Chhattisgarh Election Commission : चुनाव के समय नेताओं द्वारा मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए हर संभव तरीका अपनाया जा रहा है। रैलियों, भाषणों, मीडिया विज्ञापनों से लेकर घर-घर प्रचार तक हर रणनीति का उपयोग होता है। लेकिन प्रचार की इस दौड़ में पेड न्यूज भी एक प्रभावी हथियार बनकर उभरा है, जिसमें पैसे देकर समाचार पत्रों में मनचाही खबरें छपवाई जाती हैं। छत्तीसगढ़ भी इस प्रवृत्ति से अछूता नहीं है।
चुनावों में पेड न्यूज का खुलासा
राज्य निर्वाचन आयोग की हालिया रिपोर्ट में यह सामने आया है कि छत्तीसगढ़ में कई प्रमुख राजनेताओं ने पेड न्यूज का सहारा लिया। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूर्व सीएम भूपेश बघेल, बृजमोहन अग्रवाल, कवासी लखमा, शिव डहरिया और विकास उपाध्याय सहित तीन दर्जन से अधिक नेताओं के नाम इस सूची में दर्ज हैं।
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चुनाव के दौरान इन नेताओं ने विधानसभा चुनावों में 70 और लोकसभा चुनावों में 38 खबरें पैसे देकर छपवाईं। आयोग ने विभिन्न समाचार पत्रों में छपी इन खबरों की जांच कर निष्कर्ष निकाला कि यह सामग्री प्रायोजित थी।
पेड न्यूज के खर्च पर कड़ी नजर
राज्य निर्वाचन आयोग ने यह भी सुनिश्चित किया कि प्रत्याशियों द्वारा पेड न्यूज पर किए गए खर्च को उनके कुल चुनावी खर्च में जोड़ा जाए। अफसरों ने बताया कि उपचुनावों में भी यही प्रक्रिया लागू की जा रही है, ताकि चुनावी नियमों का उल्लंघन न हो। मीडिया में छपने वाली प्रत्याशियों से संबंधित हर खबर पर नजर रखने के लिए सतर्क निगरानी हो रही है।
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तीन टीमें कर रहीं निगरानी
पेड न्यूज की पहचान और निगरानी के लिए आयोग ने तीन विशेष टीमें बनाई हैं, जो प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया का विश्लेषण कर रही हैं। इन टीमों का काम पेड न्यूज की रिपोर्ट तैयार करना और उसे उच्च समिति को सौंपना है।
समिति द्वारा सत्यापित खबरों को पेड न्यूज की श्रेणी में डाला जाता है और जिस आकार और अवधि के हिसाब से खबरें प्रकाशित होती हैं, उसी के अनुसार संबंधित प्रत्याशियों के खर्च में विज्ञापन शुल्क जोड़ा जाता है।
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चुनावी पारदर्शिता पर सवाल
पेड न्यूज का मुद्दा एक गंभीर चुनौती है, क्योंकि यह मतदाताओं की राय को प्रभावित कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करता है। निर्वाचन आयोग की सतर्कता और निगरानी इस समस्या को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, लेकिन पेड न्यूज की बढ़ती प्रवृत्ति पर काबू पाना अब भी एक बड़ी चुनौती है।
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