छत्तीसगढ़ में अधूरी परियोजनाओं पर भ्रष्टाचार का साया

छत्तीसगढ़ में कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएं, जैसे सीबीडी मॉल, स्काईवॉक, अस्पताल, ऑडिटोरियम और बस स्टैंड वर्षों से अधूरी पड़ी हैं। इन पर करीब 900 करोड़ रुपये से अधिक की खर्च हो चुके हैं। ये परियोजनाएं जनता के धन की बर्बादी का प्रतीक बन गई हैं।

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Krishna Kumar Sikander
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Corruption looms over incomplete projects in Chhattisgarh the sootr
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छत्तीसगढ़ में कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएं, जैसे सीबीडी मॉल, स्काईवॉक, अस्पताल, ऑडिटोरियम और बस स्टैंड वर्षों से अधूरी पड़ी हैं। इन पर करीब 900 करोड़ रुपये से अधिक की खर्च हो चुके हैं। ये परियोजनाएं न केवल जनता के धन की बर्बादी का प्रतीक बन गई हैं, बल्कि इन पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के गंभीर आरोप भी लग रहे हैं। स्थानीय लोग और शहरी योजनाकार इसे जनता की वास्तविक जरूरतों की अनदेखी और संसाधनों के दुरुपयोग का उदाहरण मानते हैं।

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अधूरी परियोजनाओं का विवरण

सीबीडी मॉल (100 करोड़ रुपये) : 2019 से बंद पड़ा यह मॉल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में बनाया गया था। इसकी लागत 100 करोड़ रुपये थी, लेकिन यह अपनी शुरुआत से ही उपयोग के अभाव में जर्जर हो चुका है। यह मॉल न केवल आर्थिक बर्बादी का प्रतीक है, बल्कि इसके निर्माण में भ्रष्टाचार के आरोप भी सामने आए हैं।

बस स्टैंड कवर्धा (10 करोड़ रुपये) : लगभग 8 साल पहले 10 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया यह बस स्टैंड भी धूल खा रहा है। इसका उपयोग न के बराबर हो रहा है, और यह परियोजना भी कुप्रबंधन का शिकार हो गई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इसकी डिजाइन और स्थान जनता की जरूरतों के अनुरूप नहीं था।

अस्पताल (8 करोड़ रुपये) : गरीबों की सेवा के लिए बनाया गया यह अस्पताल 8 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुआ, लेकिन यह अभी तक शुरू नहीं हो सका। यह परियोजना उन लोगों के लिए निराशा का कारण बनी है, जो बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उम्मीद कर रहे थे।

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स्काईवॉक रायपुर (55 करोड़) : शास्त्री चौक से जयस्तंभ चौक और अंबेडकर अस्पताल चौक के बीच बनाया जा रहा है। यह प्रोजेक्ट 2017 में शुरू हुआ था, जिसका उद्देश्य व्यस्त क्षेत्रों में पैदल यात्रियों को ट्रैफिक से राहत देना और शहर को आधुनिक रूप देना था। हालांकि, तकनीकी और प्रशासनिक अड़चनों के कारण यह कई सालों से अधूरा पड़ा था। साय सरकार ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का निर्णय लिया है और लोक निर्माण विभाग (PWD) ने इसके लिए 37.75 करोड़ स्वीकृत भी किए हैं, और टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। रायपुर की फर्म पीएसए कंस्ट्रक्शन को यह टेंडर मिला है। स्काईवॉक का ढांचा करीब आठ साल से अधूरा खड़ा है, और इसकी स्थिति जर्जर हो चुकी है। कुछ हिस्सों में स्टील की प्लेटें टूट चुकी हैं, और निर्माण सामग्री खराब होने की आशंका है। अब तक इस प्रोजेक्ट पर 55 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं, और इसे पूरा करने के लिए और 31 करोड़ रुपये की आवश्यकता बताई गई है।

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अन्य परियोजनाएं

लग्जरी मॉल, ऑडिटोरियम, और मंत्रियों के बंगलों जैसी कई अन्य परियोजनाएं भी अधूरी या अप्रयुक्त पड़ी हैं। इनमें से कई परियोजनाएं शुरू होने के बाद से ही विवादों में रही हैं, और इनके निर्माण में भारी धनराशि खर्च होने के बावजूद जनता को कोई लाभ नहीं मिला।

भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के आरोप

आरोप है कि इन परियोजनाओं में जनता की वास्तविक जरूरतों को नजरअंदाज कर भ्रष्टाचार को प्राथमिकता दी गई। उदाहरण के लिए, साधारण फुटओवर ब्रिज की जगह करोड़ों रुपये खर्च कर स्काईवॉक बनाया गया, जो अब उपयोग के अभाव में खराब हो चुका है। उनका कहना है कि इन परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य दिखावे और कमीशनखोरी था।

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राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि ये सभी परियोजनाएं पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई थीं, जिनमें चमक-दमक पर ध्यान दिया गया, न कि जनता की वास्तविक जरूरतों पर। दूसरी ओर, बीजेपी ने भी कांग्रेस शासनकाल में हुए अन्य घोटालों, जैसे कि 1200 करोड़ रुपये के कथित धान घोटाले और शराब घोटाले (2161 करोड़ रुपये), का हवाला देकर जवाबी हमला किया है।

कोरबा में डीएमएफ घोटाला 

कोरबा जिले में खनिज न्यास (DMF) के तहत हर साल 300 करोड़ रुपये का फंड विकास कार्यों के लिए मिलता है, लेकिन इस फंड के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि एकीकृत आदिवासी विकास विभाग में 2.90 करोड़ का भुगतान बिना काम किए ही कर दिया गया। यह भुगतान 4 ठेकेदारों को किया गया। तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू और सहायक आयुक्त माया वारियर पर इस मामले में 500 करोड़ के घोटाले के आरोप हैं। रानू साहू को सुप्रीम कोर्ट ने हाल में ही सशर्त जमानत दी है। 

डोंगरगढ़ वन विभाग घोटाला

2021 में डोंगरगढ़ वन विभाग में बांस रोपण और फेंसिंग के नाम पर करोड़ों रुपये का फर्जीवाड़ा सामने आया। जांच में पाया गया कि जिन ग्रामीणों के नाम पर मजदूरी दिखाई गई, उनमें से कई ने कोई काम किया ही नहीं। फिर भी, उनके खातों में पैसे भेजे गए और बाद में विभागीय कर्मचारियों ने पैसे निकलवाकर गबन कर लिया। तीन साल बाद भी इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

जनता पर प्रभाव

इन अधूरी परियोजनाओं और भ्रष्टाचार के आरोपों ने छत्तीसगढ़ की जनता में भारी निराशा पैदा की है। दूर-दराज के गांवों में लोग आज भी पानी, स्कूल, और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ कर रहे हैं।  

पानी की कमी : कई गांवों में लोग मीलों पैदल चलकर पानी लाने को मजबूर हैं।  

जर्जर स्कूल : बच्चे जर्जर स्कूलों में पढ़ने को मजबूर हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं।  

स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव : अस्पतालों के अभाव में मरीज इलाज के लिए सड़कों पर दम तोड़ रहे हैं।

शहरी योजनाकारों की राय

शहरी योजनाकारों का कहना है कि इन परियोजनाओं की योजना बनाते समय जनता की वास्तविक जरूरतों को ध्यान में नहीं रखा गया। उदाहरण के लिए, स्काईवॉक जैसी परियोजनाएं मात्र दिखावा है। जनसाधारण फुटओवर ब्रिज पर्याप्त था। यह परियोजनाएं व्यावहारिक नहीं है।

राज्य के विकास में बड़ा रोड़ा

छत्तीसगढ़ में 900 करोड़ रुपये की अधूरी परियोजनाएं और उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप राज्य के विकास में एक बड़ा रोड़ा बने हुए हैं। ये परियोजनाएं न केवल जनता के धन की बर्बादी का प्रतीक हैं, बल्कि सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को भी उजागर करती हैं। इन मामलों में सख्त जांच और कार्रवाई की जरूरत है, ताकि भविष्य में ऐसी बर्बादी को रोका जा सके और जनता की वास्तविक जरूरतों को प्राथमिकता दी जा सके।

 

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