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Raipur. एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट (NCRB report) ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि खेती अभी भी फायदे का सौदा नहीं बन पाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब सत्ता संभाली थी तब यह कहा गया था कि खेती को अगले कुछ सालों में फायदे का सौदा बनाना है। यानी किसानों को अपनी फसल का लागत मूल्य नहीं बल्कि लाभकारी मूल्य मिलना चाहिए।
लेकिन यह जुमला बनकर ही रह गया। अभी भी किसान घाटे की वजह से आत्महत्या करने को मजबूर हैं। एनसीआरबी की हाल ही में जारी हुई 2023 की रिपोर्ट में किसानों की आत्महत्या में मध्यप्रदेश पांचवें तो छत्तीसगढ़ छटवें नंबर पर है। हैरानी की बात ये है कि राजस्थान में किसानों की जीरो सुसाइड हैं। तो क्या राजस्थान में खेती फायदे का सौदा हो गई है। जानकार इस सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं कि यहां पर किसानों की सुसाइड को इस नाम से दर्ज ही नहीं किया जाता।
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खेती नहीं फायदे का सौदा :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में केंद्र की सत्ता संभाली तो एक संकल्प लिया। अगले पांच से दस साल में खेती को फायदे का सौदा बनाया जाएगा और किसानों की आय में इजाफा किया जाएगा। किसानों को लागत मूल्य नहीं बल्कि लाभकारी मूल्य मिलेगा। इसके लिए प्रयास भी हुए लेकिन यह मुमकिन नहीं हो पाया।
मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गए हैं लेकिन एनसीआरबी की 2023 की ताजा रिपोर्ट जो आंकड़े बता रही है वो यह दिखा रहे हैं कि किसान अभी भी आत्महत्या करने को मजबूर हैं। यानी खेती अभी भी घाटे का सौदा है। एनसीआरबी की रिपोर्ट में किसानों की आत्महत्या में मध्यप्रदेश पांचवें नंबर पर और छत्तीसगढ़ छटवें नंबर पर है। राजस्थान में किसान की आत्महत्या का एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है। हालांकि जानकार राजस्थान के डाटा पर सवाल उठा रहे हैं।
किसानों की आत्महत्या के आंकड़े :
- मध्यप्रदेश : एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में साल 2023 में 94 किसानों ने आत्महत्या की।
- छत्तीसगढ़ : एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि 73 किसानों ने घाटे की वजह से सुसाइड किया।
- राजस्थान : इस रिपोर्ट में राजस्थान में किसानों की आत्महत्या का एक भी मामला दर्ज नहीं है।
भारत में 4690 किसानों ने आत्महत्या की। इसमें पहले नंबर पर महाराष्ट्र (2518) और दूसरे नंबर पर कनार्टक (1425) है।
खेती के कामों से जुड़े लोगों की आत्महत्या :
खेती में घाटे की वजह से अकेले किसान ही नहीं खेती के कामों में लगे मजदूर भी मौत को गले लगा लेते हैं। मध्यप्रदेश में कृषि कार्य में लगे 777 लोगों ने आत्महत्या की जिनमें 701 पुरुष और 76 महिलाएं हैं। छत्तीसगढ़ में खेती के काम में लगे 468 लोगों ने सुसाइड किया। इनमें 414 पुरुष और 54 महिलाएं शामिल हैं। वहीं राजस्थान में रिपोर्ट के मुताबिक किसान आत्महत्या नहीं करते लेकिन खेती के कामों में लगे लोग जरुर सुसाइड करने को मजबूर होते हैं। यहीं पर इस डाटा पर सवाल खड़ा होता है। राजस्थान में खेती के कामों में लगे 250 लोगों ने आत्महत्या की जिनमें 227 पुरुष और 23 महिलाएं शामिल हैं।
आत्महत्या करने को मजबूर अन्नदाता :
किसान देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। पूरी अर्थव्यस्था की धुरी खेती के आसपास ही घूमती है। इतना ही नहीं सियासत की धुरी भी अन्नदाता ही है। मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे प्रदेशों में तो कृषि ही पूरे अर्थतंत्र का आधार है। फिर भी किसानों के मुद्दे पर इतनी अनदेखी क्यों। ये जरुर है कि सरकार किसानों को अधिकांश चीजों में सब्सिडी देती है, फसलों का समर्थन मूल्य घोषित करती है, बोनस भी दिया जाता है।
इतना ही नहीं किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री की तरफ से 6 हजार रुपए सालाना किसान सम्मान निधि भी दी जाती है। फसलों के खराब होने पर मुआवजा और और बीमा राशि दी जाती है। लेकिन क्या ये सब काफी है। जानकार कहते हैं कि यह फौरी आय है। हमारे यहां का किसान आसमानी बारिश पर निर्भर है।
इसलिए अक्सर बेमौसम बरसात उसकी फसल नष्ट कर देती है। वहीं सरकार समर्थन मूल्य तो घोषित करती है लेकिन वो लागत मूल्य होता है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए उसे लाभकारी मूल्य देना पड़ेगा। किसानों की आत्महत्या की संख्या भले ही कम हो लेकिन खेती में घाटे की वजह से एक भी किसान की मौत चिंता ही नहीं चिंतन का भी विषय है।