छत्तीसगढ़ में झारखंड से तेंदूपत्ता तस्करी: 5000 रुपये प्रति बोरा का लाभ

Tendu Leaves Smuggling : छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता, जिसे स्थानीय रूप से "हरा सोना" कहा जाता है, आदिवासी समुदायों और ग्रामीणों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत है।

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Krishna Kumar Sikander
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Smuggling tendu leaves from Jharkhand to Chhattisgarh Profit 5000 rupees per sack
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Tendu Leaves Smuggling : छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता, जिसे स्थानीय रूप से "हरा सोना" कहा जाता है, आदिवासी समुदायों और ग्रामीणों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत है। हाल के वर्षों में, तेंदूपत्ता की तस्करी, विशेष रूप से झारखंड से छत्तीसगढ़ में, एक गंभीर समस्या बन गई है। इस तस्करी का मुख्य कारण छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता की ऊंची कीमत है, जो पड़ोसी राज्यों की तुलना में काफी अधिक है। यह स्थिति तस्करों के लिए मुनाफे का बड़ा अवसर प्रदान करती है, जिसके परिणामस्वरूप अवैध व्यापार में वृद्धि हो रही है।

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तेंदूपत्ता तस्करी का केंद्र

छत्तीसगढ़ सरकार ने तेंदूपत्ता की खरीद के लिए प्रति मानक बोरा (जिसमें 1,000 गड्डियाँ होती हैं, और प्रत्येक गड्डी में 50 पत्ते) 5,500 रुपये की दर निर्धारित की है। यह दर पड़ोसी राज्यों जैसे झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और तमिलनाडु में प्रचलित दरों से काफी अधिक है।

उदाहरण के लिए, झारखंड में तेंदूपत्ता की कीमत 1,680 रुपये प्रति मानक बोरा, मध्य प्रदेश में 2,500 रुपये, और उत्तर प्रदेश में 1,800 रुपये है। इस मूल्य अंतर के कारण तस्कर झारखंड और अन्य राज्यों से सस्ता तेंदूपत्ता लाकर छत्तीसगढ़ में बेच रहे हैं, जिससे प्रति बोरा 2,000 से 3,000 रुपये का लाभ कमा रहे हैं।

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2020 में, बलरामपुर वन विभाग ने तस्करी के एक मामले में 8 लोगों को गिरफ्तार किया था, जिनके पास से 7,200 गड्डी तेंदूपत्ता जब्त किया गया। यह तस्करी उत्तर प्रदेश के सोनभद्र और झारखंड के गढ़वा जिले से की जा रही थी, जहां वन कर्मियों की कथित साठगांठ से यह अवैध व्यापार फल-फूल रहा था।

तस्करी के कारण और प्रक्रिया

तेंदूपत्ता तस्करी का मुख्य कारण छत्तीसगढ़ में इसकी ऊंची कीमत और पड़ोसी राज्यों में कम कीमत के बीच का अंतर है। तस्कर इस मूल्य अंतर का फायदा उठाते हैं। तस्करी की प्रक्रिया में निम्नलिखित तत्व शामिल हैं

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संगठित नेटवर्क: तस्कर संगठित गिरोह के रूप में काम करते हैं, जो झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से तेंदूपत्ता एकत्र करते हैं और इसे छत्तीसगढ़ के फड़ों (संग्रह केंद्रों) में बेचते हैं।

वन कर्मियों की मिलीभगत: कुछ मामलों में, वन विभाग के कर्मचारियों की साठगांठ की शिकायतें सामने आई हैं, जो तस्करी को और आसान बनाती हैं।


परिवहन और छिपाने की रणनीति: तेंदूपत्ता को ट्रकों, ट्रैक्टरों या अन्य वाहनों में छिपाकर सीमा पार लाया जाता है। कई बार इसे स्थानीय तेंदूपत्ता के साथ मिलाकर बेचा जाता है ताकि पहचान मुश्किल हो।

खुले बाजार में बिक्री: कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, खुले बाजार में तेंदूपत्ता की कीमत 8,000 रुपये प्रति बोरा से भी अधिक हो सकती है, जिससे तस्करों को और अधिक लाभ होता है।

तस्करी का प्रभाव

तेंदूपत्ता तस्करी के कई नकारात्मक प्रभाव हैं:
आर्थिक नुकसान: स्थानीय संग्राहकों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता, क्योंकि तस्कर सस्ते तेंदूपत्ता को बाजार में लाकर कीमतों को प्रभावित करते हैं।

