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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में मिशन अस्पताल प्रबंधन द्वारा 11 एकड़ बेशकीमती सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे और दुरुपयोग का मामला सामने आया है। इस जमीन की अनुमानित कीमत 1,000 करोड़ रुपये है। 1994 में लीज की अवधि समाप्त होने के बावजूद अस्पताल प्रबंधन ने इसका व्यावसायिक उपयोग कर मोटा मुनाफा कमाया। हाई कोर्ट ने इस मामले में नितिन लारेंस और क्रिश्चियन वुमन बोर्ड ऑफ मिशन की याचिकाएं खारिज कर दीं और प्रशासन की बेदखली कार्रवाई को वैध ठहराया। अब प्रशासन इस जमीन को दोबारा अपने कब्जे में लेने की प्रक्रिया तेज कर सकता है।
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हाई कोर्ट का सख्त रुख
हाई कोर्ट की सिंगल बेंच के न्यायमूर्ति एके प्रसाद ने फैसले में कहा कि मिशन प्रबंधन ने लीज का नवीनीकरण नहीं कराया और शर्तों का उल्लंघन करते हुए जमीन का व्यावसायिक उपयोग किया। कोर्ट ने इसे लीज का गंभीर दुरुपयोग करार देते हुए याचिकाकर्ताओं को कोई राहत देने से इनकार किया। कोर्ट ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता ने तथ्यों को छिपाकर अदालत को गुमराह करने की कोशिश की। कलेक्टर और संभागीय कमिश्नर के आदेशों को वैधानिक और तथ्यपरक बताते हुए कोर्ट ने उन्हें बरकरार रखा।
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क्या है मामला?
मिशन अस्पताल की स्थापना 1885 में हुई थी। 1966 में बिलासपुर के चांटापारा मोहल्ले में शीट नंबर 14, प्लॉट नंबर 20/1 और 21 की 11 एकड़ सरकारी जमीन अस्पताल को सेवा के लिए लीज पर दी गई थी। लीज की अवधि 31 मार्च 1994 को खत्म हो गई थी, लेकिन प्रबंधन ने 30 साल बाद भी नवीनीकरण नहीं कराया। इस दौरान 92,069 वर्गफीट जमीन को बेच दिया गया और किराए पर देकर लाखों रुपये की कमाई की गई।
कार्रवाई का घटनाक्रम
तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण ने मामले की जांच के आदेश दिए।
नजूल कोर्ट ने 2024 में लीज नवीनीकरण की याचिका खारिज की।
कमिश्नर कोर्ट ने पावर ऑफ अटॉर्नी को अमान्य ठहराते हुए याचिका खारिज की।
हाई कोर्ट में दो बार दायर याचिकाएं खारिज हुईं।
24 अप्रैल 2025 को फैसला सुरक्षित रखा गया, जिसे 18 जुलाई 2025 को सुनाया गया।
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प्रशासन की अगली कार्रवाई
हाई कोर्ट के फैसले के बाद प्रशासन अब इस बेशकीमती जमीन को अपने कब्जे में लेने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। कोर्ट के सख्त रुख से साफ है कि नियमों का उल्लंघन कर सरकारी जमीन का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ कार्रवाई तेज होगी। यह फैसला बिलासपुर में सरकारी जमीनों के संरक्षण के लिए एक मिसाल बन सकता है।
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