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छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय (GGU) में नॉन-टीचिंग भर्ती प्रक्रिया फिर विवादों के घेरे में है। लोअर डिवीजन क्लर्क (LDC), अपर डिवीजन क्लर्क (UDC), असिस्टेंट, और अन्य पदों पर हो रही नियुक्तियों में पारदर्शिता की कमी और परिवारवाद के गंभीर आरोप लग रहे हैं।
विश्वविद्यालय में कार्यरत या सेवानिवृत्त कर्मचारियों के बेटे, बेटी, पत्नी और रिश्तेदारों की नियुक्तियों ने सवाल खड़े किए हैं कि क्या यह एक सुनियोजित साजिश है या महज संयोग? 2 से 6 जुलाई 2025 तक आयोजित 54 नॉन-टीचिंग पदों की भर्ती प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं ने विश्वविद्यालय को 'अपनों का अड्डा' बनाने की चर्चा को हवा दी है।
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आरोपों का केंद्र, परिवारवाद और पावर गेम
पिछले दो वर्षों में GGU में नॉन-टीचिंग भर्तियों में उन लोगों को प्राथमिकता देने का सिलसिला जारी है, जिनके परिवार के सदस्य पहले से विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं या सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सूत्रों के अनुसार, भर्ती प्रक्रिया में 'पैसा, परिवार, और पावर' का बोलबाला है। रायपुर और दिल्ली से आने वाले 'फोन कॉल्स' के आधार पर चयन होने की बात भी सामने आ रही है। विश्वविद्यालय परिसर में यह चर्चा आम है कि पुराने कर्मचारियों की पहुंच और प्रभाव के चलते उनके रिश्तेदारों को आसानी से नौकरी मिल रही है।कुछ विशिष्ट मामलों ने इन आरोपों को और बल दिया है। उदाहरण के लिए
डॉ. गणेश शुक्ला (स्टोर OSD) की पत्नी प्रीति शुक्ला को HRDC में टेक्निकल ऑफिसर के पद पर नियुक्त किया गया।
प्रेम शंकर द्विवेदी (MBA सहायक प्राध्यापक) की पत्नी आर्ची वर्मा को HRDC में सेक्शन ऑफिसर बनाया गया।
मीना कुमारी पाल (शिक्षा विभाग, सहायक प्राध्यापक) के भाई राजा राम पाल को कुलपति कार्यालय में पदस्थ किया गया।
सेवानिवृत्त कर्मचारी के.के. भोई की बेटी नेहा भार्गव को विकास विभाग में नियुक्ति मिली।
संतोष तिवारी (सेवानिवृत्त) के बेटे सौरभ तिवारी को सेक्शन ऑफिसर बनाया गया।
इसी तरह, विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में कार्यरत कर्मचारियों के 18 रिश्तेदारों की नियुक्तियों की सूची ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या यह सब संयोग है या एक सुनियोजित साजिश?
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पारदर्शिता पर सवाल: मेरिट लिस्ट में केवल नाम, अंक गायब
GGU डिजिटल युग का दावा करता है, में भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। चयन सूची में केवल उम्मीदवारों के नाम प्रकाशित किए जाते हैं, उनके प्राप्त अंक, आरक्षण स्थिति, प्रश्न पत्र की आंसर-की, या उत्तर पत्रक की कार्बन कॉपी तक सार्वजनिक नहीं की जाती। यह असामान्य प्रक्रिया भर्ती में गड़बड़ी की आशंकाओं को बढ़ा रही है। विश्वविद्यालय के कर्मचारियों और अभ्यर्थियों में खामोशी से नाराजगी पनप रही है, जो इसे 'परिवारवाद का अड्डा' बनने की ओर इशारा मानते हैं।
NTA से क्यों नहीं कराई गई परीक्षा?
युवाओं और अभ्यर्थियों का सवाल है कि इतनी बड़ी भर्ती प्रक्रिया को राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) के माध्यम से क्यों नहीं कराया गया, जो देश भर में विश्वसनीय और पारदर्शी परीक्षाएं आयोजित करती है। GGU के कुलपति और कई शिक्षक NTA के लिए प्रश्न पत्र तैयार करने में शामिल रहे हैं, फिर भी विश्वविद्यालय ने अपनी भर्ती प्रक्रिया को आंतरिक रूप से संचालित करना चुना।
आलोचकों का कहना है कि यह कदम संदेह पैदा करता है, क्योंकि NTA जैसी स्वतंत्र एजेंसी से परीक्षा होने पर पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सकती थी।
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साजिश या संयोग?
भर्ती प्रक्रिया में शामिल कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच भी कानाफूसी हो रही है कि 'यहां से लेंगे, तभी तो आगे देंगे'। आरोप है कि भर्ती प्रक्रिया में पैसे का लेन-देन और प्रभावशाली लोगों की सिफारिश आम बात है। विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी, जो पहले पर्दे के पीछे से भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित करते थे, को इस बार मुख्य कर्ताधर्ता बनाया गया है, ताकि उच्च अधिकारियों का दामन बचाया जा सके। यह कदम सवाल उठाता है कि क्या यह एक सुनियोजित साजिश है, जिसमें परिवारवाद और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है?
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विश्वविद्यालय प्रशासन मौन
इन गंभीर आरोपों पर विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। कर्मचारियों और अभ्यर्थियों का कहना है कि भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और परिवारवाद के चलते मेधावी उम्मीदवारों के साथ अन्याय हो रहा है। कुछ अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि प्रश्न पत्र पहले से ही चयनित उम्मीदवारों को दे दिए जाते हैं, जिससे मेरिट लिस्ट में उनके नाम सुनिश्चित हो जाते हैं।
विपक्ष और सामाजिक संगठनों की मांग
छत्तीसगढ़ में विपक्षी दल कांग्रेस और सामाजिक संगठनों ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने कहा कि GGU में भर्ती घोटाला आदिवासी और मेधावी युवाओं के साथ अन्याय है। उन्होंने मांग की कि भर्ती प्रक्रिया की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। स्थानीय युवा संगठनों ने भी विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन की चेतावनी दी है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भर्ती प्रक्रिया को NTA या UPSC जैसी स्वतंत्र एजेंसियों के माध्यम से कराना चाहिए। इससे न केवल पारदर्शिता सुनिश्चित होगी, बल्कि परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों पर भी अंकुश लगेगा। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि मेरिट लिस्ट में प्राप्त अंकों और आरक्षण स्थिति को सार्वजनिक करना अनिवार्य होना चाहिए, ताकि अभ्यर्थियों का भरोसा बना रहे।
युवाओं के भरोसे पर गहरा आघात
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में नॉन-टीचिंग भर्ती प्रक्रिया में परिवारवाद और अनियमितताओं के आरोप गंभीर सवाल खड़े करते हैं। 18 कर्मचारियों के रिश्तेदारों की नियुक्तियां, अपारदर्शी मेरिट लिस्ट, और NTA की अनदेखी जैसे मुद्दे संकेत देते हैं कि यह महज संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश हो सकती है। विश्वविद्यालय प्रशासन को इन आरोपों का जवाब देना होगा, अन्यथा यह संस्थान की साख और मेधावी युवाओं के भरोसे पर गहरा आघात होगा।
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