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रायपुर (कृष्ण कुमार सिकंदर) : छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताने बाने में 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया' की गूंज अक्सर सुनाई देती है। यह नारा छत्तीसगढ़ के लोगों में गर्व की अनुभूति कराता है तो यह भी संदेश देता है कि छत्तीसगढ़ी समाज में समरसता का भाव है। इस भाव में कहीं भी गैर छत्तीसगढ़ियों के प्रति द्वेष नहीं है। मगर, राजनीति का मिजाज अलग है। राजनीति समाज को बांट कर अपने घर पर जश्न मनाती है। प्रदेश में छत्तीसगढ़ियावाद की राजनीति भी कुछ ऐसा ही रंग दिखा रही है। कुछ लोग अपनी राजनीति चमकाने के लिए 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया' के मायने अपने हिसाब से गढ़ रहे हैं। हाल में छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के नेता अमित बघेल ने छत्तीसगढ़ियावाद की राजनीति के जोश में प्रदेश के अंदर छत्तीसगढ़ी और गैर छत्तीसगढ़ी का राग छेड़ दिया। अमित बघेल ने मारवाड़ियों को छत्तीसगढ़ से भगाओ का नारा दिया। हालांकि छत्तीसगढ़ियों ने इसे स्वीकार नहीं किया। प्रदेश में कभी भी छत्तीसगढ़ियावाद की राजनीति कभी सफल नहीं रही।
सबने मिलकर बनाया सब संवार रहे
छत्तीसगढ़ के व्यापार, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति में सबका बराबर योगदान है। प्रदेश के विकास में जितनी भागीदारी छत्तीसगढ़ियों की रही है, उतना ही यहां बाहर से आकर उद्यम कर रहे लोगों का भी है। सबने मिलकर बनाया और सब मिलकर ही संवार रहे हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़िया और गैर छत्तीसगढ़िया विवाद से प्रदेश में विकास के प्रयास को धक्का लगेगा। गत दिनों किसी जयदास मानिकपुरी ने X पर एक वीडियो पोस्ट किया है। इस वीडियो में छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के अमित बघेल को मारवाड़ी समाज को छत्तीसगढ़ से भगाने की अपील कर रहे हैं। इसका कारण राज्य में बढ़ते अपराध के लिए मारवाड़ी समाज को जिम्मेदार बता रहे हैं। साथ ही तर्क दे रहे हैं कि कथित रूप में ओडिशा में उड़िया समाज ने मारवाड़ी भगाओ की मुहिम चलाई थी। उसी तरह यहां भी मारवाड़ी भगाओ की मुहिम की जरूरत है। बघेल ने दावा किया कि छत्तीसगढ़िया समाज के अधिकारों के लिए उनकी पार्टी जय जोहर छत्तीसगढ़ संघर्ष कर रही है। अमित बघेल की मारवाड़ी समाज से क्या अदावत है यह तो वह ही बता सकते हैं।
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अमित बघेल को छत्तीसगढ़ियों ने नकारा
अमित बघेल की मारवाड़ी भगाओ अपील ने नई बहस छेड़ दी है। जानकार सवाल उठा रहे हैं कि X पर जारी वीडियो में कहीं नहीं बताया गया कि अमित बघेल यह अपील क्यों कर रहे हैं। किसी एक व्यक्ति के किसी अपराध को पूरे समाज को जिम्मेदार मानना क्या ठीक है? क्या वास्तव में छत्तीसगढ़ में अपराध के पीछे पूरा मारवाड़ी समाज है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि छत्तीसगढ़ में मारवाड़ी समाज की क्या भूमिका है? छत्तीसगढ़ के व्यापार, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति में मारवाड़ियों का खासा दबदबा है। राजनीतिक क्षेत्र में भी मारवाड़ी समाज का बड़ा दखल है। उनकी कर्मठता, संगठन क्षमता, और सामाजिक जिम्मेदारी ने प्रदेश को मजबूत आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाने में मदद की है। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ियावाद से ग्रसित छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के नेता अमित बघेल ने प्रदेश से मारवाडी समाज को भगाने की अपील की तो किसी ने उनको गंभीरता से नहीं लिया।
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मारवाड़ी समुदाय मुख्य रूप से राजस्थान से आकर छत्तीसगढ़ में बसा। मगर मारवाड़ी समाज ने छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस समुदाय ने व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में गहरी पैठ बनाई। रायपुर, बिलासपुर, और दुर्ग जैसे शहरों में कपड़ा, अनाज और अन्य वस्तुओं का व्यापार मारवाड़ी व्यापारियों के नियंत्रण में रहा। उन्होंने स्थानीय बाजारों को संगठित कर व्यापारिक केंद्रों का विकास किया। परंपरागत रूप से, मारवाड़ी समुदाय ने स्वदेशी बैंकिंग और हुंडी प्रणाली को बढ़ावा दिया। छत्तीसगढ़ में छोटे और मध्यम व्यवसायों को वित्तीय सहायता प्रदान कर उन्होंने स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति दी। कई मारवाड़ी व्यवसायी जैसे बिड़ला और मित्तल परिवार ने देशव्यापी स्तर पर उद्योग स्थापित किए, जिनका प्रभाव छत्तीसगढ़ में भी देखा गया। स्थानीय स्तर पर छोटे-बड़े उद्योगों की स्थापना कर रोजगार सृजन में योगदान दिया।
