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छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में 2016 में पुलिस हिरासत में एक युवक की संदिग्ध मौत के मामले में बड़ा फैसला सामने आया है। हाईकोर्ट की डबल बेंच, जिसमें जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी शामिल थे, ने मुलमुला थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी (टीआई), दो आरक्षक और एक सैनिक को गैरइरादतन हत्या (धारा 304 भाग 2 आईपीसी) का दोषी करार दिया है।
पहले इन चारों को निचली अदालत ने धारा 302 (हत्या) के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिसे अब 10 साल के कठोर कारावास में बदल दिया गया है।
क्या है पूरा मामला?
17 सितंबर 2016 को सीएसपीडीसीएल विद्युत उपकेंद्र नरियरा में पदस्थ ऑपरेटर देवेंद्र कुमार साहू ने पुलिस को सूचना दी थी कि सतीश नोरगे, जो ग्राम नरियरा का निवासी था, शराब के नशे में हंगामा कर रहा है। सूचना मिलने के बाद तत्कालीन टीआई जे.एस. राजपूत, कांस्टेबल दिलहरन मिरी और सुनील ध्रुव के साथ मौके पर पहुँचे।
वहां उन्होंने देखा कि सतीश नशे में था और ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। सतीश को पकड़कर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, पामगढ़ में मेडिकल परीक्षण कराया गया, जहां डॉक्टर ने उसे अत्यधिक नशे की हालत में पाया। इसके बाद उसे धारा 107 और 116 के तहत हिरासत में लिया गया और परिजनों को इसकी सूचना दी गई।
अगले दिन मौत, हंगामा और जांच
अगले दिन सुबह परिजनों को बताया गया कि सतीश की तबीयत बिगड़ गई है और उसे अस्पताल ले जाया गया है। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इसके बाद परिजनों और ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया। उन्होंने पुलिस पर पिटाई कर मौत का आरोप लगाया और हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग की।
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🔹 1. हिरासत में मौत का मामला 🔹 2. मेडिकल जांच से पहले गिरफ्तारी 🔹 3. परिजनों ने किया विरोध 🔹 4. निचली अदालत का फैसला 🔹 5. हाई कोर्ट में बदली धाराएं |
जेल में पिटाई से युवक की मौत | गैर इरादतन हत्या | मुलमुला चार पुलिसकर्मियों को सजा | CG High Court
निचली अदालत का फैसला और हाईकोर्ट की समीक्षा
जांच उपरांत मामले में मुलमुला थाने के तत्कालीन टीआई जितेंद्र सिंह राजपूत, कांस्टेबल सुनील ध्रुव, कांस्टेबल दिलहरन मिरी और सैनिक राजेश कुमार के खिलाफ धारा 302/34 के तहत चालान पेश किया गया। निचली अदालत ने सभी को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई और जुर्माना भी लगाया।
आरोपियों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जहां जस्टिस संजय के अग्रवाल और दीपक कुमार तिवारी की डिवीजन बेंच ने मामले की गंभीरता से सुनवाई की। अदालत ने पाया कि यह घटना जानबूझकर हत्या की श्रेणी में नहीं आती, बल्कि यह गैरइरादतन हत्या थी। अदालत ने इस आधार पर धारा 302 की सजा को धारा 304 भाग 2 में परिवर्तित कर दी और सभी आरोपियों को 10 वर्ष का कठोर कारावास सुनाया।
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