सुरक्षाबलों से घिरे खूंखार नक्सलियों के समर्थन में उतरे कई नेता

छत्तीसगढ़ के बीजापुर-तेलंगाना सीमा पर करेंगुट्टा पहाड़ी पर सुरक्षाबलों के चक्रव्यूह में फंसे खूंखार नक्सलियों की जान सांसत में है। कुछ संगठन खुलकर नक्सलियों के समर्थन में उतर आए हैं। ये संगठन सरकार पर शांतिवार्ता के लिए दबाव बनाने में जुट गए हैं। 

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Krishna Kumar Sikander
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Many leaders came out in support of the dreaded Naxalites surrounded by security forces the sootr
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एक शेर है 'कत्ल हो जाए और कातिल को दुआ दी जाए' यह उन सामाजिक संगठनों और उनके नेताओं पर पर फिट बैठती है, जो आजकल नक्सलियों की जान बख्शने की वकालत कर रहे हैं। पिछले आठ दिनों से छत्तीसगढ़ के बीजापुर-तेलंगाना सीमा पर करेंगुट्टा पहाड़ी पर सुरक्षाबलों के चक्रव्यूह में फंसे खूंखार नक्सलियों की जान सांसत में है।

सुरक्षाबलों को एंबुश में फंसाकर उनकी जान लेने वाले और जनअदालत लगाकर निर्दोष आदिवासियों को मुखबिर कहकर हत्या करने वाले आज अपनी मौत के डर से बार-बार सरकार से शांति वार्ता की अपील कर रहे हैं। मगर, सरकार का साफ संदेश है आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा लौटो या मुठभेड़ में मरने के लिए तैयार हो जाओ।

दूसरा विकल्प चुनने वाले कुख्यात नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित करने की जगह कुछ संगठन खुलकर नक्सलियों के समर्थन में उतर आए हैं। ये संगठन सरकार पर शांतिवार्ता के लिए दबाव बनाने में जुट गए हैं। 

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ये संगठन शांति वार्ता के लिए बना रहे दबाव 

सुरक्षा बलों से घिरे खूंखार नक्सलियों और सरकार के बीच तुरंत शांति वार्ता के लिए कुछ संगठनों ने 
वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपील की है। इसमें कहा गया कि नक्सलियों ने कई पत्रों और प्रेस साक्षात्कारों के जरिए एकतरफा युद्धविराम की घोषणा की है, इसलिए सरकार के लिए भी यह जरूरी है कि वह युद्धविराम की घोषणा कर नक्सलियों के साथ शांति वार्ता शुरू करे।

शांति संवाद समिति, तेलंगाना के जी. हरगोपाल, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की बेला भाटिया, कांग्रेस सांसद शशिकांत सेंथिल, भाकपा-माले लिबरेशन नेता और सांसद राजा राम सिंह, लिबरेशन पैंथर्स पार्टी के सांसद डी. रविकुमार, भाकपा महासचिव डी. राजा, भाकपा-मार्क्सवादी के पोलित ब्यूरो सदस्य विजू कृष्णन, छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी, पूर्व विधायक एवं नेता बस्तरिया राज मोर्चा मनीष कुंजाम, लेखिका मीना कंदासामी और कॉर्पोरेटीकरण और सैन्यीकरण के खिलाफ मंच के बादल  ने शांति वार्ता की वकालत की है। 

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी का दिखा रहे डर

नक्सली समर्थक सभी नेताओं का आरोप है कि बातचीत की जगह बल प्रयोग का दृष्टिकोण संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध है। अपने ही नागरिकों का बड़े पैमाने पर नरसंहार से भारत सरकार और राज्य सरकारों की देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी होंगी।

नक्सलियों की वकालत कर रहे नेताओं ने कहा कि करेंगुट्टा और दुर्गामेट्टा पहाड़ियों के आसपास सुरक्षाबलों के नक्सल विरोधी अभियानों के कारण यह जरूरी हो गया है कि नक्सलियों के संहार की जगह उनसे बातचीत की जाए। 10 हजार  सुरक्षाबल नक्सलियों के विरुद्ध अब तक का सबसे बड़ा सैन्य अभियान चला रहे हैं। झारखंड के डीजीपी ने कहा कि 20 दिनों में नक्सलियों का सफाया कर दिया जाएगा। 

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300 संगठनों का युद्धविराम का समर्थन 

देशभर के 300 संगठनों और उनके नेताओं ने तुरंत युद्धविराम की अपील की है। साथ ही इस संबंध में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को संदेश भेजा है। डॉ. बेला भाटिया ने कहा कि पिछले 16 महीनों में 400 लोग मारे गए हैं, एक शिशु मारा गया और बच्चों को बंदूक की गोली से चोटें आई हैं।

सोनी सोरी ने कहा कि हाल ही में कई शीर्ष नक्सली नेता रेणुका और सुधाकर मुठभेड़ों के बजाय निर्मम हत्या में मारे गए, जबकि इनको गिरफ्तार कर सकते थे। मनीष कुंजम ने कहा कि बस्तर को विशाल छावनी बना दिया गया है। हर कुछ किलोमीटर पर सुरक्षा शिविर हैं।

प्रोफेसर हरगोपाल ने कहा कि सरकार को भाकपा (माओवादी) को राजनीतिक दल के रूप में मान्यता देनी चाहिए। शांति वार्ता के लिए बिना शर्त आत्मसमर्पण या निरस्त्रीकरण की शर्त अनुचित है। कांग्रेस सांसद सेंथिल ने कहा कि सरकार पर बातचीत के लिए दबाव बनाना जरूरी है। 

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