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छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले की ठंडी वादियों में बसा मैनपाट, न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, बल्कि तिब्बती शरणार्थियों की सात बस्तियों के कारण इसे 'छोटा तिब्बत' भी कहा जाता है। 1962 में तिब्बत से आए इन शरणार्थियों ने मैनपाट को अपना घर बनाया, अपनी संस्कृति को जीवंत रखा और एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था स्थापित की, जो शांति, अनुशासन और आपसी भाईचारे का प्रतीक है।
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तिब्बती समुदाय की अनूठी न्याय व्यवस्था
मैनपाट के तिब्बती कैंपों में झगड़े और विवादों का समाधान कोर्ट-कचहरी में नहीं, बल्कि समुदाय के भीतर ही होता है। अगर कोई मनमुटाव होता है, तो कैंप लीडर दोनों पक्षों को बुलाकर बातचीत के जरिए हल निकालता है। अगर मामला जटिल हो, तो सेटलमेंट ऑफिस में समाज के लोग इकट्ठा होकर सही-गलत का फैसला करते हैं।
गलती करने वाला शख्स दलाई लामा की तस्वीर के सामने माला चढ़ाकर माफी मांगता है, और बात वहीं खत्म हो जाती है। इस प्रक्रिया में न तो पुलिस की जरूरत पड़ती है और न ही लंबी कानूनी प्रक्रिया की। कमलेश्वपुर थाना प्रभारी नवल किशोर दुबे बताते हैं, "मैनपाट के तिब्बती समुदाय से पिछले कई सालों में एक भी शिकायत या अपराध का मामला थाने में दर्ज नहीं हुआ।
चाहे घरेलू विवाद हो, जमीन से जुड़ा मुद्दा हो या कोई और मसला, यह समुदाय आपसी संवाद और समझदारी से हर समस्या का समाधान कर लेता है।"
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शांति के साथ मेहनत और पर्यावरण प्रेम
मैनपाट के तिब्बती न केवल शांतिप्रिय हैं, बल्कि मेहनती और पर्यावरण के प्रति जागरूक भी हैं। इस समुदाय ने मैनपाट में खरीफ की पहली आलू की खेती शुरू की और टाऊ (एक प्रकार की फसल) की जैविक खेती को बढ़ावा दिया। सर्दियों में गर्म कपड़ों का व्यापार उनकी आजीविका का प्रमुख स्रोत है। पर्यावरण संरक्षण उनके संस्कारों का हिस्सा है, जिसे वे अपनी जीवनशैली में शामिल करते हैं।
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भारतीय सेना में योगदान और सामाजिक मूल्य
तिब्बती समुदाय का योगदान केवल मैनपाट तक सीमित नहीं है। इस समुदाय के 60 से ज्यादा युवा भारतीय सेना में सेवारत हैं, जो उनकी देशभक्ति और अनुशासन को दर्शाता है। सामाजिक जीवन में भी उनकी सादगी और मूल्य प्रेरणादायक हैं। शादियों में न तो बैंड-बाजा होता है और न ही दहेज का लेन-देन। अगर कोई रिश्ता टूटता है, तो समाज शांतिपूर्ण तरीके से दोनों पक्षों को अलग कर देता है।
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शिक्षा और संस्कृति का संगम
मैनपाट में तिब्बती समुदाय के लिए सेंट्रल स्कूल है, जहां बच्चे न केवल शिक्षा प्राप्त करते हैं, बल्कि अपनी संस्कृति और मूल्यों को भी सीखते हैं। यह स्कूल उनके बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ तिब्बती परंपराओं से जोड़े रखता है।
भारत के प्रति कृतज्ञता
2009 में भारत सरकार ने तिब्बती शरणार्थियों को वोटिंग का अधिकार दिया, जिसने उन्हें इस देश का जिम्मेदार नागरिक बनाया। अब वे खुद को मेहमान नहीं, बल्कि भारत का अभिन्न अंग मानते हैं। मैनपाट की ठंडी वादियां और पहाड़ियां न केवल उनकी बस्तियों का घर हैं, बल्कि उनकी संस्कृति, शांति और अनुशासन की कहानी भी बयां करती हैं।
अपराध से कोसों दूर
मैनपाट क्षेत्र में जनवरी 2025 से अब तक स्थानीय थाने में झगड़ों, जमीन विवादों जैसे 60 से ज्यादा मामले दर्ज हुए, लेकिन इनमें एक भी तिब्बती समुदाय का नहीं था। यह तथ्य इस समुदाय की शांति और अनुशासन की गहरी नींव को दर्शाता है।
'छोटा तिब्बत' की पहचान
मैनपाट का तिब्बती समुदाय अपनी सादगी, मेहनत और शांतिप्रिय स्वभाव के कारण न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे देश में एक मिसाल है। दलाई लामा की तस्वीर के सामने माफी मांगकर विवाद खत्म करने की उनकी परंपरा, पर्यावरण के प्रति प्रेम और सामुदायिक एकता मैनपाट को 'छोटा तिब्बत' बनाने का असली कारण है। यह समुदाय न केवल अपनी संस्कृति को जीवंत रखता है, बल्कि भारत की मिट्टी में अपनी गहरी जड़ें भी जमाता है।
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