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छत्तीसगढ़ सरकार ने सरकारी स्कूलों में खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए 48,261 स्कूलों में 40 करोड़ रुपये की लागत से स्पोर्ट्स किट वितरित की, लेकिन इस पहल की हकीकत चौंकाने वाली है। हजारों स्कूलों में न तो खेल का मैदान है और न ही प्रशिक्षित शारीरिक शिक्षा शिक्षक (PTI), जिसके कारण किट्स अलमारियों में बंद पड़ी हैं या खराब होने लगी हैं।
रायपुर, दुर्ग, और धमतरी जैसे जिलों में स्कूलों को ऐसी किट्स भेजी गई हैं, जिनमें क्रिकेट, फुटबॉल, और वॉलीबॉल जैसे खेलों का सामान शामिल है, लेकिन इन स्कूलों में खेलने के लिए मैदान या कोर्ट ही नहीं हैं। किट्स की गुणवत्ता पर भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि बैट टूटे हुए, फुटबॉल की सिलाई उधड़ी हुई, और शटल कॉक दो शॉट में ही खराब हो रहे हैं।
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स्कूलों में खेल मैदान की कमी, किट्स बेकार
समग्र शिक्षा संचालनालय ने प्राइमरी, मिडिल, हाई, और हायर सेकेंडरी स्कूलों में खेलों को बढ़ावा देने के लिए 40 करोड़ रुपये की लागत से स्पोर्ट्स किट्स की आपूर्ति की। प्राइमरी स्कूलों (30,477) के लिए 15.23 करोड़, मिडिल स्कूलों (13,093) के लिए 13.09 करोड़, और हाई/हायर सेकेंडरी स्कूलों (4,691) के लिए 11.72 करोड़ रुपये खर्च किए गए। लेकिन, जांच में पता चला कि 11,000 से अधिक स्कूलों में खेल का मैदान या बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं।
रायपुर के पुरानी बस्ती, डीडी नगर, मोवा, और फाफाडीह जैसे क्षेत्रों के स्कूलों में खेल मैदान के अभाव में किट्स की पैकिंग तक नहीं खोली गई।उदाहरण के लिए, रायपुर के आरडी तिवारी स्कूल में जगह की कमी के कारण प्राइमरी और मिडिल कक्षाएं एक साथ चलती हैं। यहां खेल मैदान के नाम पर केवल प्रेयर के लिए जगह है, और वार्षिक खेल प्रतियोगिताएं सड़क को ब्लॉक करके आयोजित की जाती हैं। ऐसे में क्रिकेट, फुटबॉल, और वॉलीबॉल जैसी किट्स बेकार पड़ी हैं।
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किट्स की गुणवत्ता पर सवाल
स्पोर्ट्स किट्स की गुणवत्ता को लेकर शिक्षकों और छात्रों में भारी नाराजगी है। रायपुर के एक स्कूल में क्रिकेट किट का बैट खराब निकला, जबकि दुर्ग के एक स्कूल में फुटबॉल की सिलाई उधड़ गई और इसका साइज भी मानक से छोटा था। बेडमिंटन की शटल कॉक दो शॉट में टूट गई, और रस्साकसी की रस्सी लंबाई व मोटाई में मानक से कम थी।
शिक्षकों का कहना है कि किट्स में शामिल कंचा, लट्टू, पिट्टूल, और गिल्ली डंडा जैसे आइटम आधुनिक खेलों के लिए अप्रासंगिक हैं और इनसे छात्र स्पोर्ट्स में करियर नहीं बना सकते।छत्तीसगढ़ शारीरिक शिक्षा शिक्षक संघ के अध्यक्ष हरीश देवांगन ने कहा, "सेंट्रलाइज्ड खरीद शुरू होने के बाद से किट्स की गुणवत्ता लगातार खराब है। गैर-जरूरी सामान खरीदे जा रहे हैं, और निगरानी का कोई तंत्र नहीं है। सरकार को PTI और शिक्षकों से राय लेकर सामान चुनना चाहिए था।"
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PTI की कमी, खेल पीरियड पर सवाल
प्रदेश के 4,691 हाई और हायर सेकेंडरी स्कूलों में से केवल 1,151 में ही PTI तैनात हैं, जबकि 2,541 पद खाली हैं। प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में तो PTI का प्रावधान ही नहीं है। न्यू एजुकेशन पॉलिसी 2020 के तहत स्पोर्ट्स पीरियड अनिवार्य होने के बावजूद, शिक्षकों को पढ़ाने और खेल कराने की दोहरी जिम्मेदारी दी जा रही है। बिना प्रशिक्षित शिक्षकों और मैदान के, किट्स अलमारियों में बंद पड़ी हैं। शिक्षकों का कहना है कि बिना PTI के स्पोर्ट्स किट्स का उपयोग संभव नहीं है।
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कितनी और कैसी किट्स?
