Maa Angarmoti Devi Temple Thousand Year Old History: छत्तीसगढ़ समेत देशभर में नवरात्रि बड़े धूमधाम से मनाई जा रही है। सभी मंदिरों में माता की ज्योत जलाकर विधि-विधान से पूजा पाठ किया जा रहा है। वहीं प्रदेश के बड़े-बड़े देवी मंदिरों में माता के दर्शन के लिए खास व्यवस्था की गई है। मां बम्लेश्वरी देवी मंदिर, मां महामाया देवी मंदिर, मां दंतेश्वरी देवी मंदिर समेत सभी बड़े मंदिरों में लाखों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंच रहे है। वहीं अलग-अलग राज्यों से भी लाेग माता के दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ आ रहे है।
छत्तीसगढ़ के सभी माताओं के मंदिरों की अपनी अलग-अलग मान्यताएं हैं। कहीं माता ने राजा को दर्शन दिया ताे कहीं देवी मां सालों तक साेईं रहीं। इसी तरह धमतरी जिले में स्थित मां अंगारमोती देवी मंदिर का इतिहास भी सालों पुराना है। ऐसा माना जाता है कि यहां माता अपने निःसंतान दंपत्ति श्रद्धालुओं की गोद भर देती हैं।
42 ग्रामों की अधिष्ठात्री हैं अंगारमोती माता
वनदेवी मां अंगारमोती परम तेजस्वी ऋषि अंगीरा कि पुत्री थी जिसका आश्रम सिहावा के पास घठुला में है। देवी माता का मंदिर वर्तमान में गंगरेल बाध के तट पर स्थित है| माता खुले आसमान के नीचे अपना आसन स्थापित किया है। माता का मूल मंदिर वनग्राम चंवर ,बटरेल ,कोरमा और कोकड़ी कि सीमा पर सुखा नदी के पवित्र संगम पर स्थित है। माता को 42 ग्रामों कि अधिष्ठात्री देवी है।
निसंतान दम्पति को मिलता है संतान का सुख
ऐसी मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से सभी के दुख दूर हो जाती है। सभी के कष्टों को हर लेती है ,माता के दर्शन मात्र से निसंतान दम्पति संतान सुख कि प्राप्ति कर लेती है। माता के दरबार में भक्तो का ताता लगी रहती है यहाँ पर क्वार व चैत्र पक्ष कि नवरात्रि में भक्तो के द्वारा मनोकामन ज्योति जलाई जाती है। यहाँ पर प्रती वर्ष दीपावली के प्रथम शुक्रवार को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
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