हाशिए पर आ गए हैं।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अफसर के सिर पर साहब का हाथ है। साहब वे जो सत्ता के केंद्र की नाभि में बैठे हैं। जिनके हिसाब से सत्ता तो सत्ता, संगठन के भी फैसलों पर भी असर पड़ने लगा है। जो संगठन को कुछ समझते भी नहीं हैं। नेताजी ने यहां तक लिख दिया कि कलेक्टर को मुख्यमंत्री निवास के एक सचिव का संरक्षण मिल रहा है। उनके इसी आरोप में पार्टी, संघ और वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी के सारे सूत्र निहित हैं। आखिर साहब ने एक बार फिर जता दिया कि सत्ता किसी की भी हो लेकिन चला तो हम ही रहे हैं।
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छत्तीसगढ़ में चल रही साहिबगिरी :
सत्ता की केंद्रस्थली में बैठे साहब अपने हिसाब से सब कुछ तय कर रहे हैं। बाकायदा जिला कलेक्टरों और मंत्रालय के सचिवों को ताक़ीद किया गया कि संघ-संगठन की बातों को ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नहीं। साहब ने कह दिया कि उन पर किसी का जोर नहीं है और वे सीधे दिल्ली वालों को रिपोर्ट करते हैं। उनके इस मशविरे का अधिकारियों पर असर भी खूब हुआ।
दअरसल, हुआ यूं कि एक विभाग की मुख्य महिला अफसर साहब की सलाह पर कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गई और उन्होंने पूरे प्रदेश के मठों, मंदिरों और आश्रमों की हजारों एकड़ भूमि को धान खरीदी की सूची से बाहर कर दिया। आश्रमों के महंतों और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं ने ऐड़ी चोटी का जोर लगा लिया लेकिन नाम वापस नहीं जुड़े। आखिर में उन्हें मुख्यमंत्री निवास के सामने धरना देने की धमकी देनी पड़ी तब जाकर उनका मामला सुलझा। सूबे में इसी तरह चल रही है साहिबगिरी।
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सरकार को पसंद हैं तो दाग अच्छे हैं :
छत्तीसगढ़ के सरकारी महकमों में सब चलता है, यह बात एक बार फिर जल संसाधन विभाग ने सिद्ध कर दी है। यहां करोड़ों के मनी लॉन्ड्रिंग मामले के मुख्य आरोपी इंजीनियर को न सिर्फ प्रमोशन मिला, बल्कि उसे अब एक महत्वपूर्ण सरकारी परियोजना का राज्य नोडल अधिकारी भी बना दिया गया है।
सूत्रों की मानें तो इस अफसर ने प्रमोशन पाने के लिए कथित तौर पर झूठा हलफनामा पेश किया। उन्होंने विभाग से यह महत्वपूर्ण जानकारी छिपा ली कि उनके खिलाफ EOW-ACB कोर्ट में 7 करोड़ की अवैध कमाई का मामला लंबित है। वाह रे सरकारी जांच! जब कोर्ट ने 2022 में ही मामले की गंभीरता पर मुहर लगा दी थी, तब भी विभाग ने लंबित केस की जानकारी को अनदेखा कर दिया। नतीजा यह हुआ कि आरोपी इंजीनियर को प्रमोशन भी मिला और अब उन्हें एक और बड़ी कुर्सी पर बैठा दिया गया।
भारी पड़ा नेताजी से मिलना :
दिल्ली से आए कांग्रेस के पर्यवेक्षकों को साफ साफ कहा गया था कि वे छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेताओं से नहीं मिलेंगे। न तो उनके साथ लंच होगा न डिनर। उनके हिसाब से नहीं कार्यकर्ताओं के हिसाब से जिला अध्यक्ष तय होंगे। इस हिदायत को दरकिनार कर कुछ पर्यवेक्षक न सिर्फ बड़े नेताओं से मिले बल्कि उनके साथ फोटो भी खिंचवा ली।
यह तो सोशल मीडिया का जमाना है साहब, फोटो बाहर आ गई। फोटो बाहर आई तो खबर जंगल की आग की तरह दिल्ली पहुंच गई। दिल्ली से इनको आउट करने का फरमान आ गया। लेकिन बाद में मामला सेटल कर दिया गया। दिल्ली को बताया गया कि यदि उनको आउट कर दिया गया तो मीडिया में अच्छा मैसेज नहीं जाएगा इसलिए इनको चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए। हुआ भी यही बात मीडिया से लेकर बीजेपी तक पहुंच गई। बीजेपी ने इसके मजे भी ले लिए।
आखिरकार कांग्रेस नेताओं को सामने आकर कहना पड़ा कि किसी को नहीं हटाया गया है, सब भ्रामक बातों का प्रचार हो रहा है। इन पर्यवेक्षकों ने कुछ दिनों पूर्व ही प्रदेश के विभिन्न जिलों का रुख किया था। उन्हें राहुल गाँधी के ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए इस राज्य से जमीनी कार्यकर्ताओं को खोज निकालने का दायित्व सौंपा गया था। पार्टी जिला अध्यक्ष नियुक्त किये जाने को लेकर इन नेताओं ने जब उन जिलों का रुख किया तो वे स्थानीय समीकरणों ने शिकार हो गए। अब मामला पटरी पर लौटाया रहा है।