रावतपुरा मेडिकल कॉलेज में फर्जी मरीज और छात्रों को फैकल्टी बताकर NMC से ली मान्यता, CBI ने खोली पोल

रायपुर के रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च (SRIMSR) में नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) की मान्यता पाने के लिए एक बड़ा घोटाला सामने आया है।

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Krishna Kumar Sikander
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Rawatpura Medical College got recognition from NMC by declaring fake patients and students as faculty the sootr
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छत्तीसगढ़ के रायपुर के रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च (SRIMSR) में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) से मान्यता हासिल करने के लिए गंभीर अनियमितताओं और घूसखोरी का सनसनीखेज मामला सामने आया है। जांच में खुलासा हुआ है कि कॉलेज प्रबंधन ने फर्जी मरीजों को भर्ती कर और मेडिकल छात्रों को फैकल्टी के रूप में पेश कर NMC के निरीक्षण मानकों को धोखा दिया।

इसके लिए आसपास के गांवों से स्वस्थ लोगों को मरीज बनाकर लाया जाता था और NMC इंस्पेक्टर्स को रिश्वत देकर अनुकूल रिपोर्ट तैयार कराई जाती थी। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की कार्रवाई ने इस घोटाले की परतें उजागर की हैं, जिसके बाद कॉलेज की 150 MBBS सीटों की मान्यता रद्द कर दी गई है।

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स्वस्थ लोगों को बनाया 'पेशेंट

'SRIMSR ने NMC के निरीक्षण के दौरान OPD और IPD में पर्याप्त मरीजों की संख्या दिखाने के लिए एक सुनियोजित सिस्टम बनाया था। इसके तहत रायपुर के आसपास के गांवों जैसे पचेड़ा, तुलसी, बख्तरा, और भखारा से स्वस्थ लोगों को मरीज के रूप में अस्पताल में रजिस्टर कराया जाता था।

इन लोगों को प्रति दिन 100 से 200 रुपये का भुगतान किया जाता था, जिसमें से 25-25 रुपये पेशेंट एजेंट और मितानिन (स्वास्थ्य कार्यकर्ता) को कमीशन के रूप में दिए जाते थे। उदाहरण के लिए, पचेड़ा गांव की 70 वर्षीय शांति बाई ने बताया कि वह पूरी तरह स्वस्थ होने के बावजूद कॉलेज के अस्पताल में मरीज के रूप में भर्ती हुईं।

उन्हें प्रति दिन 150 रुपये मिलते थे, और कई बार कॉलेज की बस उन्हें लेने आती थी। इसी तरह, 65 वर्षीय चैतूराम ने खुलासा किया कि वह पिछले साल बिना बीमारी के 5 बार अस्पताल में भर्ती हुए और जून-जुलाई 2025 में भी मरीज बनकर गए, लेकिन उन्हें वादा किए गए पैसे नहीं मिले।

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छात्रों को बनाया फर्जी फैकल्टी

कॉलेज प्रबंधन ने न केवल फर्जी मरीजों का सहारा लिया, बल्कि MBBS के तीसरे और अंतिम वर्ष के छात्रों को भी निरीक्षण के दौरान फैकल्टी स्टाफ के रूप में पेश किया। जांच में पता चला कि कॉलेज में स्थायी शिक्षकों की कमी थी, और 90% फैकल्टी दक्षिण भारत से केवल NMC निरीक्षण के लिए बुलाई जाती थी। एक पूर्व फैकल्टी ने शिकायत की थी कि उनके इस्तीफे के बाद भी कॉलेज ने उनकी फर्जी बायोमेट्रिक उपस्थिति दर्ज की, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

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NMC इंस्पेक्टर्स के साथ सेटिंग और रिश्वतखोरी

CBI की जांच में सामने आया कि SRIMSR प्रबंधन को NMC निरीक्षण से एक हफ्ते पहले इंस्पेक्टर्स की सूची और निरीक्षण की तारीख की जानकारी मिल जाती थी। इस जानकारी का उपयोग कर कॉलेज फर्जी मरीजों और फैकल्टी की व्यवस्था करता था। निरीक्षण के दौरान इंस्पेक्टर्स मरीजों से उनकी बीमारी या इलाज के बारे में कोई पूछताछ नहीं करते थे, जो NMC अधिकारियों और कॉलेज प्रबंधन की सांठगांठ को दर्शाता है।

CBI ने 1 जुलाई 2025 को बेंगलुरु में छापेमारी के दौरान 55 लाख रुपये की रिश्वत का लेन-देन पकड़ा, जिसमें कुल 1.62 करोड़ रुपये की डील होने की बात सामने आई। इस मामले में कॉलेज के निदेशक अतुल कुमार तिवारी, तीन NMC इंस्पेक्टर्स (डॉ. चैत्रा एमएस, डॉ. मंजप्पा सीएन, और डॉ. सतीशा एए), और अन्य बिचौलियों को गिरफ्तार किया गया। CBI ने छत्तीसगढ़, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, और मध्य प्रदेश में 40 से अधिक स्थानों पर तलाशी ली और 35 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की।

