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Naxalite IED Blast Technology : बस्तर के बीजापुर में पिछले दिनों नक्सलियों ने 8 जवानों सहित 9 की जान ले ली। नक्सलियों ने हमले के लिए आईईडी का इस्तेमाल किया। नक्सली लगातार आईईडी ब्लास्ट कर जवानों सहित आम लोगों की जान ले रहे हैं। नक्सलियों ने ये आईईडी बनाना श्रीलंका के लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी लिट्टे ( LTTE ) से सीखा। ऐसा दावा साल 2014 में पब्लिश एक जर्नल, प्रोसिडिंग ऑफ द इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस में किया गया है।
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35 हजार की लागत में 8 जवानों सहित 9 की जान ले ली
दैनिक भास्कर डिजिटल की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रोसिडिंग ऑफ द इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस नामक जर्नल में दावा किया गया है कि नक्सलियों के कुछ लीडर्स ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के लोगों से IED बनाना सीखा था। 1980 के दशक में श्रीलंका में LTTE आतंकवादी संगठन के तौर पर बेहद सक्रिय था।
लिट्टे विश्व का पहला ऐसा संगठन है, जिसने ह्यूमन बम का उपयोग किया । जर्नल में इस बात का भी दावा किया गया है कि नक्सलियों को क्लेमोर माइन यानी डायरेक्शनल IED बनाने में भी महारत हासिल हैं। इन IED’s को पेड़ पर प्लांट किया जा सकता है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक नक्सली हमले में 60 प्रतिशत कैजुअल्टी IED विस्फोट से ही हुई है। बीजापुर में जो IED प्लांट हुआ था, उसे बनाने में महज 35 हजार रुपए की लागत आई होगी। बेसिक नॉलेज और सामान होने पर आसानी से इसे 20 मिनट में तैयार किया जा सकता है।
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ऐसे तैयार किया जाता है IED , बनाने में लगते हैं महज 20 मिनट
स्टेट फोरेंसिक लेबोरेटरी, रायपुर के संयुक्त संचालक टी एल चंद्रा ने बताया कि IED बनाने के लिए बेसिक तौर पर पांच कंपोनेंट्स की जरूरत होती है।
- स्विच : इसे ट्रिगर या एक्टिवेटर भी कहते हैं। ये कई तरह के हो सकते हैं। घरों के इलेक्ट्रिकल बोर्ड में यूज होने वाले स्विच भी इसमें शामिल हैं। इस स्विच के जरिए एक्सप्लोसिव को ट्रिगर किया जाता है।
- पॉवर सोर्स : स्विच किसी पावर सोर्स या बैटरी से कनेक्ट होता है। ये पावर सोर्स कार की बैटरी से लेकर घड़ी की बैटरी तक हो सकते हैं। कुछ केसेस में माचिस की डिब्बी भी पावर सोर्स हो सकती है।
- मेन चार्ज : मेन चार्ज यानी कि प्राइमरी एक्सप्लोसिव, ये ब्लास्ट के लिए जिम्मेदार होता है। मेन चार्ज में अमोनियम नाइट्रेट, यूरिया नाइट्रेट, ट्राइनाइट्रोटोलुईन जैसे केमिकल होते हैं। हालांकि ये प्योर फॉर्म में नहीं, इनके साथ अन्य कंपाउंड का मिश्रण किया जाता है।
- इनिशियेटर: इनिशियेटर के तौर पर फ्यूज या डेटोनेटर का उपयोग होता है। डेटोनेटर एक छोटा एक्सप्लोसिव चार्ज है। जो मुख्य चार्ज के साथ जुड़ा होता है। ये मेन चार्ज से पावर सोर्स के जरिए जुड़ा होता है।
- कंटेनर: कंटेनर के भीतर ही मेन चार्ज और इनिशियेटर को होल्ड किया जाता है। ये कंटेनर कोई टिफिन, प्रेशर कुकर, ट्रक, पाइप, पार्सल बॉक्स कुछ भी हो सकता है।
कोई व्यक्ति जिसे सही केमिकल मिश्रण के अनुपात और बेसिक इलेट्रिकल नॉलेज हो, वो आसानी से 20 मिनट में IED तैयार कर सकता है। चंद्रा कहते हैं कि इस तरह के एक्सपटर्स नक्सलियों के टीम में हैं। ऐसे में IED तैयार करना उनके लिए आसान है।
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35 से 40 हजार में तैयार हो जाता है 50 किलो एक्सप्लोसिव
NIT, रायपुर के माइनिंग डिपार्टमेंट में प्रोफेसर मनोज प्रधान बताते हैं कि IED और माइनिंग एक्सप्लोसिव में ज्यादा फर्क नहीं होता। आसान शब्दों में समझा जाए तो माइनिंग एक्सप्लोसिव को कई लेवल में फिल्टर किया जाता है। इससे इसकी कीमत भी बढ़ती है, लेकिन IED बनाने में इस तरह की कोई प्रोसेस फॉलो नहीं की जाती।
सस्ते केमिकल्स और बेहद हॉर्मफुल केमिकल के साथ डीजल या पेट्रोल ऑयल का मिक्चर IED बनाने में किया जाता है। प्रधान ने बताया कि अमोनियम नाइट्रेट से IED तैयार की जाए तो 35 से 40 हजार के कास्ट में 50 किलो एक्सप्लोसिव तैयार किया जा सकता है। सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने के कारण नक्सली इसका उपयोग सबसे ज्यादा करते हैं।
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