न्यायधानी में देश के इकलौते हनुमानजी, जहां देवी रूप में होती है पूजा

छत्तीसगढ़ पूरे देश में एक ऐसा प्रदेश है, जहां बजरंग बली देवी के रूप में पूजे जाते हैं। न्यायधानी यानी बिलासपुर जिले के रतनपुर के गिरजाबंध में दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर है।

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Kanak Durga Jha
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Hanuman worshipped form of Goddess Ratanpur Bilaspur
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छत्तीसगढ़ पूरे देश में एक ऐसा प्रदेश है, जहां बजरंग बली देवी के रूप में पूजे जाते हैं। न्यायधानी यानी बिलासपुर जिले के रतनपुर के गिरजाबंध में दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि राम और रावण युद्ध के समय रावण के भाई पाताल लोक के नरेश अहिरावण ने छल से राम-लक्ष्मण को बंदी बना लिया था।

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लक्ष्मण को छुड़ाने हनुमानजी पाताल लोक गए थे। वहां उन्होंने आराध्य देवी कामदा देवी की मूर्ति में प्रवेश कर हनुमानजी ने अहिरावण का वध किया था। यहां हनुमानजी उसी रूप में पूजे जाते हैं।  यहां प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

राजा को कुष्ठ रोग से मिली मुक्ति

यहां हनुमान जी की देवी के रूप में पूजा करने के लिए यह भी पौराणिक कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार, 10वीं शताब्दी के काल में रतनपुर के एक राजा पृथ्वी देवजू थे, जो हनुमान जी के भक्त थे। राजा को जब कुष्ठ रोग हो गया। तब राजा अपने जीवन से निराश और हताश हो गए थे।

एक रात हनुमान जी राजा के सपने में आए और मंदिर बनवाने के लिए कहा। मंदिर बनने के बाद हनुमान जी फिर से राजा के सपने में आए और अपनी प्रतिमा को रतनपुर में ही स्थित महामाया कुण्ड से निकालकर मंदिर में स्थापित करने को कहा।

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राजा ने वहां से प्रतिमा निकलवाई यह प्रतिमा देवी के रूप में थी। जिसे राजा ने भगवान के आदेश के अनुसार मंदिर में स्थापित कराया। तभी से इसकी देवी के रूप में पूजा हो रही है। मंदिर बनवाने के बाद राजा रोग मुक्त हो गए।

राम-लक्ष्मण हैं कंधे पर विराजमान, पैर के नीचे दबा है अहिरावण

हनुमान जी की यह प्रतिमा दक्षिणमुखी है। इनके बाएं कंधे पर श्री राम और दाएं पर लक्ष्मण जी विराजमान हैं। हनुमान जी के पैरों के नीचे दो राक्षस दबे हुए हैं। जिनमें एक को अहिरावण माना जाता है। मुख्य पुजारी तारकेश्वर महराज बताते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि

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बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो।

देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।

जाय सहाय भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत संहारो।

ये प्रतिमा किसने बनवाई इसका कोई प्रमाण नहीं है। बुजुर्गों से हमने सुना है कि रामायण काल में भगवान बजरंग बली 

 

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