2015 से 2022 तक जिले को डीएमएफ फंड से लगभग 350 करोड़ रुपए मिले हैं। नियम के मुताबिक खनन डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन से मिलने वाली राशि का 70 फीसदी हिस्सा खदान से 10 किलोमीटर की परिधि में आने वाले गांवों पर खर्च होना है और बाकी 30 फीसदी 25 किमी तक आने वाले गांवों में, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
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कोरोनाकाल में जमकर भ्रष्टाचार
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक जिले के रायगढ़, घरघोड़ा, धरमजयगढ़, लैलूंगा, तमनार, खरसिया और पुसौर ब्लाक में 55 गांव सीधे और 864 गांव अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं लेकिन 2015 से 2022 तक इन गांवों में विकास कार्य या सामुदायिक हित में डीएमएफ से कोई राशि खर्च नहीं की गई है। इसी अवधि में कोरोनाकाल में डीएमएफ फंड से जमकर भ्रष्टाचार किया गया।
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ऊंची कीमतों पर उपकरण खरीदे गए। कृषि, स्वास्थ्य विभाग के साथ ही महिला एवं बाल विकास विभाग ने डीएमएफ फंड से जमकर खर्च किया। जिन इलाकों में खदान है, खनन गतिविधियां होती हैं। वहां शासन को मिलने वाली रायल्टी का एक हिस्सा डीएमएफ में जाता है।
खनन प्रभावित गांव की ग्राम पंचायत से काम की सूची बनवाई जाती है। प्रस्ताव बनता है, मिनटबुक में एंट्री होती है। स्वीकृत कामों को डीएमएफ के पोर्टल में दर्ज किया जाता है। पोर्टल में किसी भी गांव में कोई काम हुए नहीं दिखते हैं।
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ऐसे हुई धांधली
हर गांव को मिल सकता है 30 लाख रुपए आरटीआई एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी कहते हैं, जिले में 550 ग्राम पंचायतें हैं। 2015-22 तक जितना डीएमएफ मिला उससे प्रत्येक प्रभावित गांवों पर खर्च करें तो 30 लाख रुपए प्रति गांव से अधिक मिल सकते थे। इससे प्रभावित गांवों में स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, नाली, सड़क, पेयजल जैसे काम हो सकते हैं। कुछ सालों में खरीदी के नाम पर जमकर धांधली हुई है।
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