मेकाहारा में 90 करोड़ की मशीनें बेकार, जून में 52 मौतें, 133 मरीज बिना बताए गए

छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल, डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल अस्पताल (मेकाहारा) बदहाली का शिकार है। जून में इस अस्पताल में भर्ती 133 मरीजों ने बिना सूचना अस्पताल छोड़ दिया, जबकि 46 मरीजों ने LAMA लेकर निजी अस्पतालों का रुख किया।

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Krishna Kumar Sikander
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Machines worth Rs 90 crore useless in Mekahara the sootr
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छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल, डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल अस्पताल (मेकाहारा), इन दिनों बदहाली का शिकार है। जून 2025 में इस अस्पताल के इमरजेंसी और अन्य विभागों में भर्ती 133 मरीजों ने बिना सूचना दिए अस्पताल छोड़ दिया, जबकि 46 मरीजों ने लीव अगेंस्ट मेडिकल एडवाइस (LAMA) लेकर निजी अस्पतालों का रुख किया।

इसके अतिरिक्त मरीजों की मौत भी दर्ज की गई। अस्पताल में 90 करोड़ रुपये से अधिक की 90% मशीनें अपनी उपयोगिता अवधि (एक्सपायरी डेट) पार कर चुकी हैं, जिसके चलते मरीजों को समय पर उचित इलाज नहीं मिल पा रहा। यह स्थिति न केवल अस्पताल की लचर व्यवस्था को उजागर करती है, बल्कि मरीजों का सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से भरोसा उठने का भी संकेत देती है।

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क्यों है बदहाल स्थिति, मशीनें खराब, इलाज में देरी?

अस्पताल में हर महीने औसतन 3,500 मरीज इमरजेंसी विभाग में पहुंचते हैं। इनमें से कुछ को प्राथमिक उपचार के बाद डिस्चार्ज कर दिया जाता है, जबकि गंभीर मरीजों को भर्ती किया जाता है। हालांकि, अस्पताल की बुनियादी सुविधाओं और मशीनों की स्थिति इतनी खराब है कि इलाज में देरी आम बात हो गई है।

जांच में पाया गया कि अस्पताल की 11 प्रमुख मशीनों में से 7 की उपयोगिता अवधि समाप्त हो चुकी है, तीन मशीनें दो साल से अधिक समय से खराब पड़ी हैं, और एक मशीन पूरी तरह कंडम हो चुकी है। सीटी स्कैन, एमआरआई, और एक्स-रे जैसी महत्वपूर्ण मशीनें पुरानी और खराब हो चुकी हैं, जिसके चलते मरीजों को सही समय पर जांच और उपचार नहीं मिल पा रहा।

पिछले सवा साल से सिटी इंजेक्टर मशीन भी खराब है, जिसका असर मरीजों की जांच प्रक्रिया पर पड़ रहा है। एक उदाहरण स्वर्गीय पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का है, जो कुछ समय पहले मेकाहारा पहुंचे थे, लेकिन उनकी जांच तक नहीं हो पाई थी। इस तरह की लापरवाही ने मरीजों का विश्वास डिगा दिया है।

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बजट की कमी और गलत प्राथमिकताएं

अस्पताल प्रशासन ने पिछले साल मशीनों की खरीद के लिए 200 करोड़ रुपये का प्रस्ताव सरकार को भेजा था, लेकिन केवल 94.5 करोड़ रुपये ही स्वीकृत हुए। इसमें भी कई अनियमितताएं सामने आई हैं। उदाहरण के लिए, एमआरआई 3 टेसला मशीन के लिए 28.5 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे, लेकिन केवल 15 करोड़ रुपये ही उपलब्ध कराए गए।

इसी तरह, 256 स्लाइस सीटी स्कैन के लिए 26 करोड़ रुपये की मंजूरी के बावजूद केवल 14 करोड़ रुपये मिले। सबसे गंभीर मसला यह है कि जनरल सर्जरी विभाग को रोबोट सिस्टम दे दिया गया, जबकि इसकी जरूरत कैंसर सर्जरी विभाग को थी। इस गलत आवंटन ने अस्पताल की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाए हैं।

इसके अलावा, एमसीएच (मीन कॉर्पस्कुलर हीमोग्लोबिन) की तीन सीटें स्वीकृत होने के बावजूद पहले ही राउंड में भर ली गईं, जिससे कैंसर मरीजों को उचित सुविधा नहीं मिल पा रही।

मरीजों का भरोसा टूटा, अस्पताल प्रशासन की सफाई

जून 2025 में 133 मरीजों द्वारा बिना सूचना अस्पताल छोड़ने और 46 मरीजों द्वारा LAMA लेने की घटनाएं अस्पताल की बदहाल स्थिति को दर्शाती हैं। मरीजों का कहना है कि मशीनों की खराबी और संसाधनों की कमी के कारण उन्हें समय पर इलाज नहीं मिलता, जिसके चलते वे निजी अस्पतालों की ओर रुख करने को मजबूर हैं।

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हालांकि, अस्पताल अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर ने इतनी बड़ी संख्या में मरीजों के अस्पताल छोड़ने की बात से इनकार किया है। उन्होंने कहा, “हम इस मामले की जांच करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि मरीजों को बेहतर सुविधाएं मिलें।” उन्होंने यह भी दावा किया कि मशीनों की खरीद के लिए समय-समय पर प्रस्ताव भेजे गए हैं, लेकिन बजट की कमी के कारण नई मशीनें नहीं खरीदी जा सकीं।

सात साल से नहीं खरीदी गई नई मशीनें

मेकाहारा में पिछले सात साल से कोई नई मशीन नहीं खरीदी गई है। अस्पताल प्रशासन ने समय-समय पर मशीनों की मांग की, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई। पुरानी और एक्सपायर हो चुकी मशीनों के भरोसे अस्पताल चल रहा है, जो बार-बार खराब हो जाती हैं। इससे न केवल मरीजों का इलाज प्रभावित हो रहा है, बल्कि अस्पताल की विश्वसनीयता भी दांव पर है। 

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मरीजों और जनता में आक्रोश

मेकाहारा में सुविधाओं की कमी और मशीनों की खराबी ने मरीजों और उनके परिजनों में आक्रोश पैदा किया है। स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि सरकार इस अस्पताल को प्राथमिकता दे और नई मशीनों की खरीद के लिए तत्काल कदम उठाए। एक मरीज के परिजन ने कहा, “मेकाहारा छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है, लेकिन यहां की हालत देखकर लगता है कि सरकार को मरीजों की परवाह नहीं है।”

तत्काल और ठोस कदम उठाने की जरूरत

मेकाहारा की इस स्थिति ने छत्तीसगढ़ की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों को उजागर किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मेकाहारा जैसे बड़े अस्पताल में सुविधाएं नहीं सुधारी गईं, तो मरीजों का निजी अस्पतालों पर निर्भरता और बढ़ेगी। सरकार को चाहिए कि वह बजट आवंटन में पारदर्शिता लाए, मशीनों की खरीद को प्राथमिकता दे, और अस्पताल के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करे।

इसके साथ ही, मरीजों के अस्पताल छोड़ने और LAMA के मामलों की गहन जांच जरूरी है ताकि यह समझा जा सके कि मरीज क्यों सरकारी अस्पतालों से मुंह मोड़ रहे हैं। मेकाहारा को फिर से मरीजों के भरोसे का केंद्र बनाने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

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