छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण पर घुमी धर्म और सियासत की धुरी

छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण का मुद्दा एक बार फिर सियासत और धर्म की धुरी बनकर उभरा है। सरगुजा से बस्तर तक धर्मांतरण के खिलाफ आवाजें बुलंद हो रही हैं, जिसमें हिंदू संगठन, आरएसएस और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की साय सरकार सक्रिय भूमिका निभा रही है।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण का मुद्दा फिर सियासत और धर्म की धुरी बनकर उभरा है। सरगुजा से बस्तर तक इसके खिलाफ आवाजें बुलंद हो रही हैं, जिसमें हिंदू संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की साय सरकार सक्रिय भूमिका निभा रही है। इस बीच, कांग्रेस के वरिष्ठ आदिवासी नेता अरबिंद नेताम ने बस्तर में इसे रोकने के लिए संघ के समर्थन की बात कही है, जबकि बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जशपुर में कथा के जरिए हिंदू जागरण का आह्वान कर रहे हैं। दूसरी ओर, प्रबल प्रताप सिंह जूदेव के नेतृत्व में घर वापसी अभियान तेज हो गया है तो साय सरकार धर्मांतरण विरोधी नए कानून का मसौदा तैयार कर रही है। 

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धर्मांतरण पर सरगुजा से बस्तर तक हलचल

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल क्षेत्रों, खासकर जशपुर, सरगुजा, और बस्तर में मतांतरण का मुद्दा लंबे समय से संवेदनशील रहा है। जशपुर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय का गृह जिला है। इस जिले में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियां अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, जशपुर में 22.5% से अधिक आबादी ईसाई है। अनुमान है कि यह संख्या अब 35% तक पहुंच सकती है। बस्तर में भी पिछले 11 महीनों में मतांतरण से जुड़ी 23 शिकायतें और 13 एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। इन क्षेत्रों में हिंदू संगठनों और स्थानीय आदिवासी समुदायों में आक्रोश बढ़ रहा है। हिंदू संगठन इसे सनातन संस्कृति और आदिवासी पहचान पर खतरे के रूप में देखते हैं, जबकि धर्मांतरित ईसाई समुदाय इसे स्वेच्छा से धर्म अपनाने का अधिकार बताता है। इस बीच, सियासी दलों ने भी इस मुद्दे को अपने-अपने तरीके से भुनाने की कोशिश शुरू कर दी है।

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अरबिंद नेताम का बस्तर में बड़ा बयान

कांग्रेस के वरिष्ठ आदिवासी नेता और छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक अरबिंद नेताम ने हाल ही में बस्तर में बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा, “बस्तर में मतांतरण और नक्सलवाद दो बड़ी चुनौतियां हैं। मेरे नजर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही एकमात्र ऐसी संस्था है, जो इसे रोकने में हमारी मदद कर सकती है।” नेताम ने यह भी मांग की कि धर्मांतरित आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की श्रेणी से हटाया जाए, ताकि डिलिस्टिंग के जरिए इस पर अंकुश लगाया जा सके। नेताम का यह बयान कांग्रेस के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है, क्योंकि पार्टी ने अतीत में इस मुद्दे पर बीजेपी को डबल गेम खेलने का आरोप लगाया था। नेताम के बयान ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में खलबली मचा दी है, और बीजेपी इसे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश में है।

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धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जशपुर में कथा

बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जशपुर में सबसे बड़े चर्च के सामने हनुमंत कथा का आयोजन करने जा रहे हैं। यह कथा जशपुर में हिंदू जागरण और सनातन धर्म के प्रचार के लिए एक बड़ा मंच माना जा रहा है।  बागेश्वर बाबा के नाम से भी प्रसिद्ध धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पहले भी रायपुर में आयोजित कथा के दौरान 1,000 से अधिक लोगों की घर वापसी का दावा कर चुके हैं। जशपुर में उनके इस आयोजन को लेकर स्थानीय ईसाई समुदाय और छत्तीसगढ़ क्रिस्चियन फोरम ने आपत्ति जताई है। फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल ने इसे धार्मिक उन्माद फैलाने की कोशिश बताया और सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर करने की बात कही। दूसरी ओर, हिंदू संगठन इसे सनातन धर्म की रक्षा और आदिवासी समाज को उनकी मूल संस्कृति से जोड़ने का प्रयास बता रहे हैं।

