जवानों से लूटे हथियारों के दम पर मुठभेड़ कर रहे नक्सली

नक्सलियों की कमर टूटने लगी है। सुरक्षा बलों के साथ माओवादी जो मुठभेड़ कर रहे हैं वे उन हथियारों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं जो जवानों से ही छीने गए थे।

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Arun tiwari
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Naxalites are fighting with help of weapons looted from soldiers
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जवानों के बेसकैंप बनाने और मुठभेड़ में ढेर करने वाले नक्सलियों की कमर टूटने लगी है। नक्सलियों की हथियारों की जो सप्लाई लाइन थी वो भी टूट गई है। पुलिस मुठभेड़ों में नक्सलियों से जो हथियार बरामद किए हैं वो इस बात की गवाही दे रहे हैं।

पुलिस के मुताबिक नक्सलियों से जो हथियार बरामद किए हैं वे पिछले सालों में पुलिस जवानों से ही लूटे गए थे। सुरक्षा बलों के साथ माओवादी जो मुठभेड़ कर रहे हैं वे उन हथियारों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं जो जवानों से ही छीने गए थे। हाल ही में शांतिपूर्ण ढंग से हुए चुनावों में भी  यह बात साफ हो चुकी है कि बस्तर में नक्सलियों की ताकत लगातार घट रही है। 

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घट रही लाल आतंक की ताकत

जवानों की मुस्तैदी,साहस और तैनाती के चलते बस्तर में नक्सलियों की कमर टूटने लगी है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण वे हथियार हैं जिनका इस्तेमाल नक्सली कर रहे हैं। सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ हो या फिर सरेंडर, इनमें जो हथियार नक्सलियों से बरामद हो रहे हैं वे सभी पुलिस बल के जवानों से पिछले सालों में लूटे गए या फिर छीने गए हथियार हैं।

नक्सली अब लूटे गए हथियारों पर निर्भर हैं यानी उनको नए हथियार नहीं मिल रहे हैं। माओवादियों की हथियारों की सप्लाई लाइन टूट चुकी है यानी उनको हथियार प्राप्त करने के लिए बाहरी स्त्रोंतों पर निर्भरता खत्म हो गई है।

माओवादियों का इतिहास बताता है कि वे आर्म्स एंड एम्युनेशंस के लिए  लूटे हुए हथियारों पर ही ज्यादा निर्भर थे। सप्लाई लाइन तो काफी पहले ही तोड़ दी गई थी। इसके बाद से माओवादियों के टेरर में काफी हद तक कमी आई। अब पुलिस अपर हैंड पर है। नक्सली मारे जा रहे हैं और वे ही हथियार बरामद हो रहे हैं, जो कभी जवानों से लूटे गए थे। 

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हिड़मा के गांव में हुई वोटिंग

छत्तीसगढ़ में पंचायत चुनाव के पहले चरण में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। बस्तर संभाग, जो दशकों तक नक्सलवाद के साए में रहा, अब लोकतंत्र के उजाले की ओर बढ़ रहा है। सुकमा और बीजापुर जिले के कई मतदान केंद्रों पर पहली बार दशकों  बाद  वोटिंग हुई है। बस्तर में नक्सली कमांडर हिड़मा के गांव पूवर्ती समेत राज्य में मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी, दंतेवाड़ा और गरियाबंद जिलों में भी मतदान को लेकर जबरदस्त उत्साह देखा गया।

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बीजापुर के पुसनार, गंगालूर, चेरपाल, रेड्डी, पालनार जैसे क्षेत्रों में ग्रामीणों ने बिना डरे मतदान किया। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि बस्तर में जनता ने विकास का मार्ग चुना है और  हिंसा को बाहर का रास्ता दिखाया है। बस्तर में पंचायत चुनावों का नक्सलियों द्वारा कोई विरोध नहीं किया जाना क्षेत्र में 40 से अधिक  सुरक्षा कैंपों की स्थापना और जवानों के साहस और शौर्य का नतीजा है। 


डर गया लाल आतंक

बस्तर में अब लाल आतंक की जड़ें कमजोर होने लगी हैं। प्रदेश में बीते 13 महीनों में 305 नक्सली मारे जा चुके हैं, 1177 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और 985 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। यह आंकड़े प्रमाणित करते हैं कि छत्तीसगढ़ नक्सल हिंसा से मुक्त होकर शांति और विकास की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। यह कुछ वे मानक हैँ जो बताते हैं कि बस्तर के लोग अब शांति की तरफ आगे बढ़ हैं। नक्सलियों की ताकत कम हो रही है और वे कमजोर हो रहे हैं।

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