प्राइमरी स्कूल (1ली से 5वीं) : 30,477 स्कूलों में 13 आइटम वाली किट्स, लागत 15.23 करोड़। इसमें क्रिकेट बैट (2), टेनिस बॉल (4), गिल्ली डंडा (2 सेट), वॉलीबॉल (1), फ्लाइंग डिस्क (2), चेस-लूडो (1), स्किपिंग रोप (2), कंचा (50), लट्टू (2), पिट्टूल (2 सेट), रिंग थ्रो (2 सेट), कैरम बोर्ड (1), और डार्ट गेम (1) शामिल।
मिडिल स्कूल (6वीं से 8वीं) : 13,093 स्कूलों में 17 आइटम वाली किट्स, लागत 13.09 करोड़।
हाई/हायर सेकेंडरी (9वीं से 12वीं) : 4,691 स्कूलों में 27 आइटम वाली किट्स, लागत 11.72 करोड़।
जिम्मेदार कौन?
स्पोर्ट्स किट खरीद के लिए जिम्मेदार समग्र शिक्षा संचालनालय के अधिकारियों में सिद्धार्थ कोमल सिंह परेदसी (सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग), ऋतुराज रघुवंशी (संचालक, लोक शिक्षण), और संजीव झा (प्रबंध संचालक, समग्र शिक्षा) शामिल हैं। किट क्रय समिति में के. कुमार (अतिरिक्त प्रबंध संचालक), दिनेश कौशिक (उप संचालक), शैलेंद्र वर्मा (MIS प्रभारी), और धीरज नशीने (पूर्व वित्त नियंत्रक) के हस्ताक्षर टेंडर दस्तावेजों में हैं।संजीव झा ने कहा, "शिकायतों की जांच के लिए टीम भेजी जाएगी। खराब सामान को रिप्लेस करवाया जाएगा। कंचा, लट्टू जैसे खेलों की उपयोगिता की समीक्षा करेंगे।" हालांकि, शिक्षकों का कहना है कि बिना मैदान और PTI के यह कवायद बेकार है।
विपक्ष और शिक्षकों की मांग
कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए कहा कि 40 करोड़ रुपये की खरीद में भ्रष्टाचार की बू आ रही है। उन्होंने मांग की कि खराब किट्स की आपूर्ति की जांच हो और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए। शिक्षक संगठनों ने भी मांग की है कि भविष्य में किट खरीद से पहले PTI और स्कूल प्राचार्यों से राय ली जाए।
बेकार खर्च या सुनियोजित लापरवाही?
40 करोड़ रुपये की स्पोर्ट्स किट खरीद का उद्देश्य सरकारी स्कूलों में खेलों को बढ़ावा देना था, लेकिन मैदानों की कमी, खराब गुणवत्ता, और PTI की अनुपस्थिति ने इस पहल को बेकार कर दिया है। सवाल यह है कि क्या यह केवल प्रशासनिक लापरवाही है या सुनियोजित भ्रष्टाचार? जब तक मैदान, प्रशिक्षित शिक्षक, और गुणवत्तापूर्ण किट्स सुनिश्चित नहीं होंगे, तब तक यह पहल केवल कागजी उपलब्धि बनकर रह जाएगी।
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