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छत्तीसगढ़ के जगदलपुर स्थित शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक पदों की भर्ती में गड़बड़ी का मामला सामने आया है। आरोप है कि भर्ती प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताओं बरती गई हैं। भर्ती के लिए साक्षात्कार के परिणाम का लिफाफा तो खुला, लेकिन 4 दिन बाद भी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जारी नहीं किया गया। चयनित अभ्यर्थियों को गुपचुप तरीके से नियुक्ति पत्र देकर पद ग्रहण करा दिया गया। इस मामले में आवेदक अनुपम तिवारी ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर भारी धांधली का आरोप लगाते हुए कुलपति को लिखित शिकायत की है।
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मेरिट की अनदेखी, चहेतों को फायदा
अनुपम तिवारी ने अपनी शिकायत में कहा कि भर्ती प्रक्रिया में योग्य और मेरिट में उच्च अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को दरकिनार कर कम अंक वाले अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी गई। उन्होंने विशेष रूप से बस्तर जैसे आदिवासी क्षेत्र में आदिवासी और महिला अभ्यर्थियों को प्राथमिकता न देने पर आपत्ति जताई। शिकायत के अनुसार, 24 मई 2025 को पांच विषयों के साक्षात्कार का लिफाफा खोला गया, और उसी दिन रश्मी देवांगन, दुर्गेश डिकसेना और तुलिका शर्मा को नियुक्ति पत्र देकर पदभार ग्रहण कराया गया। आरोप है कि इनके चयन की चर्चा पहले से ही वायरल थी, जो प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।
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विश्वविद्यालय पर परिणाम छिपाने का आरोप
शिकायतकर्ता का कहना है कि विश्वविद्यालय ने 10 विषयों के 59 शैक्षणिक पदों के लिए एक ही विज्ञापन और आरक्षण रोस्टर के आधार पर भर्ती शुरू की थी। लेकिन परिणाम घोषित करने से पहले ही चयनितों के नाम वायरल होने से प्रशासन ने आनन-फानन में केवल पांच विषयों के लिफाफे खोलकर चहेतों को नियुक्ति दे दी। परिणाम आज तक वेबसाइट पर अपलोड नहीं किए गए, और अन्य अभ्यर्थी जानकारी के लिए भटक रहे हैं। अनुपम तिवारी ने इसे अभ्यर्थियों के अधिकारों का हनन और भ्रष्टाचार का प्रमाण बताया।
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ग्रामीण प्रौद्योगिकी भर्ती में विशेष अनियमितता
ग्रामीण प्रौद्योगिकी विषय के सहायक प्राध्यापक पद के साक्षात्कार में कई खामियां सामने आईं। 8 मई 2025 को हुए साक्षात्कार में गड़बड़ी की शिकायत की गई कि यूजीसी नियमों के अनुसार तीन विषय विशेषज्ञों की आवश्यकता थी, लेकिन केवल दो विशेषज्ञ मौजूद थे, जो ग्रामीण प्रौद्योगिकी से संबंधित नहीं थे। चयन समिति में कोई महिला सदस्य नहीं थी, और एक सहायक प्राध्यापक ने अनुचित रूप से साक्षात्कार में विषय से बाहर सवाल पूछे। दुर्गेश डिकसेना को नियुक्ति देने के लिए साक्षात्कार से पहले ही सवालों पर चर्चा होने का भी आरोप है।
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आदिवासी अभ्यर्थियों को नजरअंदाज करने का आरोप
ग्रामीण प्रौद्योगिकी के दो पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थे, लेकिन एमफिल और पीएचडी धारक आदिवासी अभ्यर्थियों को "नॉट फाउंड सूटेबल" बताकर खारिज कर दिया गया। शिकायतकर्ता ने इसे आदिवासी क्षेत्र में स्थानीय अभ्यर्थियों के साथ अन्याय बताया। उन्होंने यह भी कहा कि दुर्गेश डिकसेना मेरिट में अन्य अभ्यर्थियों से पीछे थे, और उनके पास न तो अनुभव था, न पुरस्कार, फिर भी साक्षात्कार में अधिक अंक देकर उनकी नियुक्ति की गई।
निष्पक्ष जांच की मांग
अनुपम तिवारी ने इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। उनकी शिकायत की प्रतियां प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, मुख्य सचिव, बस्तर संभागायुक्त और हाईकोर्ट को भेजी गई हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन पर परिणाम छिपाने और अवैधानिक नियुक्तियों का आरोप लगाया है।
विश्वविद्यालय का जवाब
विश्वविद्यालय के कुलपति मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया विश्वविद्यालय अध्यादेश, विनियम और यूजीसी नियमों 2018 के अनुसार हुई है। सभी प्रक्रियाएं कार्य परिषद के समक्ष पूरी की गईं और मिनट्स में दर्ज हैं। नियुक्तियां नियमों के तहत ही की गई हैं।
अभ्यर्थियों का भटकाव
साक्षात्कार देने वाले अन्य अभ्यर्थी परिणाम की जानकारी के लिए विश्वविद्यालय की वेबसाइट और फोन पर संपर्क कर रहे हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल रहा। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि यह पारदर्शिता की कमी और भ्रष्टाचार का स्पष्ट प्रमाण है। इस मामले में अब निष्पक्ष जांच और कार्रवाई की मांग तेज हो रही है।
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