आदिवासी और निर्धन बच्चों को सरकार ही बेच रही चावल, महंगाई इतनी कि थाली भरना भी मुश्किल

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत केंद्र सरकार हर गरीब को मुफ्त अनाज दे रही। लेकिन छग के गरीब और आदिवासी छात्रों को इसके लिए पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।

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VINAY VERMA
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Raipur. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत केंद्र सरकार हर गरीब को मुफ्त अनाज दे रही। लेकिन छत्तीसगढ़ के गरीब और आदिवासी छात्रों को इसके लिए पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।

बात कर रहे हैं प्रदेश के आंगनबाड़ियों की जहां सरकार ऐसे बच्चों को सुपोषित करने के लिए योजना चला रही है, जिन्हें अपने घर में भरपेट अनाज नहीं मिलता। बात कर रहें प्री-मैट्रिक और पोस्ट मैट्रिक हॉस्टर्ल्स की जहां आदिवासी बच्चे रहकर पढ़ाई करते हैं।

लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण इन जगहों पर या तो बच्चों को भूखा रहना पड़ता है या खुद के पैसे मिला अपनी थाली भरनी होती है। 

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5.85 रुपए में बेच रही चावल

प्रदेश में 5500 हजार आंगनबाड़ियों में करीब 33 लाख बच्चे, गर्भवती और शिशुवती माताएं भोजन सरकार प्रतिदिन इनकी थाली के लिए प्रतिदिन महज 4 रुपए 36 पैसे खर्च करती है। जिसमें चावल, दाल, हरी सब्जी, तेल, मसाला, हल्दी सब कुछ खरीदना होता है।

सरकार भी राहत न देेते हुए 5 रुपए 86 पैसे प्रतिकिलो की दर से चावल बेचती है। इस अनदेखी के कारण इनकी थाली महंगी हो जाती है। जिसका खर्च सरकार का एक विभाग महिला एवं बाल विकास विभाग वहन करता है।

अगर विभाग को मुफ्त चावल देने लगे तो हितग्राहियों को भरपेट भोजन मिलने लगेगा।

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आदिवासी हॉस्टर्ल्स का भी यही हाल

प्रदेश के करीब 2000 प्री और पोस्ट मैट्रिक हॉस्टर्ल्स में प्रदेश के निर्धन आदिवासी क्षेत्र के बच्चे-युवा रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। सरकार इन्हें प्री मैट्रिक हॉस्टल के छात्रों को प्रति महीने 1500 रुपए शिष्यवृति और पोस्ट मैट्रिक हॉस्टल के युवाओं को 1200 रुपए प्रति महीने भोजन सहाय देती है।

जो इन्हें कॉपी किताब, पेन-पेंसिल, तेल, साबुन, कपड़े के अलावा खाने पर खर्च करना होता है। सरकार इन्हें भी 6 रुपए 25 पैसे प्रति किलो की दर से चावल बेचती है। 

बच्चों की समस्या भी सुनिए

इन हॉस्टर्ल्स में पढ़ने वाले बच्चे बताते है कि शिष्यवृति और भोजन सहाय हर महीने नहीं मिलता। इसके लिए कई बार लंबा इंतजार करना होता है। अगर मिल गया तो अन्य चीजों के खर्च में ही आधा से ज्यादा पैसा निकल जाता है।

जिसके बाद प्रतिदिन का 15 रुपए ही खाने पर खर्च करने के लिए बचता है। कई बार तो पेट भरना भी मुश्किल हो जाता है। 

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कम पैसे, क्या बनाएं मेन्यू?

खाने में चावल के अलावा अलग-अलग दिनों में मिश्रित दाल, दाल होना आवश्यक है। इसके अलावा थाली में आलू बड़ी की सब्जी, हरी सब्जी भी होनी चाहिए। प्रदेश की आंगनबाड़ियों में दोपहर का भोजन और हॉस्टर्ल्स मंे सुबह का नाश्ता और दोपहर रात का खाना शामिल देना होता है।

विभागीय अधिकारी बता रहे हैं कि परेशानी होती है, शासन हमें मुफ्त चावल देने के साथ राशि बढ़ाने के लिए शासन के पास प्रस्ताव भेजा गया है। 

भरपेट भोजन देने का प्रयास

हॉस्टर्ल्स के लिए फिलहाल कोई मैन्यू नहीं है लेकिन एक स्टैंडर्ड मील देते हैं, जिसमें दाल-चावल और हरी सब्जियां होनी जरुरी है। शासन जितना फंड या पैसा देती है, उसी में बच्चों को भरपेट भोजन देने का प्रयास रहता है। 
विश्वनाथ रेड्डी, असिस्टेंट कमिश्नर, आदिम जाति विकास विभाग

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