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छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण या मतांतरण एक बड़ी सामाजिक और राजनीतिक चुनौती बनकर उभर रहा है। आदिवासी और गरीब समुदायों को इलाज, शिक्षा, खाद्यान्न, और आर्थिक सहायता का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। बीते डेढ़ साल में मतांतरण की शिकायतें दोगुनी से अधिक हो गई हैं, और खासकर बस्तर, सरगुजा, और दुर्ग जैसे क्षेत्रों में ये गतिविधियां शहरी इलाकों तक फैल चुकी हैं।
भाजपा सरकार ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए कार्रवाइयों को तेज किया है, जबकि विपक्षी कांग्रेस पर पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार के दौरान कार्रवाई में ढील बरतने का आरोप लग रहा है। हाल ही में दुर्ग रेलवे स्टेशन पर तीन आदिवासी युवतियों को मानव तस्करी और मतांतरण के लिए ले जाते पकड़े जाने ने इस समस्या की गंभीरता को और उजागर किया है।
डेढ़ साल में ढाई गुना बढ़ी शिकायतें
राज्य गृह विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024-25 (1 अप्रैल 2025 तक) में धर्मांतरण से जुड़ी 50 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें 23 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई और एक मामले में प्रतिबंधात्मक कार्रवाई हुई। मई, जून, और जुलाई 2025 में अब तक 12 नई शिकायतें सामने आई हैं, जिनमें से कई में केस दर्ज किए गए हैं।
तुलनात्मक रूप से, 2023-24 में 16 शिकायतें थीं, जिनमें 9 मामलों में एफआईआर दर्ज हुई। कांग्रेस शासन के अंतिम वर्ष 2022-23 में केवल 11 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें महज 3 में केस दर्ज किए गए। वर्ष 2021-22 में 26 शिकायतें थीं, लेकिन केवल 9 में एफआईआर दर्ज हुई। भाजपा सरकार के कार्यकाल में न केवल शिकायतें बढ़ी हैं, बल्कि कार्रवाइयों में भी तेजी आई है।
गृह विभाग का कहना है कि सामाजिक जागरूकता बढ़ने के कारण लोग अब इस तरह की गतिविधियों की शिकायत करने में हिचक नहीं रहे। दूसरी ओर, विपक्ष का दावा है कि शिकायतों की बढ़ती संख्या सरकार की नाकामी को दर्शाती है।
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दुर्ग में मानव तस्करी और मतांतरण का खुलासा
25 जुलाई 2025 को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर एक मामला सामने आया था। नक्सल प्रभावित नारायणपुर की तीन आदिवासी युवतियों को आगरा ले जाया जा रहा था। आरोप है कि तीनों को मानव तस्करी और मतांतरण के लिए ले जा रहे थे।
बजरंग दल कार्यकर्ताओं के हंगामे के बाद जीआरपी ने आगरा की नन प्रीति मेरी, वंदना फ्रांसिस, और युवक सुखमन मंडावी के खिलाफ मानव तस्करी और मतांतरण का केस दर्ज किया। तीनों को गिरफ्तार कर आठ दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। यह घटना उन संगठित गिरोहों की ओर इशारा करती है, जो आदिवासियों को प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
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लालच और प्रलोभन का जाल
गृह विभाग के सूत्रों के अनुसार, मतांतरण के लिए गरीब और आदिवासी परिवारों को पैसा, खाद्यान्न, कपड़े, मुफ्त शिक्षा, और स्वास्थ्य सुविधाओं का लालच दिया जा रहा है। ईसाई मिशनरी संगठन विशेष रूप से शिक्षण संस्थानों, अस्पतालों, और “चंगाई सभाओं” के जरिए लोगों को निशाना बना रहे हैं।
इन सभाओं में बीमारी से मुक्ति, गरीबी से निजात, और जीवन में बदलाव का वादा कर धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता है। शहरी क्षेत्रों, जैसे रायपुर और दुर्ग, में भी ऐसी गतिविधियां बढ़ रही हैं, जो पहले मुख्य रूप से ग्रामीण और आदिवासी इलाकों तक सीमित थीं।
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सियासी घमासान: भाजपा बनाम कांग्रेस
मतांतरण का मुद्दा छत्तीसगढ़ में हमेशा से एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू ने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “सत्ता में आने से पहले भाजपा ने मतांतरण रोकने के लिए कड़ा कानून लाने का वादा किया था, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। शिकायतों की बढ़ती संख्या सरकार की विफलता को दर्शाती है।”
दूसरी ओर, भाजपा के राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने पलटवार करते हुए कहा, “कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार के दौरान मतांतरण की शिकायतें तो आती थीं, लेकिन कार्रवाई न के बराबर थी। हमारी सरकार ने सख्त रुख अपनाया है, जिसके कारण लोग अब खुलकर शिकायत कर रहे हैं।”
विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर वर्मा ने समाज के सभी वर्गों से मतांतरण रोकने के लिए एकजुट होने की अपील की और कहा, “समन्वित प्रयासों से ही इस समस्या का समाधान संभव है।”
बस्तर और सरगुजा में बढ़ती गतिविधियां
बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्रों में मतांतरण की गतिविधियां सबसे अधिक देखी जा रही हैं। इन क्षेत्रों में गरीबी और संसाधनों की कमी का फायदा उठाकर मिशनरी संगठन सक्रिय हैं। “चंगाई सभाओं” के नाम पर आयोजित प्रार्थना सभाओं में चमत्कारी इलाज का दावा कर लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाया जा रहा है। हाल के महीनों में बिलासपुर, दुर्ग, और रायपुर जैसे शहरी क्षेत्रों में भी ऐसी गतिविधियां बढ़ी हैं, जिसने प्रशासन के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है।
सरकार की कार्रवाई और चुनौतियां
भाजपा सरकार ने मतांतरण के खिलाफ सख्ती बरतने का दावा किया है। गृह विभाग ने पुलिस को संवेदनशील क्षेत्रों में निगरानी बढ़ाने और प्रलोभन देने वाले संगठनों पर नजर रखने के निर्देश दिए हैं। हाल के महीनों में कई पादरी और मिशनरी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है, और अवैध प्रार्थना सभाओं पर छापेमारी की गई है।
फिर भी, विपक्ष का कहना है कि बिना कड़े कानून और जमीनी स्तर पर जागरूकता के यह समस्या पूरी तरह खत्म नहीं होगी।सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि मतांतरण को रोकने के लिए केवल कार्रवाई ही काफी नहीं है। आदिवासी और गरीब समुदायों को शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसर प्रदान कर प्रलोभनों के जाल से बचाना होगा। साथ ही, ग्राम सभाओं और स्थानीय नेतृत्व को इस मुद्दे पर सक्रिय करने की जरूरत है।
सामाजिक सौहार्द और आदिवासी संस्कृति के लिए खतरा
छत्तीसगढ़ में मतांतरण का बढ़ता मामला सामाजिक सौहार्द और आदिवासी संस्कृति के लिए खतरा बन रहा है। सरकार को चाहिए कि वह वादों से आगे बढ़कर कड़ा कानून बनाए और उसका सख्ती से पालन करवाए। साथ ही, आदिवासियों और गरीब समुदायों के लिए विकास योजनाओं को और प्रभावी करना होगा, ताकि प्रलोभनों का असर कम हो। इस मुद्दे पर सियासी बयानबाजी से बचकर समाज के सभी वर्गों को एकजुट करने की जरूरत है। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या और जटिल हो सकती है।
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