मनोकामना पूरी करने वाली देवी मां के इस मंदिर में अब नहीं चढ़ेगी बलि
बगलामुखी मंदिर में बलि प्रथा भी जारी थी, किंतु नव निर्मित मंदिर में स्थापना के बाद मंदिर में बलि प्रथा को पूर्णतः बंद कर दिया गया है। चैत्र नवरात्रि में ग्राम वासियों द्वारा जवारा बोया गया है।
चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है। मंदिरों में प्रतिदिन मां की पूजा-अर्चना की जा रही है। इधर ग्राम सोंठी सीपत में स्थित मत्रादाई मंदिर में इस साल 470 मनोकामना ज्योति जलाई गई है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मंदिर में अब बलि प्रथा बंद कर दी गई है। पूर्व में बगलामुखी मंदिर में बलि प्रथा भी जारी थी, किंतु नव निर्मित मंदिर में स्थापना के बाद मंदिर में बलि प्रथा को पूर्णतः बंद कर दिया गया है। चैत्र नवरात्रि में ग्राम वासियों द्वारा जवारा बोया गया है।
मंदिर समिति के अध्यक्ष रामेश्वर जायसवाल बताया कि बगलामुखी मां मत्रादाई मंदिर में माता की आदिकालीन स्वयंभू प्रतिमा स्थापित है। दूर-दूर से भक्त मां की पूजा करने आते हैं। किवदंती है कि लगभग 400 वर्ष पूर्व गांव के धामा धुर्वा नामक बैगा को सपना आया कि मां पहाड़ों में स्थित हैं। तात्कालीन जमींदार द्वारा माता की प्रतिमा को गाड़ी से लाने का प्रयास किया गया, परंतु 12 बैलगाड़ी टूटने के बाद भी माता की प्रतिमा नहीं हिली। तब माता ने स्वप्न में अ नुसार बैगा अपने कंधे पर उठाकर माता को सौंठी में स्थापित किया।
मंदिर में महाष्टमी में हवन 5 अप्रैल को होगा। 6 अप्रैल को महानवमी पर सुंदरकांड पाठ, कन्या भोज व भंडारा होगा। 7 अप्रैल को जवारा विसर्जन किया जाएगा। अध्यक्ष जायसवाल ने बताया कि बगलामुखी मां मन्त्रादाई मंदिर संतान प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां दूर-दूर से लोग संतान प्राप्ति की इस इच्छा को लेकर मन्नतें मांगते हैं। पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं। मनोकामनाएं पूरी होने के बाद लोगों की आस्था बढ़ते ही जा रही है। इस वर्ष मंदिर में हिंदुओं के साथ बिलासपुर के मुस्लिम परिवार के द्वारा भी ज्योति कलश प्रज्वलित किया गया है।
मन्नादाई मंदिर में इस बार कितनी मनोकामना ज्योति जलायी गई है?
इस बार मन्नादाई मंदिर में 470 मनोकामना ज्योति जलायी गई है।
मन्नादाई मंदिर में बलि प्रथा क्यों बंद की गई है?
मन्नादाई मंदिर में बलि प्रथा को नव निर्मित मंदिर में स्थापना के बाद पूरी तरह से बंद कर दिया गया है।
मन्नादाई मंदिर में देवी मां के बारे में कौन सी किवदंती प्रचलित है?
किवदंती के अनुसार, लगभग 400 वर्ष पूर्व गांव के धामा धुर्वा नामक बैगा को सपना आया कि मां पहाड़ों में स्थित हैं। बाद में माता की प्रतिमा बैगा ने अपने कंधे पर उठाकर सौंठी में स्थापित की।
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