आदिवासी शोषण: तेंदूपत्ता संग्रहण आदिवासी समुदायों की आजीविका का प्रमुख स्रोत है। तस्करी के कारण उनकी आय पर असर पड़ता है, जिससे उनका शोषण बढ़ता है।
कानूनी और प्रशासनिक चुनौतियाँ: तस्करी को रोकने के लिए वन विभाग और पुलिस को लगातार निगरानी और कार्रवाई करनी पड़ती है, जो संसाधनों पर दबाव डालता है।

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पर्यावरणीय प्रभाव: अवैध संग्रहण से जंगलों पर दबाव बढ़ता है, क्योंकि तस्कर बिना नियमन के पत्ते तोड़ते हैं, जिससे वन संसाधनों को नुकसान हो सकता है।

सरकारी प्रयास और चुनौतियाँ

छत्तीसगढ़ सरकार ने तस्करी रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं


कड़ी कार्रवाई: वन विभाग ने तस्करी के मामलों में कई गिरफ्तारियाँ की हैं। बलरामपुर के डीएफओ प्रणव मिश्रा ने 2020 में दावा किया था कि तस्करी की कोशिशों को विफल किया जा रहा है और कड़ी कार्रवाई की जा रही है।
निगरानी बढ़ाना: सीमावर्ती क्षेत्रों में चौकसी बढ़ाई गई है, और वन कर्मियों को तस्करी रोकने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।

संग्राहकों को प्रोत्साहन: सरकार ने तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए प्रति मानक बोरा की दर को 4,000 रुपये से बढ़ाकर 5,500 रुपये किया है, ताकि उनकी आय में वृद्धि हो। इसके अतिरिक्त, बोनस, बीमा, और छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं का लाभ भी दिया जा रहा है।

कानूनी बाधाएँ: पंचायत अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार अधिनियम और वन अधिकार कानून के तहत तेंदूपत्ता की बिक्री सहकारी समितियों के माध्यम से होनी चाहिए, लेकिन बिना सरकारी सहमति के निजी बिक्री या परिवहन अवैध है।
हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, तस्करी पूरी तरह रुक नहीं पाई है। इसका कारण संगठित नेटवर्क, भ्रष्टाचार, और सीमावर्ती क्षेत्रों में निगरानी की कमी है।

आदिवासियों की माँग और शोषण

कांकेर और राजनांदगाँव जैसे जिलों में आदिवासी समुदाय तेंदूपत्ता को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की माँग कर रहे हैं, ताकि वे इसे खुले बाजार में बेच सकें और बेहतर कीमत प्राप्त कर सकें। उनका आरोप है कि सरकारी खरीद प्रणाली में ठेकेदारों और बिचौलियों द्वारा उनका शोषण किया जाता है। उदाहरण के लिए, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में तथाकथित "सड़ा टैक्स" के तहत संग्राहकों से 5% अतिरिक्त तेंदूपत्ता वसूला जाता है, जिसकी कोई आधिकारिक एंट्री नहीं होती। यह प्रथा ग्रामीणों को आर्थिक नुकसान पहुँचाती है और अवैध मानी जाती है, लेकिन इसे रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं।

समाधान के उपाय

तेंदूपत्ता तस्करी को रोकने और संग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
सीमावर्ती क्षेत्रों में कड़ी निगरानी: ड्रोन और जीपीएस-आधारित निगरानी प्रणाली का उपयोग कर तस्करी के रास्तों पर नजर रखी जा सकती है।

कानूनी सुधार: तेंदूपत्ता व्यापार को और पारदर्शी बनाने के लिए नीतियों में सुधार की आवश्यकता है, जैसे कि खुले बाजार में बिक्री की अनुमति देना।

संग्राहकों को सशक्तिकरण: सहकारी समितियों को मजबूत कर संग्राहकों को सीधे बाजार से जोड़ा जा सकता है, ताकि बिचौलियों की भूमिका कम हो।

जागरूकता अभियान: ग्रामीणों और आदिवासियों को उनके अधिकारों और सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है।

प्रौद्योगिकी का उपयोग: तेंदूपत्ता की खरीद और बिक्री में डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम लागू कर तस्करी को रोका जा सकता है।


छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता तस्करी एक जटिल समस्या है, जो आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक चुनौतियों से जुड़ी है। सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बावजूद, मूल्य अंतर और संगठित नेटवर्क के कारण तस्करी जारी है। यह न केवल स्थानीय संग्राहकों की आजीविका को प्रभावित कर रही है, बल्कि वन संसाधनों और राज्य की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुँचा रही है। इस समस्या से निपटने के लिए कड़े कानूनी कदम, पारदर्शी नीतियाँ, और संग्राहकों के सशक्तिकरण पर ध्यान देना आवश्यक है।

 

 

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