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छत्तीसगढ़ के तहसील कार्यालय में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) प्रमाण पत्र से जुड़ा एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसने प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। नीट यूजी प्रवेश में फर्जी ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्रों के इस्तेमाल का मामला पिछले शुक्रवार को मीडिया में उजागर होने के बाद प्रशासन में हड़कंप मच गया।
सोमवार को अतिरिक्त तहसीलदार गरिमा ठाकुर के समक्ष प्रभावित छात्रों के परिजनों और संदिग्ध कर्मचारियों, विशेष रूप से रीडर, के बयान दर्ज किए गए। हालांकि, देर शाम तक तहसील कार्यालय के अधिकारी इस मामले को दबाने के लिए मीटिंग में व्यस्त रहे, जिससे परिजनों में आक्रोश बढ़ रहा है।
घोटाले की शुरुआत में नीट प्रवेश में फर्जीवाड़ा
पिछले सप्ताह नीट यूजी प्रवेश प्रक्रिया में फर्जी ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्रों के उपयोग का मामला सामने आने के बाद प्रशासन पर दबाव बढ़ गया। इस खुलासे ने तहसील कार्यालय की कार्यप्रणाली को कटघरे में ला खड़ा किया। मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने जांच शुरू की और सोमवार को सभी संबंधित पक्षों के बयान दर्ज किए गए।
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लेकिन जांच में देरी और स्पष्ट निष्कर्ष की कमी ने संदेह को और गहरा कर दिया है। जांच के दौरान पता चला कि फर्जी प्रमाण पत्र नायब तहसीलदार प्रकृति ध्रुव के क्षेत्र के निवासियों के नाम पर जारी किए गए, लेकिन आवेदन प्रक्रिया अतिरिक्त तहसीलदार गरिमा ठाकुर के रीडर के माध्यम से संचालित हुई।
इस कारण संदेह की सुई रीडर और कार्यालय के कुछ कर्मचारियों पर टिकी हुई है। परिजनों का आरोप है कि असली दोषियों को बचाने के लिए प्रशासन मामले को रफा-दफा करने की कोशिश कर रहा है।
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परिजनों का दर्द, "हमारा क्या दोष?
"प्रभावित छात्रों के परिजनों में गुस्सा और निराशा साफ दिख रही है। भाव्या मिश्रा के पिता सूरज मिश्रा ने बताया कि उनकी बेटी ने नीट में 490 अंक हासिल किए थे, जिसके आधार पर उसे सरकारी कॉलेज में दाखिला मिल सकता था। बेहतर प्राइवेट कॉलेज में प्रवेश के लिए उन्होंने ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र बनवाने के लिए नायब तहसीलदार प्रकृति ध्रुव से संपर्क किया।
प्रकृति ध्रुव ने आश्वासन दिया कि सब कुछ नियम के अनुसार होगा। प्रक्रिया गरिमा ठाकुर के रीडर के माध्यम से पूरी हुई और 16, 21 व 25 अगस्त को दस्तावेजों का सत्यापन भी हुआ। इसके बावजूद प्रमाण पत्र फर्जी कैसे निकला, यह सवाल परिजनों को परेशान कर रहा है।
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आवेदकों की दलील, प्रक्रिया थी पारदर्शी
प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने वाले परिजनों का कहना है कि उन्होंने पूरी प्रक्रिया नियमों के अनुसार पूरी की। दस्तावेजों की जांच के बाद ऑनलाइन सिस्टम में प्रकरण दर्ज हुआ और प्रमाण पत्र को सीरियल नंबर भी आवंटित किया गया।
उनका तर्क है कि जब सिस्टम ने स्वयं प्रमाण पत्र को मान्यता दी, तो उन्हें यह पूछने की जरूरत क्यों पड़ी कि हस्ताक्षर और मुहर किसने की? सवाल यह है कि अगर पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन और पारदर्शी थी, तो गड़बड़ी कहां हुई? क्या यह किसी कर्मचारी की साजिश थी या सिस्टम में तकनीकी खामी? इस पर प्रशासन ने अभी तक कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया।
आउटसोर्सिंग कर्मचारियों पर सवाल
तहसील कार्यालय में संवेदनशील कार्यों के लिए दर्जनभर आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की सेवाएं ली जा रही हैं, जिससे गोपनीयता भंग होने की आशंका बढ़ गई है। रीडर प्रहलाद नेताम ने बताया कि उनके साथ अखिल त्रिवेदी और संदीप लोनिया जैसे अन्य आउटसोर्सिंग कर्मचारी भी कार्यालय में काम करते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जब गोपनीय कार्यों का जिम्मा आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को दिया जाता है, तो ऐसी गड़बड़ियां होना स्वाभाविक है। यह मामला प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठा रहा है।
आरोप-प्रत्यारोप का खेल
ईडब्ल्यूएस घोटाले में जिम्मेदारी तय करने के बजाय अब आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। रीडर तहसीलदार पर दोष मढ़ रहे हैं, तहसीलदार रीडर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, और एसडीएम तहसीलदार पर सवाल उठा रहे हैं। आउटसोर्सिंग कर्मचारी भी खुद को निर्दोष बताते हुए अधिकारियों पर पलटवार कर रहे हैं। इस आपसी दोषारोपण ने जांच को और जटिल बना दिया है।
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