नक्‍सलियों ने पत्थलगढ़ी को बनाया ढाल

छत्तीसगढ़ के बस्तर के नक्‍सल प्रभावित बास्तनार, दरभा,तोकापाल में पत्थलगढ़ी चिन्ह गाड़े गए हैं। नक्सली बस्तर में पेसा कानून और पत्थलगढ़ी की आड़ में शासन और प्रशासन के समक्ष नई चुनौती पेश करने की साजिश रची है।  

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Krishna Kumar Sikander
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Naxalites made Pathalgarhi a shield the sootr
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रायपुर (कृष्ण कुमार सिकंदर) : छत्तीसगढ़ के बस्तर के नक्‍सल प्रभावित बास्तनार, दरभा,तोकापाल में पत्थलगढ़ी चिन्ह गाड़े गए हैं। पत्थलगढ़ी वाले इलाके में ग्रामसभा ही सर्वे सर्वा होती है। यह ग्रामसभा किसी भी सरकार के नियम कानून से बाध्य न होने का दावा करती है। पेसा कानून के तहत पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों को पत्थलगढ़ी का विशेष अधिकार प्राप्त है। बस्तर में भी झारखंड की तरह पत्थलगढ़ी की शुरुआत की गई है। इससे पहले मई 2018 में जशपुर में पत्थलगढ़ी वाले इलाके में पुलिस को बंधक बना लिया था। अब नक्सली बस्तर में पेसा कानून और पत्थलगढ़ी की आड़ में शासन और प्रशासन के समक्ष नई चुनौती पेश करने की साजिश रची है।  

समानांतर सत्ता बनाए रखने को नई साजिश

प्रदेश में सुरक्षाबलों की ताबड़तोड़ कार्रवाई से बैकफुट पर आए नक्सलियों ने अपनी समानांतर सत्ता बनाए रखने के लिए पेसा कानून और पत्थलगढ़ी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इसके लिए नक्सली ग्राम सभा पर पत्थलगढ़ी व्यवस्था लागू करने का दवाब बना रहे हैं। यही कारण है कि पत्थलगढ़ी व्यवस्था अपनाने के लिए धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र बास्तनार, दरभा,तोकापाल की ग्राम सभाओं ने पत्थलगढ़ी चिन्ह गाड़े हैं। 

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कोई भी फैसला उनकी मर्जी के बिना नहीं

बस्तर में नक्सली विचारधारा की नई हलचल देखी जा रही है। इसकी शुरुआत पत्थलगढ़ी के रूप में हुई है। कुछ वर्ष पहले सरगुजा और झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में पत्थलगढ़ी देखी गई थी। अब इसी तर्ज पा बस्तर के बास्तनार, दरभा और तोकापाल गांवों की सीमाओं पर बड़े-बड़े पत्थरों पर ग्रामसभा के अधिकार दर्ज कर गाड़े जा रहे हैं। ये पत्थर केवल चिन्ह नहीं हैं, बल्कि स्थानीय लोगों की चेतावनी है। उनके हक की घोषणा हैं और एक सीधा संदेश हैं कि अब कोई भी फैसला उनकी मर्जी के बिना नहीं लिया जा सकेगा।

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ग्रामसभा को सर्वोच्च इकाई माना गया

पत्थलगढ़ी के बहाने ग्रामसभा की समांनतर सत्ता को जायज ठहराने के लिए इलाकों के लोग पेसा कानून का हवाला दे रहे हैं। यह कानून पांचवीं अनुसूची के तहत आता है। यह आदिवासी क्षेत्रों को विशेष अधिकार देता है। इसके तहत ग्रामसभा को सर्वोच्च इकाई माना गया है। ग्रामवासी दावा कर रहे हैं कि उनकी ग्रामसभा किसी भी सरकार के नियम-कानून मानने के लिए मजबूर नहीं है। इसके अलावा कोई भी सरकारी अथवा निजी योजना उनके गांवों में बिना ग्रामसभा की मंजूरी के लागू नहीं किया जा सकता है।

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बस्तर में दिख रही है पत्थलगढ़ी  लहर

छत्तीसगढ़ में पत्थलगढ़ी का स्वरूप पहली बार सामने नहीं आया है। इसके पहले यह प्रयोग जशपुर में किया गया था। मई 2018 में जशपुर के एक गांव में पत्थलगढ़ी की गई और पुलिस को बंधक तक बना लिया गया था। उस घटना ने प्रदेश और केंद्र सरकार दोनों को सोचने पर मजबूर कर दिया था। अब एक बार फिर वही लहर बस्तर में दिख रही है। 

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पत्थलगढ़ी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का समर्थन   

अब तक नक्सलियों के साथ मुठभेड़ के बाद सुरक्षाबलों की कार्रवाई सवाल उठाने वाले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज भी पत्थलगढ़ी के समर्थन में आ गए हैं। दीपक बैज ने कहा कि यह छठवीं अनुसूची का क्षेत्र है। कांग्रेस ने पेसा कानून लागू किया, लेकिन भाजपा सरकार ने इसे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। अब बस्तर की जनता अपने अधिकारों, खनिज संसाधनों और जमीन को बचाने के लिए लड़ाई लड़ रही है।

सीएम साय बोले-संविधान की व्यवस्था सबसे ऊपर

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के बयान पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जनता को भाजपा सरकार पर भरोसा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा, संविधान की व्यवस्था सबसे ऊपर है। हमें इसकी जानकारी मिली है और इस पर बातचीत की जाएगी। हर चीज संविधान के तहत होगी।

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