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मान्यता के लिए हेराफेरी

SRIMSR को पिछले साल 150 MBBS सीटों की मान्यता मिली थी, लेकिन प्रबंधन ने जल्दबाजी में 250 सीटों के लिए आवेदन कर दिया। NMC के 30 जून 2025 को निरीक्षण के दौरान CBI ने छापा मारा और फर्जीवाड़े का खुलासा किया। इसके परिणामस्वरूप, NMC ने कॉलेज को नए सत्र के लिए जीरो ईयर घोषित कर दिया, जिससे 150 MBBS सीटों की मान्यता रद्द हो गई। हालांकि, पिछले साल के छात्रों का पाठ्यक्रम यथावत रहेगा। NMC ने चार इंस्पेक्टर्स को ब्लैकलिस्ट भी किया है।

पेशेंट एजेंटों का नेटवर्क

कॉलेज ने फर्जी मरीजों की व्यवस्था के लिए एक संगठित नेटवर्क बनाया था। पचेड़ा, तुलसी, और बख्तरा जैसे गांवों के युवाओं को वार्ड अटेंडेंट के रूप में नियुक्त किया गया, लेकिन उनकी मुख्य जिम्मेदारी स्वस्थ लोगों को मरीज के रूप में रजिस्टर कराना थी। प्रत्येक फर्जी मरीज के लिए एजेंट को 200 रुपये मिलते थे, जिसमें से 25 रुपये मितानिन को और 25 रुपये एजेंट खुद रखता था। मितानिन और झोलाछाप डॉक्टर इस सिस्टम का हिस्सा थे, जो गांवों से लोगों को लाने में मदद करते थे।

सामाजिक और शैक्षणिक प्रभाव

इस घोटाले ने न केवल SRIMSR की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर भी गंभीर प्रभाव डाला है। फर्जी फैकल्टी और मरीजों के सहारे मान्यता लेने से छात्रों के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है। साथ ही, रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस के दौरान छत्तीसगढ़ में चार पैसेंजर ट्रेनों (बिलासपुर-टिटलागढ़ और रायपुर-टिटलागढ़) के रद्द होने से पहले ही यात्रियों की परेशानी बढ़ी हुई है। ऐसे में, स्वास्थ्य सेवाओं में इस तरह की अनियमितताएं मरीजों और उनके परिजनों के लिए अतिरिक्त चुनौतियां पैदा कर सकती हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं में भ्रष्टाचार की गहरी जड़

रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज का यह घोटाला मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को उजागर करता है। फर्जी मरीज, फर्जी फैकल्टी, और रिश्वतखोरी का यह संगठित नेटवर्क न केवल कॉलेज प्रबंधन बल्कि NMC और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत को भी दर्शाता है। CBI की कार्रवाई और NMC के सख्त कदम इस दिशा में सकारात्मक हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि भविष्य में ऐसी अनियमितताएं न हों। छात्रों और मरीजों के हितों की रक्षा के लिए पारदर्शी और कठोर निरीक्षण प्रणाली की आवश्यकता है।

FAQ

रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज ने NMC से मान्यता प्राप्त करने के लिए कौन-कौन से फर्जीवाड़े किए?
कॉलेज ने NMC से मान्यता प्राप्त करने के लिए दो मुख्य फर्जीवाड़े किए — फर्जी मरीज: आसपास के गांवों से स्वस्थ लोगों को पैसे देकर मरीज बनाकर अस्पताल में भर्ती किया गया। फर्जी फैकल्टी: MBBS के अंतिम वर्ष के छात्रों को फैकल्टी के रूप में पेश किया गया और निरीक्षण के समय अस्थायी रूप से बाहर से डॉक्टर बुलाए गए।
CBI की जांच में किन लोगों और स्थानों पर कार्रवाई की गई और क्या जब्त किया गया?
CBI ने कॉलेज के निदेशक अतुल कुमार तिवारी, तीन NMC इंस्पेक्टर्स और कई बिचौलियों को गिरफ्तार किया। बेंगलुरु में छापेमारी के दौरान 55 लाख रुपये की रिश्वत का लेन-देन पकड़ा गया, जो 1.62 करोड़ रुपये की डील का हिस्सा था। छत्तीसगढ़, कर्नाटक, यूपी, दिल्ली, एमपी सहित 6 राज्यों में 40 से अधिक स्थानों पर छापे मारे गए और 35 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज हुई।
इस घोटाले का छात्रों और स्वास्थ्य सेवाओं पर क्या प्रभाव पड़ा?
घोटाले के कारण कॉलेज की 150 MBBS सीटों की मान्यता रद्द कर दी गई, और नए सत्र को जीरो ईयर घोषित कर दिया गया। इससे छात्रों के भविष्य पर संकट खड़ा हो गया है। साथ ही, फर्जी मरीजों और फैकल्टी के सहारे स्वास्थ्य सेवाओं का संचालन होने से इलाज की गुणवत्ता और जनता का भरोसा भी प्रभावित हुआ है।

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