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नक्सलियों ने बस्तर में दहशत फैलाने का एक नया तरिका अपनाया है। अब नक्सली नेताओं को टारगेट करके मौत के घाट उतार रहे हैं। बस्तर में अपना खौफ कायम रखने के लिए नक्सली ये ओछी हरकत कर रहे हैं। इस बार फिर बीजापुर जिले के उसूर थाना क्षेत्र के लिंगापुर के कांग्रेसी कार्यकर्ता नागा भंडारी समेत 2 रसोइयों व शिक्षादूत की हत्या नक्सलियों ने बीते रविवार की रात कर दी। इस घटना के बाद क्षेत्र में दहशत का माहौल है। नागा की हत्या से 6 महीने पहले नक्सलियों ने उनके भाई व कांग्रेसी कार्यकर्ता तिरूपति भंडारी को भी मौत के घाट उतार दिया था। यानि बीते 8 महीनों में नक्सलियों ने पहले तिरूपति को टारगेट किया।
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इसके बाद उनके भाई नागा को टारगेट किलिंग के तहत मौत के घाट उतार दिया। लिंगापुर में कांग्रेसी कार्यकर्ता नागा भंडारी की हत्या के साथ ही नक्सलियों ने मीनागट्टा में शिक्षादूत अशोक मुचाकी व कंचाल में रसोइया मड़कम हड़मा व करतम कोसा की हत्या भी धारदार हथियार से कर दी है। इधर शिक्षादूत व रसोइयों की हत्या से जहां क्षेत्र में कर्मचारियों में दहशत है, वहीं पुलिस ने भी अब तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।
शिक्षादूत को भी नक्सलियों ने नहीं छोड़ा
बताया जाता है कि कई साल पहले नागा भंडारी ने गांव छोड़ दिया था और परिवार के साथ बीजापुर में ही रह रहे थे। इसी बीच किसी सामाजिक कार्य में नागा भंडारी शामिल होने गए थे और यहीं मौका पाकर नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी। इसके अलावा शिक्षादूत अशोक मुचाकी व रसोइया मड़कम हड़मा व करतम कोसा की हत्या भी नक्सलियों ने इसी तरह धारदार हथियार से कर दी।
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टारगेट किलिंग से दशहत फैलाने की कोशिश
बस्तर के जंगल में नक्सली भी दहशत फैलाने की प्लानिंग करते रहे हैं। चुनावों से पहले या फिर जब नक्सली दबाव में होते हैं, तब वे अपनी दहशत को बरकरार रखने नक्सली अलग-अलग तरीकों की प्लानिंग करते हैं। अपनी दहशत को बरकरार रखने नक्सली प्रायः बड़ी वारदातों को अंजाम देते हैं, लेकिन जब वे दबाव में होते हैं तो टारगेट किलिंग करते हैं।
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टारगेट किलिंग से आशय यह कि नक्सली अपने प्रभाव वाले इलाके के ऐसे लोगों को चुनते हैं, जिनकी इलाके में ठीक-ठाक पहचान हो और इलाके के लोग उन्हें जानते हों। ऐसे लोगों को चिन्हांकित करने के बाद उनकी टारगेट की हत्या की जाती है। टारगेट किलिंग और हमले के लिए बड़ा जाना-पहचाना शख्स या फिर बड़ा हमला, जिसकी गूंज देशभर में सुनाई दे, इसका पूरा ख्याल नक्सली रखते हैं। इसकी प्लानिंग महीनों पहले ही हो जाती है। पूरी प्लानिंग बड़े नक्सली लीडर करते हैं। निचले कैडर को यह नहीं बताया जाता है कि टारगेट कौन है।
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