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शैक्षिक संस्थानों की स्थापना में योगदान
मारवाड़ी समुदाय ने छत्तीसगढ़ में स्कूल, कॉलेज, और शैक्षिक संस्थानों की स्थापना में योगदान दिया। कई मारवाड़ी संगठनों ने छात्रवृत्तियां और शैक्षिक सहायता प्रदान की, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को शिक्षा मिली। मारवाड़ी समाज द्वारा संचालित धर्मशालाएं, अस्पताल, और चिकित्सा शिविर छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हैं। कमजोर परिवारों को मुफ्त चिकित्सा सहायता दी जाती है। मारवाड़ी संगठनों ने आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की बेटियों के विवाह के लिए सहायता प्रदान की, जिससे सामाजिक समानता को बढ़ावा मिला। मारवाड़ी समुदाय ने जैन धर्म और राजस्थानी संस्कृति को छत्तीसगढ़ में जीवंत रखा। होली, दीपावली, और जैन धार्मिक आयोजनों के माध्यम से उन्होंने अपनी परंपराओं को स्थानीय संस्कृति के साथ जोड़ा। मारवाड़ी सम्मेलनों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक एकता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया गया। ये आयोजन स्थानीय और मारवाड़ी समुदायों को एक मंच पर लाते हैं।
स्वतंत्रता संग्राम में भी लिया हिस्सा
छत्तीसगढ़ में मारवाड़ी समाज ने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया। मारवाड़ी व्यापारियों ने राष्ट्रीय आंदोलन को आर्थिक सहायता प्रदान की और समाचार पत्रों जैसे हिंद केसरी और भारतमित्र को वित्तीय मदद दी, जो स्वतंत्रता के विचारों को फैलाने में महत्वपूर्ण थे। मारवाड़ी समाज की जनसंख्या भले ही छत्तीसगढ़ में सीमित हो, लेकिन उनकी आर्थिक भागीदारी असाधारण है। उनके द्वारा स्थापित संस्थान और सामाजिक कार्य हजारों लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके प्रयासों ने स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया। मारवाड़ी समाज ने छत्तीसगढ़ की बहुसांस्कृतिक पहचान को समृद्ध किया, जिससे सामाजिक समरसता को बल मिला। हालांकि मारवाड़ी समाज का योगदान सराहनीय है, कुछ क्षेत्रों में उनकी उपेक्षा की शिकायत रही है। सरकारी स्तर पर उनकी पहचान और अधिकारों को लेकर मांगें उठती रही हैं। इसके अलावा, कुछ सामाजिक प्रथाओं जैसे दहेज और आडंबर पर भी आलोचनाएं हुई हैं, जिन्हें मारवाड़ी संगठन अब सुधारने की दिशा में काम कर रहे हैं।
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व्यापार-उद्योग क्षेत्र में बंसीलाल का योगदान
बंसीलाल अग्रवाल एक प्रसिद्ध मारवाड़ी व्यापारी और उद्यमी थे, जिन्होंने छत्तीसगढ़ में व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। रायपुर में कपड़ा और अनाज के व्यापार को संगठित करने में उनकी अहम भूमिका रही। उन्होंने स्थानीय व्यापारियों को एकजुट कर व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया। उन्होंने कई धर्मशालाओं और सामुदायिक भवनों के निर्माण में आर्थिक सहायता प्रदान की। शिक्षा के क्षेत्र में, उन्होंने स्कूलों और छात्रवृत्तियों के लिए दान देकर स्थानीय समुदाय को सशक्त बनाया।उनके प्रयासों से रायपुर और आसपास के क्षेत्रों में व्यापारिक गतिविधियां और सामाजिक ढांचा मजबूत हुआ।
सेठ गोविंदराम साहू ने किए कई नवाचार
सेठ गोविंदराम साहू भी एक प्रमुख मारवाड़ी व्यापारी और समाजसेवी, जिन्हें छत्तीसगढ़ में उनके परोपकारी कार्यों के लिए जाना जाता है। बिलासपुर और रायपुर में अनाज और किराना व्यापार के क्षेत्र में उन्होंने कई नवाचार किए, जिससे स्थानीय बाजारों का विस्तार हुआ। सामाजिक कार्यों में, उन्होंने गरीब परिवारों के लिए मुफ्त भोजन और आवास की व्यवस्था करने वाले संगठनों को समर्थन दिया। जैन मंदिरों और धर्मशालाओं के निर्माण में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा, जिसने मारवाड़ी संस्कृति को छत्तीसगढ़ में जीवंत रखा। उनके कार्यों ने मारवाड़ी समुदाय की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत किया और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाए।
