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छत्तीसगढ़ विधानसभा के मानसून सत्र का पहला दिन खाद और बीज की कमी के मुद्दे पर भारी हंगामे की भेंट चढ़ गया। शून्यकाल के दौरान नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने राज्य में किसानों के सामने खाद की किल्लत का गंभीर मुद्दा उठाया और स्थगन प्रस्ताव पेश किया।
हालांकि, कृषि मंत्री रामविचार नेताम के जवाब और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह द्वारा स्थगन प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद विपक्षी विधायकों ने सदन के वेल में उतरकर जोरदार नारेबाजी की। हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही पांच मिनट के लिए स्थगित कर दी गई। इसके बाद कांग्रेस विधायकों ने सदन के बाहर गांधी प्रतिमा के पास धरना देकर अपना विरोध दर्ज किया।
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विपक्ष का आरोप, खाद संकट से किसान परेशान
नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने स्थगन प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि पूरे छत्तीसगढ़ में खाद की भारी कमी ने किसानों को संकट में डाल दिया है। उन्होंने कहा, "किसान खाद के लिए दर-दर भटक रहे हैं। उनकी परेशानी और आक्रोश को देखते हुए इस मुद्दे पर तत्काल चर्चा जरूरी है।"
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, "खाद की किल्लत ने किसानों को हलाकान कर दिया है। सरकार खाद उपलब्ध कराने में पूरी तरह नाकाम रही है। किसान बाजार से दोगुने दाम पर खाद खरीदने को मजबूर हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो रही है।"
कृषि मंत्री का जवाब, वैकल्पिक व्यवस्था और नैनो उर्वरक
कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि सरकार किसानों को उर्वरकों के संतुलित उपयोग के लिए जागरूक कर रही है। उन्होंने बताया कि वैश्विक कारणों से फास्फेटिक खाद की आपूर्ति प्रभावित हुई, लेकिन सरकार ने पहले से ही वैकल्पिक व्यवस्थाएं की हैं।
मंत्री ने कहा, "हमने नैनो उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण शुरू किया है और इनका भंडारण भी बड़ी मात्रा में किया गया है। एनपीके उर्वरक और पोटाश सहित अन्य खाद का भंडारण लक्ष्य से अधिक है।" उन्होंने यह भी दावा किया कि राज्य में 28 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में बोआई हो चुकी है, जो पिछले सालों से ज्यादा है। मंत्री ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सरकार किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
विपक्ष का हंगामा, सदन स्थगित
कृषि मंत्री के जवाब से असंतुष्ट कांग्रेस विधायकों ने स्थगन प्रस्ताव खारिज होने पर सदन के वेल में उतरकर नारेबाजी शुरू कर दी। "किसानों को खाद दो" और "सरकार हाय-हाय" जैसे नारे गूंजे। हंगामे के कारण विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह को सदन की कार्यवाही पांच मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी। कार्यवाही स्थगित होने के बाद विपक्षी विधायकों ने सदन के बाहर गांधी प्रतिमा के पास धरना देकर सरकार के खिलाफ अपना विरोध जताया।
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किसानों की समस्या और राजनीतिक टकराव
छत्तीसगढ़ में खाद और बीज की कमी का मुद्दा लंबे समय से चर्चा में है। विपक्ष का दावा है कि खाद की कालाबाजारी और आपूर्ति में कमी के कारण किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। कई जिलों में किसानों ने खाद की कमी के खिलाफ प्रदर्शन किए हैं, और कुछ जगहों पर नकली खाद बिकने की शिकायतें भी सामने आई हैं। विपक्ष ने इस मुद्दे को किसानों के हित से जोड़ते हुए सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाया है। दूसरी ओर, सरकार का दावा है कि वैश्विक आपूर्ति संकट के बावजूद उसने खाद की कमी को दूर करने के लिए वैकल्पिक उपाय किए हैं। नैनो उर्वरकों और जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात कहकर सरकार ने अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश की है। हालांकि, विपक्ष का कहना है कि ये उपाय केवल कागजी हैं और जमीनी हकीकत इससे उलट है।
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सदन में हंगामे का असर
मानसून सत्र के पहले दिन का यह हंगामा छत्तीसगढ़ की राजनीति में नया टकराव सामने लाता है। खाद और बीज की कमी का मुद्दा न केवल किसानों के लिए, बल्कि राजनीतिक दलों के लिए भी अहम बन गया है। विपक्ष इस मुद्दे को विधानसभा और सड़कों पर उठाकर सरकार को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है, जबकि सरकार इसे वैश्विक संकट का परिणाम बताकर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रही है।
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किसानों और जनता के लिए अपील
विपक्ष और सरकार के बीच इस टकराव के बीच किसानों से अपील की जा रही है कि वे खाद और बीज की खरीदारी केवल अधिकृत केंद्रों से करें और किसी भी अनियमितता की शिकायत स्थानीय प्रशासन या कृषि विभाग को दें। साथ ही, जनता से अनुरोध है कि वे इस मुद्दे पर जागरूक रहें और किसानों के हित में अपनी आवाज उठाएं।
मानसून सत्र गर्माने की संभावना
खाद और बीज की कमी का यह मुद्दा छत्तीसगढ़ के मानसून सत्र में और गर्माने की संभावना है। विपक्ष ने संकेत दिए हैं कि वे इस मुद्दे को सड़क से लेकर सदन तक उठाते रहेंगे। दूसरी ओर, सरकार के सामने चुनौती है कि वह खाद की आपूर्ति को सुचारू करे और किसानों का भरोसा जीते। यह मामला न केवल कृषि नीतियों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है, बल्कि छत्तीसगढ़ में किसानों की स्थिति और सरकार की जवाबदेही को भी कठघरे में खड़ा करता है।
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