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छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के डौंडी लोहारा तहसील में ग्राम खैरकटटा की जमीन को लेकर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। दो साल से राजस्व विभाग के अधिकारी इस मामले में उलझे हुए हैं, न तो पुलिस ने आदेश के बावजूद FIR दर्ज की, न ही राजस्व विभाग ने गंभीरता दिखाई।
पीड़ित गुलाम लगातार सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है। जमीन का यह विवाद खसरा नंबर 788/1 और 594/1 का है। इस मामले में पद के दुरुपयोग और धोखाधड़ी के भी आरोप लग रहे हैं।
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जमीन निजी या शासकीय?
1990 से मध्य प्रदेश के पटवारी पाचशाला खसरा विवरण में यह जमीन द्वारका पिता तुलाराम (नाई) के नाम दर्ज थी। 29 अप्रैल 2022 को द्वारका ने इस जमीन को अंकित पूरी गोसाई को बेच दिया। इस दौरान पटवारी, रजिस्ट्रार दिनेश रड़के और तहसीलदार राम रतन दुबे ने नामांतरण प्रक्रिया पूरी की और ऋण पुस्तिका भी जारी की।
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27 सितंबर 2023 को जब अंकित गोसाई ने यह जमीन गुलाम को बेची, तो तहसीलदार गोविंद सिन्हा ने इसे शासकीय जमीन बताकर नामांतरण निरस्त कर दिया। उन्होंने छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता का हवाला दिया और कहा कि कलेक्टर की अनुमति बिना के शासकीय जमीन का हस्तांतरण नहीं हो सकता।
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पहले नामांतरण कैसे हुआ?
तहसीलदार ने माना कि पूर्व में भू-राजस्व संहिता का उल्लंघन कर नामांतरण किया गया। इस जवाब ने मामले को और जटिल कर दिया। गुलाम ने 24 जुलाई 2024 को कलेक्टर इंद्रजीत सिंह चंद्रावल के कार्यालय में शिकायत दर्ज की और सभी दस्तावेज सौंपे। कलेक्टर ने डिप्टी कलेक्टर चंद्रकांत कौशिक को जांच का आदेश दिया, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।
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अधिकारियों का टालमटोल, पीड़ित परेशान
गुलाम ने 29 अप्रैल 2024 को बालोद जिला कार्यालय के जनदर्शन में आवेदन दिया, जिसके जवाब में उन्हें SDM कार्यालय में अपील करने को कहा गया। SDM शिवनाथ बघेल ने तहसीलदार गोविंद सिन्हा के फैसले को सही ठहराते हुए नामांतरण खारिज कर दिया।
गुलाम ने 10 जून 2025 को पटवारी, रजिस्ट्रार दिनेश रड़के और तहसीलदार राम रतन दुबे के खिलाफ धोखाधड़ी और पद के दुरुपयोग की शिकायत दर्ज की। कलेक्टर कार्यालय ने सात दिन में कार्रवाई का आदेश दिया, लेकिन 5 जुलाई 2025 को मगचूवा थाने में बयान दर्ज होने के बावजूद कोई FIR दर्ज नहीं हुई।
दो साल से लटकी जांच
गुलाम का कहना है कि 2023 से वह इस मामले में भटक रहा है। राजस्व विभाग और पुलिस जांच के नाम पर केवल समय बर्बाद कर रहे हैं। गुलाम ने अधिकारियों पर भू-राजस्व संहिता का उल्लंघन कर गलत नामांतरण करने का आरोप लगाया है, जिससे वह ठगी का शिकार हुआ। इस मामले ने न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया है।
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