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छत्तीसगढ़ के किसानों के सामने इस खरीफ सीजन में एक नई चुनौती खड़ी हो गई है। समर्थन मूल्य पर धान बेचने और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का लाभ लेने के लिए अब एग्रीस्टैक पोर्टल पर पंजीयन कराना अनिवार्य कर दिया गया है। बिना पंजीयन के न तो किसान अपनी फसल बेच पाएंगे और न ही सरकार की योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे। इस नए नियम ने ग्रामीण इलाकों में हलचल मचा दी है, क्योंकि कई किसान डिजिटल प्रक्रिया और जानकारी की कमी के कारण अभी तक पंजीयन से वंचित हैं।
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एग्रीस्टैक पंजीयन क्यों है जरूरी?
राज्य सरकार ने एग्रीस्टैक पोर्टल को किसानों के लिए एक डिजिटल क्रांति के रूप में पेश किया है। इसका मकसद है।
फर्जीवाड़े पर रोक : धान खरीदी और अन्य योजनाओं में फर्जी लाभार्थियों को बाहर करना।
पारदर्शिता : फसल बीमा, ऋण वितरण, और अन्य सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता लाना।
तेजी से लाभ वितरण : डिजिटल ट्रैकिंग के जरिए पात्र किसानों को योजनाओं का लाभ सीधे और जल्दी पहुंचाना।
सरकार का दावा है कि यह सिस्टम किसानों के हित में है और इससे कृषि क्षेत्र में डिजिटल प्रबंधन मजबूत होगा। बस्तर जिले में अब तक 65,000 किसानों ने इस पोर्टल पर पंजीयन करा लिया है, लेकिन अभी भी हजारों किसान इस प्रक्रिया से अछूते हैं।
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किसानों की मुश्किलें, च्वाइस सेंटर के चक्कर
नए नियम ने कई किसानों के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। ग्रामीण और सुदूर इलाकों में इंटरनेट की कमी, डिजिटल जानकारी का अभाव, और च्वाइस सेंटरों की दूरी ने किसानों को मुश्किल में डाल दिया है। ई-केवाईसी और पंजीयन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए किसानों को बार-बार च्वाइस सेंटरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, जिससे समय और पैसे दोनों की बर्बादी हो रही है।
रायपुर के एक किसान, रमेश साहू, ने बताया, "हमें पंजीयन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। अब पता चला कि बिना इसके नहीं बिकेगा। च्वाइस सेंटर दूर है, और वहां भी लंबी लाइन लगती है।" ऐसे में छोटे और गरीब किसानों के लिए यह प्रक्रिया किसी सिरदर्द से कम नहीं है।
पंजीयन न हुआ तो आर्थिक नुकसान का खतरा
एग्रीस्टैक पंजीयन की अनिवार्यता ने किसानों के सामने आर्थिक संकट का खतरा पैदा कर दिया है। अगर समय पर पंजीयन नहीं हुआ, तो न सिर्फ वे समर्थन मूल्य पर धान बेचने से वंचित रहेंगे, बल्कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की 6,000 रुपये सालाना की राशि भी उनके हाथ से निकल सकती है। यह छोटे और मझोले किसानों के लिए बड़ा झटका हो सकता है, जो अपनी आजीविका के लिए इन योजनाओं पर निर्भर हैं।
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ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी
हालांकि सरकार का मकसद पारदर्शिता लाना है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में डिजिटल प्रक्रिया को लेकर जागरूकता की भारी कमी है। कई किसान इस बात से अनजान हैं कि पंजीयन के लिए क्या-क्या दस्तावेज चाहिए और प्रक्रिया कैसे पूरी होगी। बस्तर और अन्य सुदूर क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या और च्वाइस सेंटरों की कम संख्या ने इस प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है।
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कृषि विभाग की अपील
कृषि विभाग ने किसानों से तुरंत पंजीयन कराने की अपील की है। विभाग के एक अधिकारी ने कहा, "किसान अपने नजदीकी च्वाइस सेंटर पर जाकर आधार कार्ड, बैंक खाता विवरण, और खेत की जानकारी के साथ पंजीयन करा सकते हैं। यह प्रक्रिया मुफ्त है और इससे भविष्य में योजनाओं का लाभ लेना आसान होगा।" विभाग ने यह भी कहा कि पंजीयन की प्रक्रिया को सरल करने के लिए विशेष शिविर आयोजित किए जा रहे हैं।
किसानों का गुस्सा और सियासी तंज
इस नए नियम ने सियासी हलचल भी पैदा कर दी है। विपक्षी कांग्रेस ने इसे किसान विरोधी कदम करार देते हुए कहा कि ग्रामीण किसानों को डिजिटल सिस्टम में उलझाकर सरकार उनकी परेशानी बढ़ा रही है। वहीं, बीजेपी सरकार का कहना है कि यह कदम पारदर्शिता और किसानों के दीर्घकालिक हित के लिए उठाया गया है।
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