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प्रबल प्रताप जूदेव और घर वापसी अभियान

अखिल भारतीय घर वापसी अभियान के प्रमुख प्रबल प्रताप सिंह जूदेव छत्तीसगढ़ में घर वापसी की कमान संभाले हुए हैं। उनके पिता, पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव ने 1986 में इस अभियान की शुरुआत की थी। प्रबल प्रताप का दावा है कि उन्होंने अब तक 15,000 से अधिक लोगों की घर वापसी कराई है। हाल ही में सरगुजा के अंबिकापुर में 22 परिवारों के 100 लोगों ने सनातन धर्म में वापसी की, जिसमें स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने भी हिस्सा लिया। जूदेव का कहना है, “मिशनरियां प्रलोभन और विदेशी फंडिंग के जरिए गरीब आदिवासियों को धर्मांतरित कर रही हैं। यह समाज और देश के लिए खतरनाक है।” सक्ती जिले में भी हाल ही में 700 से अधिक लोगों की घर वापसी का दावा किया गया। जूदेव ने जशपुर से रायपुर तक पदयात्रा की भी योजना बनाई है, ताकि इस अभियान को और गति दी जा सके।

साय सरकार का धर्मांतरण विरोधी कानून

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार मतांतरण के खिलाफ सख्त कानून लाने की तैयारी में है। डिप्टी सीएम और गृह मंत्री विजय शर्मा ने विधानसभा में संकेत दिए कि आगामी सत्र में नया बिल पेश किया जा सकता है। सरकार का कहना है कि मौजूदा छत्तीसगढ़ धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम को और मजबूत करने की जरूरत है। नए कानून का मसौदा तैयार करने के लिए गृह विभाग अन्य राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश के ऐसे कानून का अध्ययन कर रहा है। प्रस्तावित कानून में प्रलोभन, दबाव, या धोखे से कड़ी सजा और पहले अनुमति लेने की शर्त शामिल हो सकती है। साय ने कहा, “कुछ एनजीओ स्वास्थ्य और शिक्षा के नाम पर विदेशी फंडिंग लेकर इसको बढ़ावा दे रहे हैं। इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

सियासी आरोप-प्रत्यारोप

मतांतरण का मुद्दा सियासी रंग भी ले चुका है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने बीजेपी पर डबल गेम खेलने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “आंकड़े निकालें तो पता चलेगा कि बीजेपी शासन में कितने चर्च बने। हमारे समय में धर्मांतरित आदिवासियों के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद होते थे, लेकिन अब ऐसे मामले क्यों नहीं उठ रहे?” भूपेश के आरोपों के जवाब में उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा, “कोई डबल गेम नहीं है। हमारी सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है और जल्द सख्त कानून लाएगी।” बीजेपी विधायक अजय चंद्राकर ने बस्तर और जशपुर में ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित एनजीओ पर विदेशी फंडिंग के जरिए इसको बढ़ावा देने का आरोप लगाया।

आदिवासी समाज और सामाजिक तनाव

मतांतरण के मुद्दे ने आदिवासी समाज में भी तनाव पैदा किया है। बस्तर में धर्मांतरित ईसाई और मूल आदिवासी समुदायों के बीच कब्रिस्तान को लेकर विवाद सामने आए हैं। आदिवासी नेताओं का कहना है कि इससे उनकी सांस्कृतिक पहचान और परंपराएं खतरे में हैं। दूसरी ओर, ईसाई समुदाय का आरोप है कि उन पर झूठे इल्जाम लगाकर उत्पीड़न किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में यह मुद्दा न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी जटिल हो गया है। साय सरकार के नए कानून, जूदेव के घर वापसी अभियान, शास्त्री की कथा, और नेताम के बयानों ने इस मुद्दे को और गर्म कर दिया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद किस दिशा में जाता है और क्या यह आदिवासी बहुल राज्य की सांप्रदायिक सौहार्द को प्रभावित करता है।

 

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