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रामगोपाल अग्रवाल ने विकास को दिया बढ़ावा
रामगोपाल अग्रवाल एक दूरदर्शी उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता, जिन्होंने छत्तीसगढ़ में औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया। उन्होंने रायपुर और दुर्ग में छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर स्टील और सीमेंट उद्योग में। उन्होंने कई स्कूलों और अस्पतालों को आर्थिक सहायता प्रदान की, जिससे स्थानीय समुदाय को लाभ हुआ। उन्होंने सामाजिक एकता और समरसता को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों का आयोजन किया। उनके योगदान से छत्तीसगढ़ में औद्योगिक विकास को गति मिली और मारवाड़ी समुदाय का प्रभाव बढ़ा।
राजनीति में प्रत्यक्ष भागीदारी सीमित
छत्तीसगढ़ की राजनीति में मारवाड़ी समुदाय की प्रत्यक्ष भागीदारी अपेक्षाकृत सीमित रही है, क्योंकि यह समुदाय मुख्य रूप से व्यापार, उद्योग, और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहा है। फिर भी, कुछ मारवाड़ी व्यक्ति या परिवार स्थानीय और राज्य स्तर की राजनीति में शामिल रहे हैं। विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में। पूर्व सांसद मधुसूदन यादव एक मारवाड़ी नेता हैं, जो राजनांदगांव में सक्रिय रहे। हालांकि "यादव" उपनाम सामान्यतः अन्य समुदायों से जुड़ा है। 2009 में राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के सांसद चुने गए। राजनांदगांव नगर निगम में पार्षद और महापौर के रूप में कार्य किया। मधुसूदन यादव ने व्यापारिक पृष्ठभूमि का लाभ उठाकर स्थानीय स्तर पर बीजेपी की संगठनात्मक गतिविधियों को मजबूत किया। उनके आर्थिक प्रभाव ने पार्टी के लिए शहरी मतदाताओं को आकर्षित करने में मदद की।
बृजमोहन और जयसिंह प्रमुख मारवाड़ी नेता
छत्तीसगढ़ की राजनीति में बृजमोहन अग्रवाल और जयसिंह अग्रवाल दो प्रमुख मारवाड़ी नेता हैं, जो क्रमशः भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस से जुड़े हैं। दोनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी राजनीतिक यात्रा छत्तीसगढ़ के राजनीतिक परिदृश्य में प्रभावशाली रही है। बृजमोहन को छत्तीसगढ़ की राजनीति में "चाणक्य" कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने कभी चुनाव नहीं हारा और उनकी रणनीति ने बीजेपी को रायपुर में मजबूत बनाया। उनकी जीत का रिकॉर्ड और शहरी मतदाताओं के बीच लोकप्रियता उन्हें बीजेपी के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बनाती है। वहीं, जयसिंह अग्रवाल ने कोरबा को कांग्रेस का गढ़ बनाए रखा, जो एक हाई-प्रोफाइल औद्योगिक क्षेत्र है। उनके विवादित बयानों ने 2023 में कांग्रेस के आंतरिक कलह को उजागर किया, लेकिन उनकी स्थानीय लोकप्रियता बरकरार रही।
सफल नहीं रही छत्तीसगढ़िया राजनीति
प्रदेश में छत्तीसगढ़िया राजनीति कभी सफल नहीं रही। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़िया राजनीति की शुरुआत की। जोगी ने ही छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया का नारा दिया। उनके कार्यकाल में छत्तीसगढ़ियों को हर क्षेत्र में प्राथमिकता दी। इसको असर यह हुआ कि प्रदेश का वह तबका नाराज हो गया, जिसका प्रदेश के विकास में बड़ा योगदान रहा। नतीजा यह हुआ कि जब तीन साल बाद विधानसभा को चुनाव हुआ तो कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। छत्तीसगढ़िया राजनीति के कारण महज तीन साल में जनता ने नकार दिया। यही हाल भूपेश बघेल का हुआ। भूपेश बघेल ने भी अपने कार्यकाल में छत्तीसगढ़ियावाद को प्राथमिकता दी। भूपेश बघेल के नेतृत्व कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में लौटी थी तो छत्तीसगढ़ क्रांति सेना का बड़ा रोल था। छत्तीसगढ़ क्रांति सेना ने गांव गांव में छत्तीसगढ़िया राजनीति को हवा देकर परिवर्तन का नारा दिया था। भूपेश बघेल को जनता पांच साल में ही नकार दिया।
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