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Raipur. छत्तीसगढ़ के कोयला घोटाले में ED (प्रवर्तन निदेशालय) की चार्जशीट ने बड़ा खुलासा किया है। इस घोटाले का मास्टरमाइंड सूर्यकांत तिवारी बताया गया है, जिसने 570 करोड़ रुपए से अधिक की अवैध वसूली की। चार्जशीट के मुताबिक, इस पूरे नेटवर्क में कई अफसर, नेता और कारोबारी शामिल थे, जिन्होंने मिलकर कोयले के कारोबार में ‘लेवी’ सिस्टम चलाया।
कैसे होता था वसूली का खेल
ED की चार्जशीट के मुताबिक, सूर्यकांत तिवारी ने अफसरों और नेताओं की मिलीभगत से कोयला कारोबारियों पर गैरकानूनी टैक्स (लेवी) लगाया था। कोल वाशरी संचालकों से 100 रुपए प्रति टन, और कोयला ट्रांसपोर्टरों से 25 रुपए प्रति टन तक वसूले जाते थे।
इस तरह कोल कारोबारी को हर बार कोयला निकालते समय दो बार कमीशन देना पड़ता था। रायगढ़ और कोरबा में इसके लिए अलग ऑफिस खोले गए थे, जहाँ से पैसे इकट्ठे कर रायपुर भेजे जाते थे।
व्हाट्सएप चैट में कोडवर्ड्स का इस्तेमाल
ED ने जांच में खुलासा किया कि वसूली और लेन-देन के लिए एक गुप्त भाषा (कोडवर्ड सिस्टम) बनाया गया था —
- “D” = कांग्रेस विधायक देवेंद्र यादव
- “RS” = अफसर रानू साहू
- “गिट्टी” = करोड़
- “रेती” = लाख
- “गिरा/इन” = पैसा आ गया
ED की 1500 पन्नों की चार्जशीट में इन कोड्स के साथ कई व्हाट्सएप ग्रुप्स, चैट्स और ट्रांजेक्शन रिकॉर्ड्स शामिल किए गए हैं।
तीन IPS अफसरों और उप सचिव पर गंभीर आरोप
चार्जशीट में बताया गया कि सूर्यकांत तिवारी, तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उप सचिव सौम्या चौरसिया, और तीन IPS अफसरों- पारूल माथुर, प्रशांत अग्रवाल, और भोजराम पटेल के बीच संपर्क था। IPS पारूल माथुर पर आरोप है कि वह तिवारी के निर्देश पर कोयला ट्रांसपोर्ट वाहनों पर कार्रवाई करती थीं। वहीं, एक कॉन्स्टेबल अमित कुमार दुबे पर ED अफसरों की जासूसी करने का आरोप लगा है।
कोयला घोटाले को 3 पॉइंट्स में समझें
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नवनीत तिवारी संभालता था रायगढ़ का नेटवर्क
रायगढ़ में वसूली का काम नवनीत तिवारी और कोरबा का काम मोइनुद्दीन देखता था। हर महीने की वसूली की रकम रायपुर के अनुपम नगर स्थित सूर्यकांत तिवारी के घर पहुंचाई जाती थी। ED को मिले दस्तावेज़ों और डायरी में नवनीत तिवारी के नाम के आगे 17.73 करोड़ रुपए दर्ज हैं।
कैसे हुआ खुलासा- 36 आरोपियों पर केस
इस मामले में जांच एजेंसियों ने अब तक 36 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है। ED का आरोप है कि कोयला परिचालन, ऑनलाइन परमिट को ऑफलाइन करने जैसे तरीकों से यह घोटाला रचा गया। खनिज विभाग के तत्कालीन संचालक IAS समीर विश्नोई ने 15 जुलाई 2020 को एक आदेश जारी किया था, जिससे ऑनलाइन परमिट सिस्टम बंद कर ऑफलाइन कर दिया गया, और इसी से वसूली की राह खुली।