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Impact Feature
Raipur. कभी गरीबी, पिछड़ेपन और नक्सलवाद से जूझता छत्तीसगढ़ आज नई कहानी लिख रहा है। जिसे कभी केवल धान का कटोरा कहा जाता था, वही राज्य अब पूरे देश में खाद्यान्न आत्मनिर्भरता और PDS के आदर्श मॉडल के रूप में पहचान बना चुका है। वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था, तब यहां के किसान बदहाली में थे। आम लोगों तक राशन पहुंचाना बड़ी चुनौती थी। अब 25 साल में तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है और इस बदलाव की सबसे बड़ी ताकत बने हैं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, जिनकी किसान हितैषी नीतियों ने प्रदेश को नई दिशा दी है।
गौरतलब है कि वर्ष 2000 में राज्य के निर्माण के वक्त छत्तीसगढ़ की कृषि व्यवस्था कमजोर थी। किसानों के पास धान बेचने की कोई सुरक्षित व्यवस्था नहीं थी। उन्हें फसल का सही दाम नहीं मिलता था और उन्हें अक्सर औने-पौने भाव में धान बेचना पड़ता था। भंडारण की स्थिति इतनी खराब थी कि अनाज सड़ जाता था या बिचौलियों के हाथों सस्ता बिकता था। राशन की दुकानों में घटिया गुणवत्ता का अनाज या फिर बिल्कुल भी अनाज नहीं मिलता था। खाद्यान्न उत्पादन भी राज्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं था। यही वजह थी कि धान का कटोरा कहलाने वाला यह राज्य अपने नागरिकों को भरपेट भोजन नहीं दे पाता था। इसके बाद स्थितियां बदलीं और अब छत्तीसगढ़ देश को भरपेट अनाज दे रहा है। यह सिर्फ एक राज्य की सफलता नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरक कहानी है।
सीएम साय ने इस तरह बढ़ाए कदम
छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पद संभालते ही साफ कर दिया था कि छत्तीसगढ़ की असली ताकत किसान हैं। उन्होंने नारा दिया कि किसान को न्याय, गरीब को भोजन...। इस सोच के साथ उन्होंने कृषि और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता बनाया। धान खरीदी व्यवस्था में सुधार, किसानों को समर्थन मूल्य, बोनस योजना, पारदर्शी वितरण प्रणाली और डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल...इन सबने मिलकर इस क्षेत्र में ऐतिहासिक बदलाव ला दिया।
धान खरीदी में आया ऐतिहासिक सुधार
सीधी खरीदी व्यवस्था: किसानों को बिचौलियों के चंगुल से निकालने के लिए सरकार ने सीधी खरीदी व्यवस्था शुरू की। अब किसान सीधे सरकारी केंद्रों पर धान बेचने लगे।
MSP और बोनस: न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया गया और बोनस की व्यवस्था की गई, जिससे किसानों की आमदनी में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई।
भंडारण का विस्तार: गोदामों और वेयरहाउस बनाए गए ताकि खरीदा गया धान सुरक्षित रखा जा सके।
ऑनलाइन भुगतान: किसानों को भुगतान सीधे बैंक खाते में मिलने लगा, जिससे पारदर्शिता बढ़ी और भ्रष्टाचार की गुंजाइश खत्म हुई।
इन सुधारों से धान खरीदी केंद्रों पर किसानों की भीड़ बढ़ने लगी और उनकी आमदनी बढ़ गई।
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PDS में छत्तीसगढ़ ने पेश किया आदर्श मॉडल
पहले जहां राशन की दुकानें भ्रष्टाचार और अव्यवस्था का केंद्र थीं, वहीं अब छत्तीसगढ़ की PDS व्यवस्था पूरे देश के लिए उदाहरण बन चुकी है। 1 रुपए किलो चावल योजना के जरिए गरीबों को सस्ता और अच्छा अनाज मिल रहा है। राशन कार्डों के डिजिटलीकरण से फर्जी कार्डों पर रोक लगी है। POS मशीन और बायोमैट्रिक सिस्टम से सुनिश्चित हुआ कि अनाज सही व्यक्ति तक पहुंचे। गुणवत्ता पर सख्त निगरानी से दुकानों पर अच्छा चावल और गेहूं मिलने लगा है।
2004 में जब छत्तीसगढ़ ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (नियंत्रण) आदेश लागू किया था, तभी से इस व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत हुई। आज छत्तीसगढ़ में 90% से अधिक आबादी PDS के दायरे में है।
गांवों में बदली किसानों की जिंदगी
कभी बदहाल किसान अब आत्मनिर्भर बन गए हैं। गांवों में मोटरसाइकिल, ट्रैक्टर, थ्रेशर और आधुनिक खेती के उपकरण हो गए हैं। कई किसान अब अपने बच्चों को इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई तक करा पा रहे हैं। सरगुजा के किसान रामलाल साहू कहते हैं, पहले हमें धान का सही दाम नहीं मिलता था। अब सरकार सीधे खरीदी करती है और पैसा खाते में आता है। अब खेती भी ठीक चल रही है और बच्चों की पढ़ाई भी।
राष्ट्रीय स्तर पर मिली तारीफ
छत्तीसगढ़ के इस मॉडल को नीति आयोग और योजना आयोग ने अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय बताया है। कई राज्यों के प्रतिनिधिमंडल यहां आकर PDS व्यवस्था का अध्ययन कर चुके हैं। केंद्र सरकार ने भी छत्तीसगढ़ को देश में सबसे पारदर्शी खाद्यान्न वितरण मॉडल के रूप में सराहा है।
अब निर्यातक राज्य बनने की तैयारी
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सोच अब सिर्फ आत्मनिर्भरता तक सीमित नहीं है। उनका लक्ष्य छत्तीसगढ़ को एक बड़ा खाद्यान्न निर्यातक राज्य बनाना है। इसके लिए धान के साथ-साथ दलहन, तिलहन और बागवानी फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है। एग्रो प्रोसेसिंग उद्योगों की स्थापना हो रही है। किसानों को जैविक और तकनीकी खेती की ओर प्रेरित किया जा रहा है।
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