छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल, मेकाहारा, अपनी बदहाली और गड़बड़ियों के लिए हमेशा चर्चा में रहता है। हालात ये हैं कि यहां मरीजों से ज्यादा अपराधी और माफिया टाइप के लोग घूमते नजर आते हैं। जैसे ही आप अस्पताल के गेट से अंदर घुसते हैं, साइकिल स्टैंड से लेकर हर कोने में नशेड़ी, ड्रग्स के सौदागर और बदमाशों की भीड़ दिखती है। सुरक्षा के नाम पर रोज कोई ना कोई झगड़ा-विवाद हो रहा है। हालात इतने खराब हैं कि लोग कहते हैं, यहां चौकी नहीं, पूरा थाना खोल देना चाहिए ताकि मरीज और उनके परिजन सुरक्षित रह सकें।
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माफिया ने बिछा रखें है चार तरह के जाल
मेकाहारा में चार तरह के माफिया अपना जाल बिछाए हुए हैं, और कोई भी सरकार आए, इनका सिस्टम अडिग रहता है। मरीजों और उनके परिजनों को इलाज के लिए इन माफियाओं की बनाई बाधाओं से गुजरना पड़ता है। ये चार माफिया हैं।
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पार्किंग माफिया : अस्पताल में गाड़ी खड़ी करने के लिए परिजनों को इनके साथ जूझना पड़ता है। ये लोग मनमानी करते हैं और पैसे वसूलते हैं।
मेंटेनेंस माफिया : अस्पताल की व्यवस्था को ये अपने कब्जे में रखते हैं, जिससे साफ-सफाई और दूसरी सुविधाएं बदहाल रहती हैं।
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कैंटीन माफिया : मरीजों को मिलने वाला खाना घटिया, कम मात्रा में और बासी होता है। ठेकेदार बरसों से जमे हैं और मनमाने ढंग से सस्ता-घटिया खाना परोसते हैं। मरीजों की शिकायतें दबा दी जाती हैं।
दवा माफिया : ये सबसे खतरनाक है। अस्पताल में सरकारी दवाएं हमेशा "नहीं हैं" का बोर्ड लगा रहता है। मरीजों के परिजनों को मजबूरन बाहर की मेडिकल दुकानों से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती हैं, क्योंकि काउंटर पर दवाएं "खत्म" होती हैं।
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खाने की मात्रा में भी चोरी
कैंटीन में खाने की मात्रा में भी चोरी होती है। मरीजों को ना तो स्वादिष्ट, ना ही ताजा और ना ही पर्याप्त खाना मिलता है। कोई परिजन आवाज उठाए तो उसे चुप करा दिया जाता है। सामाजिक कार्यकर्ता और RTI वाले भी इस गंदगी में दखल देने से बचते हैं।
कांग्रेस सरकार के समय घुसे थे माफिया
पिछली भूपेश सरकार के समय से ये माफिया और उनके गुर्गे अस्पताल में जमे हुए हैं। नई सरकार में भी हालात जस के तस हैं। पार्किंग माफिया आज भी मरीजों के परिजनों से उलझता है। अगर यही हाल रहा तो लोग सरकारी अस्पतालों से मुंह मोड़ लेंगे। सरकार और प्रशासन को इस सिस्टम को तोड़ने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे, नहीं तो मेकाहारा का बुरा हाल और बिगड़ेगा।
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