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छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्रों में हाल के वर्षों में जैव विविधता में खासा इजाफा देखा जा रहा है, लेकिन इन सबके बीच जो सबसे चौंकाने वाला और ध्यान खींचने वाला बदलाव है, वह है किंग कोबरा की लगातार बढ़ती उपस्थिति। कोरबा जिले के सघन जंगल अब इस विषधर सांप की पसंदीदा पनाहगाह बनते जा रहे हैं। यही नहीं, इन जंगलों में अब उड़न गिलहरी जैसी दुर्लभ प्रजातियां भी पाई जा रही हैं, जो यहां की जैव विविधता को और भी खास बना रही हैं।
किंग कोबरा की वापसी या विस्तार?
किंग कोबरा, जो आमतौर पर पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाया जाता है, अब छत्तीसगढ़ के जंगलों में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराने लगा है। विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार बेहतर होती पारिस्थितिकी, वन संरक्षण की कोशिशें, और जंगलों का सघन होना इस बदलाव के पीछे मुख्य कारण हैं।
हाल ही में वन विभाग द्वारा की गई एक सर्वेक्षण और कैमरा ट्रैपिंग में कोरबा के कई हिस्सों में किंग कोबरा की उपस्थिति दर्ज की गई। इससे पहले यह सांप बस्तर क्षेत्र में देखा गया था, लेकिन अब कोरबा की ओर इसका फैलाव इस बात का संकेत है कि इस विषधर को यहां का वातावरण रास आने लगा है।
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कोरबा के जंगल: जैव विविधता का नया हॉटस्पॉट
कोरबा का वन क्षेत्र अब केवल हाथियों और बाघों का ही नहीं, बल्कि उड़न गिलहरी, पैंगोलिन और किंग कोबरा जैसे दुर्लभ प्रजातियों का भी घर बनता जा रहा है। उड़न गिलहरी, जो आमतौर पर हिमालयीन क्षेत्रों में पाई जाती है, अब यहां के पहाड़ी जंगलों में देखी जा रही है। यह अपने शरीर के झिल्लीदार हिस्सों की मदद से एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक "उड़" सकती है।
वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक, कोरबा की जलवायु, घने साल और बांस के जंगल, तथा कम मानवीय हस्तक्षेप इन प्रजातियों के लिए आदर्श जीवन क्षेत्र प्रदान करते हैं।
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वन विभाग की भूमिका और चुनौतियाँ
वन विभाग ने इन नए जीवों की मौजूदगी के मद्देनज़र निगरानी बढ़ा दी है। साथ ही, स्थानीय लोगों को भी इन जीवों की सुरक्षा और सहअस्तित्व के लिए जागरूक किया जा रहा है। किंग कोबरा जैसे विषैले जीव के कारण संभावित खतरे को देखते हुए वन अधिकारियों द्वारा गांवों में जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। हालांकि, किंग कोबरा आम तौर पर शांत प्रवृत्ति का होता है और तब तक हमला नहीं करता जब तक उसे खतरा न महसूस हो।
छत्तीसगढ़, खासकर कोरबा का जंगल, अब जैव विविधता के लिहाज से और भी समृद्ध होता जा रहा है। किंग कोबरा और उड़न गिलहरी जैसी प्रजातियों की उपस्थिति न सिर्फ यहां के इकोसिस्टम को मजबूत कर रही है, बल्कि वन्यजीव प्रेमियों और वैज्ञानिकों के लिए भी यह क्षेत्र शोध और संरक्षण का केंद्र बनता जा रहा है।
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